Saturday 26 November, 2011

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।--रहीम के दोहे

लघुकथा संग्रह -सं -अशोक लव
छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे होय॥

खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन बिगरे दूध को, मथे न माखन होय॥

आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।
ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि


खीरा सिर ते काटिये, मलिए नोन लगाय।
रहिमन करुये मुखन को, चहियत यही सजाय॥

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥

रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवारि॥

बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय॥

माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि।
फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि॥

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥

रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय॥

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।
सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥

रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर॥

बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय॥

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

दोनों रहिमन एक से, जब लौं बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, ऋतु वसंत कै माहि॥

रहिमह ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बाँटनवारे को लगै, ज्यौं मेंहदी को रंग॥

Friday 18 November, 2011

अशोक वर्मा की ग़ज़ल

प्रिय मित्र श्री अशोक वर्मा की यह ग़ज़ल बेहद पसंद है.

छूते नहीं हैं पाँव से अब तो ज़मीन लोग
रहते हवाओं में सदा सारे हसीन लोग.

झाँका किया खिड़की से वो मासूम-सा बच्चा
निकले सुबह तो शाम को लौटे ज़हीन लोग.

अपना नगर है चल ज़रा तू देखभाल कर
दे जाएँ ना धोखा  कहीं बेहतरीन लोग.

जब से लगा है आईना इस शहर के करीब
बगलें  लगे हैं झाँकने कुछ नामचीन लोग.

फुर्सत नहीं अपनों से जो कर पाएँ दिल की बात
यूं बन के सारे रह गए हैं जैसे मशीन लोग.
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 -पुस्तक- ग़ज़ल बोलती है से साभार

Friday 4 November, 2011

8th Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samman-2011



"8th Pratibhashalee Mohyal Vidyarthee Samaan " function was held at GMS Hq ,New Delhi on 9th October 2011. Dr Bhai Mahaveer ( Ex Governor MP ) was the Chief Guest. President GMS Rzd BD Bali gave away prizes and honored the students of Secondary and Sr Secondary classes for their excellent results. Dr Ashok Lav (Secy GMS ) is the convener of this award. He conducted the programme.--Pulkit Vaid

हिन्दी के लिए संघर्षरत रहे श्री राजकरण सिंह को विनम्र श्रद्धांजलि / अशोक लव

हिन्दी भाषा के लिए दीर्घकालीन संघर्षरत रहे जुझारू श्री राजकरण सिंह के निधन के समाचार ने स्तब्ध कर दिया. अनेक साहित्यिक आयोजनों में उनसे भेंट होती रही थी. वे अपनी तरह के  विशिष्ट  व्यक्ति थे. वर्षों तक हिन्दी भाषा के लिए ऐसा संघर्ष करने वाले बहुत कम लोग हुए हैं. हम हमेशा उनके प्रशंसक रहे हैं. राजकरण एक लहर थे जिसने पूरे देश को हिन्दी के लिए आंदोलित कर दिया था. उनके निधन पर हार्दिक सम्वेदनाएँ !!---अशोक लव 
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हिंदी आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ " राजकरण सिंह जी " की असामयिक मृत्यु पर आयोजित शोक सभा |
समय : 4 नवम्बर 3 बजे शाम को
स्थान : भारत नीति प्रतिष्ठान
डी - 51 , हौज खास , नई दिल्ली

... भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरणसिंह को आज 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा बाराबंकी जनपद में निधन हो गया।
57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल भाारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे अपने विश्व ंविख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन ंकरके पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के आंदोलन के बाद उद्देलित करने वालों में प्रमुख रहे।
ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।
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माॅ भारती के चरणों में ताउम्र समर्पित रहे भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरण सिंह
‘राजकरण जी का निधन हो गया’ - मुझे सहसा विश्वास ही नहीं हुआ। विश्वास होता भी कैसे ं29 अक्टूबर की सांय 4 व 5 बजे की बीच मेरी राजकरण सिंह से दूरभाष पर बात हुई । वे दीपावली के त्यौहार अपने परिजनों से मिलने अपने गांव, विष्णुपुरा-बाराबंकी उंत्तर प्रदेश गये थे। 29 अक्टूबर को सायं 4 व 5ंबजे के बीच उनसे दूरभाष पर बात हुई वे उस समय ...पूरे स्वस्थ व किसी काम से लखनऊं जाने की बात कह रहे थे,,--संसद में भारतीय भाषाओं के लिए नारा लगाने के 21 अप्रेल 1989 के बाद में भारतीय भाषा आंदोलन से जुडा। वहां मेरी भैंट राजकरण सिंह,ं पुष्पेन्द्र चैहान सहित अन्य साथियों के साथ हुई । उसी आंदोलन के ंदंौरान मैं उत्तराखण्ड र ाज्य गठन आंदोलन के लिए अपने आप को समर्पित करने का मन बना कर प्यारा उत्तराखण्ड समाचार पत्र का 1993 से प्रकाशन किया। राजकरण सिंह ंकें साथ मेरे दोे दशक के करीब का साथ रहा। ंभाषा आंदोलन के दौरान उनके तैवर, संगठन प्रबंधन क्षमता, वैचारिक ंप्रबुद्वता व ंसंहृदय को देख कर मैने उनको अपने बडे भाई व साथी के रूप में तब से आज तक पाया। यादें ंरह रह कर मुझे उद्देल्लित कर रही है। चाहे भाषा आंदोलन में जब वे जेल से न्यायालय लाये गये तो न्यायाधीश के सम्मुख्ंा उनकी सिंह गर्जना, उप प्रधानमंत्री देवीलाल से जब हम दोनों उनके ंरंाष्ट्रपति भवन परिसर में मिले आवास में मिलने की घटना हो, ज्ञानी जैलसिंह, अटल बिहारी वाजपेयी आदि के संग धरने पर मुद्दंे पर समर्पण आदि सैकडों यादों का सहभागी रहा मैं आज जान कर भी ंयह मानने के लिए तैयार नही हूॅ कि राजकरण सिंह जी यहां नहीं रहे।--जब मैं व राजकरण सिंह ंबाबा रामदेव के आन्दोलन में जाते या अण्णा हजारे सहित देश के आंदोलन में जाते तो वे कहते मेरा मन करता कि एक बार फिर 29 दिन वाली ऐतिहासिक भूखहड़ताल करूं। वरिष्ठ पत्रकार बनारसीसिंह व भाई महेश जी के साथ मिल कर बातें करते करते चाय पीते पीते अनैक ज्वलन्त विषयों पर चर्चा करनंा हम दोनों की दिनचर्या का एक अंग बन गया था। आये दिन हम ंएक दूसरे से मिलते रहते, अगर कारणवश मिले नहीं तो दूरभाष पर अवश्य बात होती। वे अपने अनुभवों को याद करते हुए ंकहते रहते अब तक छोटे लक्ष्य व सोच वाले लोगों ंका साथ इंसान को किसी भी हालत में नहीं करना चाहिए।वे अवसरवादी इन्सानों को पहचानने के बाद उनसे ंदूर ही रहते। वे भाषा आंदोलन के साथियों के तो बडे भाई व संरक्ष्ंाक के रूप में थे पर अपने सभी परिचितों के साथ वे परिवार के एक जिम्मेदार सदस्य के रूप में ंसदा खडे रहते। चाहे विजय गुप्त जी के साथ हो या मेरे। हर ंकाम को वे बहुत ही ंईमानदारी व जिम्मेदारी से निभाते। ंवे सदा अहं को छोड़ कर निष्छल सेवा भाव से हर काम को मजिल तक अंजाम दे कर पूरा करने में विश्वास रखते। उनका व मेरा एक मित्र व एक भाई की तरह अनन्य साथ कई वर्षो से निरंतर बना हुआ था। आज हर जगह हर मोड़ व हर अवसर पर मुझे लगता है कि राजकरण जी अभी आते तभी आते... .। -बार बार आंखों में उमडते आंसुओं कोे मानो वो ही धीरज देते हुए से प्रतीत होते कि इसी का नाम जीवन है। यह सोच कर की हर जीवन की यात्रा का यही मुकाम है,। उनकी यादे ही मेरे शेष जीवन पथ की धरोहर है। मै उनकी पावन स्मृति को शतः शतः नमन् करता हॅू। www.rawatdevsingh.blogspot.com
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