Wednesday 27 July, 2011

विवाह : 25 जून 2011

From left : K Thizangule Ashihe,Ashok Dixit,Piyush Sen,Arpan Asawa, Ashok Lav,Anup S Sharma,Vinay Vishwakarma,Manish Kumar,Vinay Saxena, Kailash Chand and Anupam Rao.
SK Westend,New Delhi

Thursday 21 July, 2011

गुप्तेश्वर मंदिर जेपोर : पारिवारिक और आध्यात्मिक यात्रा / अशोक लव

ओडिशा उड़ीसा का नया नाम है. पारिवारिक समारोह में सम्मिलित होने के लिए छः जुलाई 2011 को वायुयान से रायपुर और आगे की आठ घंटे की लम्बी यात्रा कार द्वारा  पूरी करके शाम लगभग सात बजे जयपोर पहुँचे. इस नगर का नाम राजस्थान के जयपुर के नाम से मिलता है. केवल इंग्लिश में Jaypore लिखते हैं . बोलते सब जयपुर ही हैं.छत्तीसगढ़ का लम्बा रास्ता तय करना पड़ा. धमतरी और जगदलपुर नगर  बीच में आए. 'माकड़ी' शहर के पंजाबी ढाबे पर लंच किया था. 
सात जुलाई को समारोह था. 
आठ जुलाई को प्रातः  जयपोर से गुप्तेश्वर  मंदिर के लिए चले थे. जयपोर शहर कोरापुट जिले में आता है. कोरापुट में ही भगवन शिव का यह प्रसिद्ध ऐतिहासिक मंदिर है. गुफा में स्थित लिंग है. इसके दर्शन करके हुई अनुभूति को शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता .
गुफा के अन्दर अँधेरा है. पुजारी ने दीपक जलाकर चट्टानों  पर स्वतः उभरी विभिन्न देवी - देवताओं की आकृतियाँ दिखाईं . गणेश जी , भगवान नरसिंह , माँ दुर्गा आदि की आकृतियाँ देखकर विस्मित होना ही पड़ता है. रोशनी होते ही गुफा में चमगादड़ उड़ने लगते थे. वहां अद्भुत आध्यात्मिक अनुभूति का अनुभव होता है. 
भगवान शिव के दर्शन करके सुखद अनुभव हुआ. दिल्ली में बैठकर ऐसी यात्रा के विषय में सोचा भी नहीं जा सकता. 
घने जंगलों के मध्य  स्थित यह मंदिर  अद्भुत है. दर्शनों के पश्चात् नीचे बहती सबरी नदी के प्रचंड बहाव वाले शीतल जल में पाँव रखते ही सारी थकान मिट जाती है. यह स्थान छत्तीसगढ़ , ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सीमाओं को मिलाता है. वर्षा के कारण मटमैला जल अपनी अलग छटा लिए था. ऊपर स्वच्छ धुला नीला आकाश , किनारे पर हरियाली और नदी का चट्टानों से टकराता जल ! प्रकृति का अनुपम दृश्य ! कलाकार ने मानो पेंटिंग बना दी हो. कैमरे में सब दृश्यों को कैद करके संग ले आए. 
प्रातः उठकर श्रीमती सरोज जी ने  पकवान तैयार कर लिए थे. लौटते हुए रास्ते में चादरें बिछाकर पत्नी श्रीमती नरेश बाला और परिवार के अन्य सदस्यों --सुमीत ,पुनीत और मनीष के साथ भोजन का आनंद लिया. श्रीमती सरोज अच्छी मेज़बान हैं. कहने लगीं प्रातः चार बजे उठकर सब तैयारियां कर ली थीं. घने जंगलों में ऐसा स्वादिष्ट भोजन क्या आनंद देता है, इसकी कल्पना खाने वाले ही जानते हैं.
लौटते हुए सीधी चढ़ाई  थी. ड्राईवर नया था. बीच रास्ते कार रुक गई और सुमीत, पुनीत और मनीष पत्थर लगा-लगाकर कार  को ऊपर लाने  में ड्राईवर की सहायता करते रहे. हम अकेले लम्बी चढ़ाई चढ़कर ऊपर तक आए. वर्षों बाद ऐसा अनुभव हुआ. देहरादून से मसूरी की दो बार ट्रैकिंग किये वर्षों गुज़र गए थे.  वे दिन स्मरण हो आए. 
काजू के वृक्षों , खेतों की लम्बी कतारों ,सिर पर लकड़ियाँ उठाये   पैदल चलती  अधेड़ उड़िया महिलाओं  को लांघते हुए हम लौट रहे थे. 
अभी देश के विकास में वर्षों लगेंगे. राजनेताओं को इन क्षेत्रों की ओर झाँकने का अवकाश कहाँ है !
पर्यटन की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र को विकसित किया जा सकता है.




Wednesday 20 July, 2011