Friday, 31 October, 2008

गिलहरियाँ / *अशोक लव


नन्हीं गिलहरियाँ
पेड़ों से उतरकर
आ जाती हैं नीचे ,
उठा लेती हैं
छोटी- छोटी उँगलियों से बिखरे दाने।
टुक-टुक काटती खाती हैं
टुकर-टुकर तकती हैं ,
लजा जाती है
उनकी चंचलता के समक्ष
कौंधती बिजलियाँ ।
झाडियों में दुबकी बिल्ली
झट से झपटती है
चट से चढ़ जाती है पेड़ों पर
गिलहरियाँ
खूब चिढाती हैं ;
खिसियाई बिल्ली
गर्दन नीचे किए
खिसक जाती है।
गिलहरियों की ओर बढ़ा देता हूँ
मित्रता का हाथ ,
देना चाहता हूँ उढेल
स्नेह ,
बहुत भली होती हैं गिलहरियाँ
पास आकर भाग जाती हैं गिलहरियाँ।


Monday, 27 October, 2008

शुभकामनायें

मंगलमय दीपावली
शुभ हो
जीवन में
सुख ही सुख हो
यही है कामना
दीपोत्सव पर
हर पल आपका
उत्सव ही उत्सव हो।

* अशोक लव

Thursday, 23 October, 2008

नव आगमन *अशोक लव






गूंजी एक किलकारी
गर्भाशय से निकल
ताकने लगा नवजात शिशु
छत, दीवारें, मानव देहें।

प्रसव पीड़ा भूल
मुस्करा उठी माँ
सजीव हो उठे
पिता के स्वप्न।

बंधी संबंधों की नई डोर
तीन प्राणियों के मध्य ,
हुई पूर्णता
नारी और पुरुष के वैवाहिक संबंधों की।

नन्हें शिशु के संग जागी
आशाएं ।

पुनः तैरने लगे
नारी और पुरुष के मध्य
नए - नए स्वप्न
नवजात शिशु को लेकर।
-------------------------------------------
( * लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान, पुस्तक से )
*सर्वाधिकार सुरक्षित



Wednesday, 22 October, 2008

विनायक - २००८ स्मारिका

मेला गणेश चौथ ,चंदौसी के अवसर पर प्रकाशित यह स्मारिका का ३९ वाँ अंक है।
* प्रधान संपादक - प्रजीत कुमार 'लालू' , *संपादक - अमित के एस वार्ष्णेय *सह-संपादक - रवेन्द्र 'रूपी'
*गोपाल भवन, २५-देवी स्ट्रीट,चंदौसी-२०२४१२ (उ.प्र।)
१६४ पृष्ठों की इस स्मारिका का भव्य प्रकाशन हुआ है। गत लगभग १० वर्षों से इसके साथ लेखक के रूप में जुड़ने का सौभाग्य मिला हुआ है। श्री प्रजीत जिस आदर और स्नेह से रचनाएँ भेजने का अनुरोध करते हैं वैसा बहुत कम देखने के अवसर मिले हैं । चंदौसी में गणेशोत्सव का भव्य और विशाल मेला आयोजित करना और हर वर्ष स्मारिका प्रकाशित करना समर्पित समाजसेवियों के कारन सम्भव होता है। लाखों रुपयों का खर्च , प्रबंधन करना और विशाल समारोह आयोजित करना सहज नहीं है।
समाज को संस्कारवान बनाने में ऐसे लोगों की जितनी प्रशंसा की जाए कम है।
श्री भूपाल विनायक गणेश मन्दिर ट्रस्ट के समस्त पदाधिकारियों और सदस्यों को बधाई।

Thursday, 16 October, 2008

नई टहनी *


मधुमक्खियाँ गुनगुनाती हैं
सुनाती हैं फूलों को
मधुर गीत ,
पाती हैं फूलों से
गंध , रस
सहेजती हैं इन्हें
नन्हीं -नन्हीं स्निग्थ दूधिया कोठरियों में
जुटी रहती हैं
संवारने में अपना मधुमय संसार।

वे आते हैं
लूटकर ले जाते हैं
मधुमक्खियों के एक-एक दिवस का श्रम
झोंक जाते हैं आंखों में
तेज़ धुआँ।

मधुमक्खियाँ नहीं होतीं हताश
तलाशती हैं नई टहनी
बसाती हैं पुनः
मधुमय संसार।












*अशोक लव (पुस्तक : मधु पराग, अनुभूतियों की
आहटें)

Tuesday, 7 October, 2008

डॉ आनंद सुमन सिंह (३)

मैं हिंदू क्यों बना पुस्तक में डॉ आनंद सुमन सिंह ने विस्तृत रूप में अपने हिन्दू धर्म में लौटने के कारण दिए हैं । प्रत्येक सहृदय पाठक को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
२००८ का संस्करण नए तथ्यों के साथ प्रकाशित हुआ है.

मैं हिंदू क्यों बना : डॉ आनंद सुमन सिंह (२)

डॉ आनंद सुमन सिंह का हिंदू बनना अचानक नहीं हुआ। वे पब्लिक स्कूल में पढ़े , चिकित्सा-विज्ञान स्नातक थे। वे कट्टर इस्लामी विचार के थे। उनके शब्दों में,"काफी अरसे से मैं वैदिक धर्म के बारे में कुछ पुस्तकें पढ़ रहा था। इसका खास मकसद नहीं था। हिंदुत्व के बारे में जब-तब चर्चा होती रहती थी। एक बार मुझे संघ के रक्षाबंधन कार्यक्रम में मुख्य-अतिथि बनाया गया। मेरे इस्लामी जज़्बात इतने कट्टर थे की उस कार्यक्रम में मुझे प्यार का प्रतीक धागा बाँधा गया तो नफरत से मैंने उसे सबके सामने तोड़ दिया। पिछले वर्ष (१९८०) जनवरी में घर गया तो देखा कि मेरे ७६ वर्षीय पिता ने एक युवा महिला से ब्याह रचा लिया था।"
इससे उनके मन को धक्का लगा था। 30 August 1981 को डॉ आनंद सुमन सिंह ने हिंदू धर्म को अपना लिया।
_______________________________________________________________________
*मैं हिंदू क्यों बना , लेखक -डॉ आनंद सुमन सिंह , SARASVATEE PRAKASHAN,MANSAROVAR, 1-B.N. CHHIBBER MARG,DEHRADOON -248001 (UTTRAKHAND)

Saturday, 4 October, 2008

डॉ आनंद सुमन सिंह :मैं हिंदू क्यों बना

डॉ आनंद सुमन सुमन सिंह की नई पुस्तक " मैं हिंदू क्यों बना " प्रत्येक साहित्य के सुधि पाठक को अवश्य पढ़नी चाहिए। इसके लिए पठन की दृष्टि में संकीर्णता नहीं होनी चाहिए।
पुस्तक मिलने पर इसे पढने की उत्सुकता हुई और १७६ पृष्ठों की पुस्तक ने सप्ताह भर स्वयं में निमग्न रखा। अनेक नए तथ्य उजागर हुए। अभी तक हिन्दुओं का अन्य धर्मों में अनेक कारणों से धर्मांतरण सुना-पढ़ा था। इस्लाम से हिंदू धर्म में आने वाले के विषय में जानने की उत्सुकता तो स्वाभाविक थी।
पुस्तक पर बात करने से पहले डॉ आनंद सुमन सिंह के विषय में बात कर लें। वे देहरादून से "सरस्वती सुमन" पत्रिका प्रकशित करते हैं। हिन्दी की श्रेष्ठ पत्रिका है। मेरी अनेक रचनाएँ इसमें प्रकाशित हुई हैं। राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका है। उनके कुशल संपादन की प्रशंसा करनी पडेगी । देश भर के साहित्यकार इसमें छपते हैं।
यही आनंद सुमन सिंह इस्लाम धर्म से हिंदू धर्म में आए हैं।
उन्हीं के शब्दों में _"वैदिक धर्म में दीक्षित होकर मैंने कोई धर्म - परिवर्तन नहीं किया,अपितु सन१७५२ में अपने राजपूत पूर्वजों द्वारा किए गए पाप का प्रायश्चित मात्र किया है। जहाँ तक धर्म परिवर्तन का प्रश्न है मेरी मान्यता यह है कि संसार में मात्र एक ही धर्म है- सत्य सनातन मानव (वैदिक) धर्म। ....जारी