Tuesday 22 December, 2009

माँ नहीं रहीं / अशोक लव

20  दिसंबर 2009  को माँ ने इस संसार से विदा ले लीदेह पंचतत्व में , आत्मा परमात्मा में विलीन हो गईशब्द माँ के चले जाने की वेदना को अभिव्यक्त करने में असमर्थ हैं
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*Mr. Ashok Lav / Mr.Raman / Mr.Kamal,

We are aggrieved to learn about the sad demise of your beloved mother. No words of sympathy can bring you solace, but one can share it,being the sailor of the same boat.
Loss of one's * mother is like loosing the shelter in heavy rains or from burning sun in summer, but one can feel the nearness of its beloved by sharing memorable moments of his/her with his Nears & Dears.
May GOD, your mother's soul lay calm in heaven & showers thy blessings on all in the family.

With love &affection
Yours
Subhash Mehta
Divyaa Mehta
{Ex-Gen.Secy. UP Mahila congress}
Divyalok
Gandhi Colony.


*Dear Sir,
Please accept our heartfelt condolence on the sad demise of your mother. Inspite of her golden age; a mother is the mother and the is irreparable. May the God bless her soul.
Highest regards
Suresh and Anita


*आदरणीय अशोक जी!
आपकी माता जी के देहावसान की सूचना मिली, हम सपरिवार इस दुःख की घड़ी में आपके साथ हैं .ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें, व आपको मातृ-विछोह से उपजे कष्ट को सहन करने का साहस प्रदान करें.......
आपके दुखों में भी आपके साथ----- ज्योत्स्ना & नामदेव पाण्डेय ,

*
आरिफ जमाल
आप की माता जी के निधन की सूचना से काफी सदमा पहुंचा.कुछ बातें इंसान के हाथ में नहीं है -यहाँ पर ही उस सर्वोच्च-सर्व सक्तिमान के आगे सब बेबस हैं.इश्वर आप सब परिवार के सदस्यों को इस दुःख को सहने की शक्ति दे और दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान प्रदान कर उनको शान्ति प्रदान करे.
न्यू आब्ज़र्वर पोस्ट परिवार के सभी सदस्य इस दुखद समाचार पर अपनी शोक संवेदना प्रकट करते हैं.
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आदरणीय डा० लव जी ,
नमस्कार
पूजनीय माता जी के निधन के समाचार से काफी दुःख पहुंचा .आज जब मैं नव
वर्ष के दिन जय मोहयाल वेबसाइट देख रहा था तभी इस बारे में पता चला .
परमपिता परमात्मा उनको मोक्ष प्रदान करे तथा आप लोगो को ये सदमा सहने की
शक्ति दे

नरिंदर छिब्बर,अंजू छिब्बर
पानीपत
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Dear Ashok uncle ji
I was deeply saddened to hear about the sudden and tragic demise of your mother Smt.Krishana mehta ji Lau, I know how difficult this must be for you and your family. You are in our thoughts and prayers. Smt.Krishana mehta ji Lauwas such a kind, gentle soul. She would do anything to help someone in need.
I know how much you will miss the departed soul. I encourage you to draw on your strength and the strength of your family. May God bless you and your family during this time and always.
With profound grief I extend my Heartiest Condolences.
For Mohyal sabha Amritsar
(Anil Dutta)
(Sec. Youth Affairs)
(M) 9878391830

Wednesday 16 December, 2009

लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान


लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
कविताएँ

Saturday 12 December, 2009

'खिड़कियों पर टंगे लोग' के लघुकथाकार -१/ अशोक लव



खिड़कियों पर टंगे लोग ( लघुकथा - संकलन ) में मेरे अतिरिक्त डॉ राम कुमार घोटड़ , डॉ नीना छिब्बर, आर के मोहन,सुषमा भंडारी , सत्य प्रकाश भारद्वाज और शोभा रस्तोगी 'शोभा' की लघुकथाएँ इसमें संकलित हैं। इनकी लघुकथाओं को यहाँ दिया जा रहा है।
इस कड़ी में सर्वप्रथम ' सत्य प्रकाश भारद्वाज ' की लघुकथाएँ
*परिचय
जन्म- ५ दिसंबर १९५५,दिल्ली , एम ए बी एड ।
प्रकाशित कृति : लुटेरे छोटे-छोटे ( लघुकथा-संग्रह) इस पर एम फिल हुई।
सचिव-हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेल्लन ( सिरसा )
स्थायी -निवास : ६१५,बांकनेर , दिल्ली -११००४९
संपर्क- द्वारा डॉ रूप देवगुण,डॉ गांधी गली, ५/१९०,गोविन्द नगर,सिरसा (हरियाणा)
(एम)०९४६६२६६५३६
.............................................................................................................................

खिडकियों पर टंगे लोग ( लघुकथा संग्रह): संपादक अशोक लव


KHIRKHIYON PAR TANGE LOG
by ASHOK LAV
ISBN: 9788190858700
Subject: STORIES
Price: INR 125.00

Thursday 10 December, 2009

" महात्मा की बेटी और सियासत " उपन्यास का विमोचन कार्यक्रम

पलामू (डाल्टनगंज ) के साहित्यकार-पत्रकार श्री मनोज ज्वाला के उपन्यास " महात्मा की बेटी और सियासत " का लोकार्पण १३ दिसंबर २००९ को हिन्दी भवन , विष्णु दिगंबर मार्ग (निकट आई .टी..),नई दिल्ली में प्रातः १०:३० बजे होगा
अध्यक्षता : श्रीमती मृदुला सिन्हा
( पूर्व अध्यक्षा -केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड,भारत सरकार)
लोकार्पण: श्री श्रीकांत जोशी
( संरक्षक-हिन्दुस्थान समाचार )
वक्ता: श्री राम बहादुर
( संपादक-प्रथम प्रवक्ता , नई दिल्ली )
डॉ कुलदीप चाँद अग्निहोत्री
( निदेशक, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय )
उदघाटन : अशोक लव
( वरिष्ठ साहित्यकार)
समारोह " राष्ट्रीय पत्रकारिता कल्याण न्यास , नई दिल्ली द्वारा आयोजित किया जा रहा है
निवेदक : राज कुमार शर्मा ( सचिव)

Wednesday 9 December, 2009

कुछ छिन रहा है / अशोक लव

घबराहट है
वेदना है
छटपटाहट है
छिन रहा है
बहुत-बहुत प्रिय।

और विवशता है कि
असहाय हैं
मूक दर्शक हैं
रोक पाने की सामर्थ्य है
हठ करने का साहस
बस निवेदन और निवेदन
प्रार्थनाएँ ही प्रार्थनाएँ !

कितना असहाय हो जाता है
मनुष्य
और नियति को स्वीकार करने को
हो जाता है बाध्य।
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* .१२.०९ , माँ के लिए

Thursday 3 December, 2009

ऑरकुट : 'जी भाई साहब ' कविता पर कमेंट्स


Kavi Kulwant:
बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। "
,,.bahut khoob lazwab..
(ऑरकुट)

शेफाली पाण्डे:
बहुत सुन्दर ...
(ऑरकुट)

shyamal:

रचना के भाव ने प्रभावित किया अशोक भाई।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot .com

Jenny:
अशोक जी,
प्रणाम! आपकी ये कविता ''जी भाई साहब'' बिल्कुल अलग अंदाज़ में है, लेकिन इसमें भी समाज के सच का हीं एक रूप है, हमेशा की तरह कुशल लेखन|

Saturday 28 November, 2009

फेसबुक पर " जी , भाई साहब " कविता पर कमेंट्स

*Purnima Varman
सही कहा यथार्थवादी रचना तो है ही प्रस्तुति भी ज़बरदस्त है।

*Anand Rai
"भाई साहब बहुत ही गहराई है। एक साथ कितने चेहरों से पर्दा उठा दिया. विश्वविद्यालयों में, समाज में या सियासत में जो कुछ हो रहा है, उसका नंगा सच. रिश्तों के टूटने की कशिश. एक बेचैनी. और सबसे बड़ी चीज मनुष्य के अन्दर की गहरी संवेदना, फोन कटते ही और घनीभूत हो जाती है. बधाई. "

*Rani Thompson
"मन रूंध गया। "

*Nira Rajpal
"दिखना कम हो गया है
अब पढ़ना - पढ़ाना छूटता जा रहा है।
तुम्हारी कविता वाली पुस्तक मिल गई है
समीक्षा भी लिख देंगे
एक लड़की आती है
पी एच डी कर रही है
बोल-बोलकर उससे लिखवा देंगे।
bahut hi reality base poem hai jisme dard ki saaf jhalak dikhayi deti hai"

*Ranju Bhatia कहते बुनते यह लफ्ज़ ..सुन्दर

*Rajeev Chhibber
"yahi zindagi ka sach hai aur marm bhi .ese hi likhte rahiye ashok ji mohyals bandook se ladna jante hain aur kalam se bhi ."

*Rakesh Naraian
"तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है। वह तो चली गई कई बरस हो गए आम का पेड़ देखकर फल खाकर अच्छा लगता था अब और सन्नाटा पसर गया है
wah ..bhabhi ke lagaye aam ke ped ki ukhadne ki ghatna se aaj ki vastvik sthithi ka ahsas keraya aapne ..wah ...bahut hi gahan vedna se ggunthi hue ye panktiyan bahut kuch kah gayi..."

*Kuldeep Singh
"ashok sir
akhir kab tak vastvikta se munh churaya jaye
ek din to jwalamukhi bisfotit hona hi hai
dekhte hain vo sunahla waqt kab aaata hai "

*Ashoke Mehta
"यही हमारी नियति है ,जीवन की सच्चाई को बहुत सुंदर ढंग से आपने प्रस्तुत किया है !"

*Narinder Kumar Vaid "
"Aak kal ke satithi or jeewan ka ekdam sahi ucharan kiya hai aap ne.

*Manish Jain
"nice one."

*Rajesh bali



* Jenny Shabnam
"ashok ji,
aapki kavita itni saralta se behad gahri baat kah jati hai jo aam jiwan se judi hoti hai, behad tathyapurn abhivyakti in shabdon mein...
बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। "
bahut badhau aur shubhkamnayen"


*Abha Khetarpal

"bahut kuchh keh daalti hain hamesha apki panktiyan..."

*अशोक राठी
"बस एक ही बात कहूँगा सर... गागर में सागर ... साधुवाद "

Friday 27 November, 2009

जी भाई साहब !/ अशोक लव


"बस अब कविता- कहानी सब छूट गया है
घुटनों का दर्द बढ़ गया है
तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था
वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है।
वह तो चली गई
कई बरस हो गए
आम का पेड़ देखकर
फल खाकर
अच्छा लगता था
अब
और सन्नाटा पसर गया है।

इधर पानी एक बूँद नहीं पड़ा है
एकदम सूखा पड़ गया है
लोग भूखे प्यासे मर रहे हैं
नक्सली और मार रहे हैं
नेता लोग सब क्या करेंगे?

यहाँ तो एक-एक मिनिस्टर भ्रष्ट है
सी बी आई के छापे पड़े हैं
कई मिनिस्टर छिप-छिपा रहे हैं
खिला-विला देंगे
सब केस बंद हो जाएँगे।

दिखना कम हो गया है
अब पढ़ना - पढ़ाना छूटता जा रहा है।
तुम्हारी कविता वाली पुस्तक मिल गई है
समीक्षा भी लिख देंगे
एक लड़की आती है
पी एच डी कर रही है
बोल-बोलकर उससे लिखवा देंगे।

बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। "

और उन्होंने फ़ोन रख दिया।


Thursday 26 November, 2009

रंगहीन / अशोक लव


हिल गए सब रंग
रंग-बिरंगी रोशनियाँ बिखर गईं
बिखरती चली गईं।

रंगहीन
उत्साहहीन
सुबह-शाम।

क्षितिज के छोर अंधियाले
किसी के आने की
संभावनाएँ।

बिखरन और सिर्फ़ बिखरन
मुट्ठियों से सरकते
पल-पल

आहट
दस्तक
बस
बंद किवाड़ों के पीछे
पसरा ज़िंदगी का रंगहीन कैनवस।

Wednesday 25 November, 2009

रश्मि प्रभा द्वारा की समीक्षा " लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान'

सूर्य और अशोक लव
अशोक लव जी एक बहुआयामी प्रतिभा के विशिष्ट लेखक हैं--उनके विषय में लिखना,मुझे गौरवान्वित तो कर रहा है,पर एक-एक शब्द सूर्य के निकट दीये की मानिंद ही प्रतीत होंगे

अशोक लव जी से मेरे परिचय का माध्यम उनका ब्लॉग बना - "लडकियां छूना चाहती हैं आसमान" विषय ने मुझे आकर्षित किया। लड़कियों के प्रति आम मानसिकता हमसे छुपी नहीं है.....उससे अलग उनकी ख्वाहिशों को किसने परिलक्षित किया , यह जानने को मेरे कदम उधर बढ़े,
'बेटियाँ होती ठंडी हवाएं
तपते ह्रदय को शीतल करनेवाली,
बेटियाँ होती हैं सदाबहार फूल ,
खिली रहती हैं जीवन भर .....'
मैं मुग्ध भाव लिए पढ़ती गई और अपने विचार भी प्रेषित किए, मेरी खुशी और बढ़ी,जब मैंने उन्हें ऑरकुट पर भी
पाया और विस्तृत रूप से उनकी उपलब्धियों के निकट आई।
इनको पढ़ते हुए लगा , समाज की संकीर्ण मानसिकता के आगे लड़कियों की महत्वकांक्षा को इन्होंने बखूबी परिलक्षित किया है;
' लड़कियाँ
अपने रक्त से लिख रही हैं
नए गीत
वे पसीने की स्याही में डुबाकर देह
रच रही हैं
नए ग्रन्थ !'
लड़कियों की खुद्दारी को परिभाषित करती हैं,वरना पूर्व समाज का ढांचा था,
'पुत्रियाँ होती हैं जिम्मेदारियाँ
जितनी जल्दी निपट जाए जिम्मेदारियाँ
अच्छा रहता है..........'
दर्द का एक आवेग उभरता है इन पंक्तियों में -
'पिता निहारते हैं उंगलियाँ
जिन्हें पकड़कर सिखाया था
बेटियों को टेढ़े - मेढ़े पाँव रखकर चलना...........
कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं बेटियाँ '
कविताओं की यात्रा के दौरान मुझे लगा कि आए दिन की घटनाओं से इनकी निजी ज़िन्दगी भी प्रभावित होगी, यानी किसी बेटी की ज़िन्दगी का कोई पक्ष और अपने विचारों की रास थामकर मैंने पूछ ही लिया........मुझे बहुत खुशी हुई ,जब मैंने जाना कि इनकी तीन पुत्रियाँ (ऋचा,पल्लवी,और पारुल),इनके विचारों की उज्जवल प्रवाह हैं, काव्य की स्तम्भ हैं ।
इनकी सूक्ष्म विवेचना इनके सूक्ष्म संवेदनशील मन को दर्शाती है,जो समाज के घृणित घेरे से निकलकर लड़कियों के आसमानी ख्यालों को,उनकी ऊँची उड़ान को, शब्दों की बानगी देती है।
अशोक जी ने स्त्री के हर रूप को सामाजिक कैनवास पर उतारा है और विभिन्न विशिष्ट रंगों से संवारा है - माँ के रूप को चित्रित करते हुए कहा है;
'माँ !
उर्जावान प्रकाशमय सूर्य-सी
रखती आलोकित दुर्गम पथ
करती संचरित हृदयों में
लक्ष्यों तक पहुँचने की ऊर्जा !'
एक युवती,एक बहन,एक पत्नी को शब्दों की अद्भुत बानगी दी है।
भ्रूण ह्त्या के ख़िलाफ़ भी एक लड़की को दृढ़ता दी है -
' माँ !
तुम स्वयं को भूल गई,
तुम भी बालिका थी,
पर नहीं की थी
तुम्हारी माँ ने तुम्हारी ह्त्या
दिया था तुम्हें जन्म
दिया था तुम्हें ज़िंदा रहने का,
जीने का अधिकार !'
इसी समाज का कवि भी है,पर अपनी कलम को तलवार बनाकर पुरुषों की मानसिकता पर हर तरह से वार किया है,जो वन्दनीय है। मन के हर भावों को प्रस्तुत करते हुए , अपनी लम्बी यात्रा के हर अनुभव को सार्थक बनाया है। सत्य का पुट हर कविता में है , जिसने स्त्री के हर दर्द और निश्चय को चित्रमान कर दिया है दुःस्वप्न और वर्तमान के अंतःकरण में खुले आकाश को विस्तार दिया है। सृजन के क्षणों में अचेतन का दर्द अधिक मुखर है,हर कविता जीवंत लगती है -
'बेटियाँ होती हैं मरहम
गहरे-से-गहरे घाव को भर देती हैं
संजीवनी स्पर्श से ...........
लड़की के कोमल स्वरुप को दर्शाती है
मातृत्व को कवि ने 'कविता' का दर्जा दिया है-

'माँ की देह से सर्जित देहें
उसकी कविताएँ हैं
बहुत अच्छी लगती हैं माँ को
अपनी कविताएँ !'
संघर्ष का ताना-बाना रचते हुए कवि ने नारी की जिजीविषा को एक सांकेतिक स्वरुप में पिरोया है;
'तपती है मोम
आग बन जाती है
चिपककर झुलसा देती है !
...

समयानुसार जीवन को मोम बनना पड़ता है..'
कविताओं में शुरू से अंत तक प्रवाह बना रहता है. कविताएँ दिल को छूती हैं। हर सन्दर्भ में कवि की चेतना जागृत है। संकलन की बहुत सारी रचनाओं में प्राणों की आहत वेदना झलकती है ।
रचनाओं के बीच से गुजरते हुए मुझे हर पल एहसास हुआ कि कवि ने सामाजिक विषमता को नज़दीक से महसूस किया है. एक अनुभवी दस्तावेज़ की तरह उनकी भावनाएँ पुस्तक को एक नया आयाम देती हैं।
इनदिनों अपने समय का आइना बनकर लड़कियों कि छवि को दर्शानेवाला धारावाहिक 'बालिका वधू' लड़कियोंकी स्थिति को उजागर करता है । एक13-14साल की लडकी , एक 35वर्ष का पुरूष ! ऐसी बंदिशों से बाहर निकलकर लड़कियों ने अपनी मर्यादा की नई तस्वीर बनाई है , जिसे अशोक लव जी ने अपने काव्य में ढाला है ।
इस काव्य के उज्ज्वल पक्ष को यदि पुरूष समाज पढ़े और लड़कियों के आसमान को मुक्त करे तो बात बन सकती है। युगों से दबाकर रखी गई प्रकृति की सबसे मजबूत शख्सियत को आगे लेकर जाने में अगर पुरुष पाठक सहयात्री की भूमिका निभा सकें तो अपने पूर्वजों की उन गलतियों का प्रायश्चित कर सकेंगे , जो लड़कियों के साथ की गई हैं।
कवि के इस संग्रह का सार यही है।

भाषा की सरलता का ध्यान कवि ने पूरी तरह से रखा है ताकि एक आम परिवेश तक इसमें छुपा संदेश पहुँच सके। *
.....................................................................................................................................
*पुस्तक - लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान *कवि- अशोक लव *प्रकाशन वर्ष-2008, प्रकाशक-सुकीर्ति प्रकाशन,कैथल *मूल्य-100.*कवि सम्पर्क - फ्लैट-363सूर्य अपार्टमेन्ट ,सेक्टर-6,द्वारका,नई दिल्ली-110075 (मो) 9971010063

Monday 23 November, 2009

डॉ चन्द्रमणी ब्रह्मदत्त का पत्र

नारायणी साहित्य अकादमी
पंजीकृत कार्यालय : 220, सेक्टर- 18 ,वीर आवास, द्वारका , नई दिल्ली
पत्राचार कार्यालय : 12/ 109 डी, गीता कालोनी , नई दिल्ली-110031
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संरक्षक : प्रो नामवर सिंह -9811210285, अध्यक्ष : डॉ चन्द्रमणी ब्रह्मदत्त-9311447793,9818182201,सचिव :डॉ पुष्प सिंह ' विसेन '-9873338623
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पत्र सं / 428 /एन एस / ऑफिस/12 नवम्बर / नई दिल्ली

सेवा में
परम आदरणीय
श्री अशोक लव जी
सादर नमस्कार,
माननीय
आपकी ' खिड़कियों पर टंगे लोग ' कृति को पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। माननीया सुषमा भंडारी जी से उपरोक्त कृति मिली जिसमें आपकी बात एवं लघुकथाएँ पढ़ने का मौका मिला। ' सबूत गवाह ' , 'राजनीति बाला', 'बस बलात्कार' , 'औकात', तमाम रचनाएँ धरातल पर रची बसी हैं और आम जन मानस का चित्र प्रस्तुत करती हैं। एवं वर्तमान समाज एवं व्यवस्था का सही मूल्यांकन करती हैं। आपने निःसंदेह एक पुस्तक में वह सामग्री पाठकों को देने का प्रयास किया है जो वर्तमान में कम मिलता है। एवं नए एवं पुराने साहित्यकारों को एक साथ , एक रूप में माला में पुरो दिया है। बधाई स्वीकार करें। नारायणी साहित्य अकादमी आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती है।
शुभकामनाओं के साथ
आपका
डॉ चन्द्रमणी ब्रह्मदत्त
चेयरमैन
नारायणी साहित्य अकादमी
नई दिल्ली