Friday, 27 November 2009
जी भाई साहब !/ अशोक लव
"बस अब कविता- कहानी सब छूट गया है
घुटनों का दर्द बढ़ गया है
तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था
वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है।
वह तो चली गई
कई बरस हो गए
आम का पेड़ देखकर
फल खाकर
अच्छा लगता था
अब
और सन्नाटा पसर गया है।
इधर पानी एक बूँद नहीं पड़ा है
एकदम सूखा पड़ गया है
लोग भूखे प्यासे मर रहे हैं
नक्सली और मार रहे हैं
नेता लोग सब क्या करेंगे?
यहाँ तो एक-एक मिनिस्टर भ्रष्ट है
सी बी आई के छापे पड़े हैं
कई मिनिस्टर छिप-छिपा रहे हैं
खिला-विला देंगे
सब केस बंद हो जाएँगे।
दिखना कम हो गया है
अब पढ़ना - पढ़ाना छूटता जा रहा है।
तुम्हारी कविता वाली पुस्तक मिल गई है
समीक्षा भी लिख देंगे
एक लड़की आती है
पी एच डी कर रही है
बोल-बोलकर उससे लिखवा देंगे।
बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। "
और उन्होंने फ़ोन रख दिया।
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