तुम हो
हाँ तुम हो ,
इन हवाओं में
जिसके स्पर्श कराते हैं
तुम्हारे अस्तित्व की अनुभूति।
तुम हो
हाँ तुम हो ,
झरनों के प्रवाहों में
जिनका कल-कल संगीत
हृदय को स्वयं में डुबो लेता है।
तुम हो
हाँ तुम हो ,
आकाश छूने को लालायित
समुद्र की लहरों में
मेरे स्वप्नों की भांति।
तुम हो
हाँ तुम हो ,
नन्हें शिशुओं की मुस्कानों में
जो भर देती है हृदय में- ममत्व।
तुम हो
हाँ तुम हो ,
वहाँ-वहाँ
जहाँ -जहाँ तक जाती है दृष्टि ।
तुम हो
हाँ तुम हो ,
वहाँ-वहाँ
जहाँ-जहाँ तक नहीं जा पाता
मन,
दृष्टि।
तुम हो ,
बस तुम्हीं हो
और तुम ही हो
यहाँ-वहाँ
वहाँ-यहाँ।
'''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''
०७ नवम्बर २००९
No comments:
Post a Comment