रंगहीन / अशोक लव
हिल गए सब रंगरंग-
बिरंगी रोशनियाँ बिखर गईंबिखरती चली गईं।रंगहीनउत्साहहीनसुबह-
शाम।क्षितिज के छोर अंधियालेकिसी के न आने कीसंभावनाएँ।बिखरन और सिर्फ़ बिखरनमुट्ठियों से सरकतेपल-
पल ।न आहटन दस्तकबसबंद किवाड़ों के पीछेपसरा ज़िंदगी का रंगहीन कैनवस।
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