Tuesday 3 November, 2009

अशोक लव की लघुकथाएँ / कमल चोपड़ा

लघुकथा को साहित्यकार बनने की लघु–विधि माननेवालों की कोई कमी नहीं है, लेकिन अनेक ऐसी प्रतिभाएँ हैं, जो निरंतर नए दृष्टिकोण, विषयों, विचारों के साथ नए शिल्प–प्रयोग लेकर आ रही हैं और विधा को समृद्ध और फलीभूत करने के लिए कृतसंकल्प हैं। अनुभूति की सूक्ष्मता, तीक्ष्णता और गहनता लघुकथा के लिए आवश्यक है, लेकिन लेखकीय दृष्टि के अभाव में इन सूक्ष्म और गहन गुणों की अभिव्यक्ति करते समय रचना के सतही, अस्पष्ट और अपूर्ण रह जाने का खतरा शायद दूसरी विधाओं से लघुकथा में सर्वाधिक है।
लघुकथा का जोर क्योंकि सूक्ष्मता, गूढ़ता, अर्थगर्भिता, तीक्ष्णता और गहनता पर अधिक होता है, इसलिए एक सार्थक लघुकथा के लिए रचनाकार को अतिरिक्त परिश्रम और सृजनात्मक कौशल का परिचय देना पड़ता है।
लघुकथा में जीवन के तीव्र द्वंद्व–दंश, गहन–गंभीर अर्थ, तीक्ष्ण–सूक्ष्म अंश, युगसत्यों एवं तीव्र–तीक्ष्ण प्रश्नों को रेखांकित किया जाना चाहिए, जो कि पाठक को अपने द्वंद्व,अपनी समस्या या अपने प्रश्न प्रतीत हों। गंभीर विचार और सूक्ष्म सत्यों वाली अपनी दृष्टि में संश्लिष्ट लघुकथा ही रचनाकार का प्रतिनिधित्व करती हुई लघुकथा–साहित्य को समृद्ध कर सकती है। अपनी सृजनात्मकता में उत्कृष्ट एवं जीवन के गहन–गंभीर सत्यों से युक्त लघुकथा पाठक को अधिक सजग, सचेत और सतर्क करती है।
अपने परिवेश में रचनाकार जटिल समस्या को उठाता है और उसकी समग्र जटिलता, दुरूहता और भयावहता को मानवीय संवेदना से जोड़कर मानवीय आवेग उत्पन्न करता है। रचनाओं के माध्यम से प्रकट होनेवाला संसार से जोड़कर मानवीय आवेग दृष्टि जागरूकता, प्रतिभा, रचनाधार्मिता या सृजनात्मक क्षमता का परिचायक होता है, वहाँ युगसत्य और युगबोध की सही अभिव्यक्ति भी होता है।
रचनाकार अपनी अनुभूति की प्रकृति और दृष्टि के बूते पर संसार का निर्माण करता है। समसामयिक जीवन की विषमताओं, विडंबनाओं, विकृतियों और विशेषताओं पर तीखा प्रहार लघुकथा की विशेषता है।समकालीन लघुकथा के परिदृश्य के देश और समाज में व्याप्त लूट–खसोट, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, शोषण, अमानवीयता, असमानता,, उत्पीड़न,दमन, निर्धनता, भूख आदि अमानवीय स्थितियों को देखकर किसी भी संवेदनशील रचनाकार का इसे लेकर चिंतित, क्षुब्ध और व्यग्र होकर सामाजिक मुक्ति में अपनी समझ और सोच का प्रयोग करना स्वाभाविक है।
अशोक लव की लघुकथाएँ उनकी इस सामाजिक चिंता का परिणाम हैं।
अशोक लव की लघुकथाओं में समाज में कथ्यगत प्रभाव, व्यंजना के माध्यम से अनेक स्तरों पर प्रकट हुआ है। सीधी–सी लगनेवाली बात, गहरे अर्थ रखती हैं। ऐसे कई सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और नैतिक प्रश्न, जो संसार–भर के साहित्य में बार–बार आते रहे हैं, अशोक लव की लघुकथाओं में भी उसी भयावहता से प्रस्तुत हुए हैं, शायद इसलिए कि ये प्रश्न आज भी अनुत्तरित है।।
अशोक लव की लघुकथाओं के मूल में आर्थिक अभाव और अर्थतंत्र की विषमताओं के कारण मानवीय मूल्यों, रिश्तों और संवेदनाओं के ह्रास की चिंता है। कुछ लघुकथाओं में मानवीय स्थितियों की जटिलता का सूक्ष्म चित्रण भी हुआ है।
‘चमेली की चाय’ में राजनीतिक छल–छद्म और पाखंड द्वारा मानवीय संवेदनाओं के ठगे जाने को उकेरा गया है। क्षेत्रीय आयुक्त के शब्दों में ‘भोर के चार बजे हम रामदीन के घर लौटे। चमेली ने फिर चाय बनाई। अब उसमें पहले जैसी कड़वाहट न थी।’
‘मृत्यु की आहट’ मानवीय संवेदनाओं की मृत्यु की आहट का अहसास कराती है। बेटे का माँ को मृत्यु के मुँह में छोड़ जाना उसकी संवेदनाशून्यता का परिचायक है। उसका संबंध की लाभ–हानि को तौलते हुए मानवीय मूल्यों को नकार देना भयावह है। बेटे का लौटना और माँ का कोठरी की ओर बढ़ना मानवीय संवेदनाओं को झकझोरता है, झिंझोड़ता है।
‘पार्टी’ में आर्थिक अभावों के चलते आदमी के इतना अंतर्मुखी, सहनशील, संतुष्ट एवं व्यावहारिक हो जाने का चित्रण बखूबी हुआ है। संपन्न वर्ग द्वारा किए गए अपमान के लिए उसके पास अपने ही तर्क हैं। ‘अरे! बुरा कैसा मानना। दीदी का मुझ पर कितना स्नेह है। तभी तो कह रही थी....।’’
‘मांजी’ में संबंधों को इस्तेमाल करने पर उतरी अमानवीयता का चित्रण हैं।
‘ अविश्वास’ में पति–पत्नी के बीच तैरते अविश्वास का सहज चित्रण है।
‘बलिदान’ और ‘लुटेरे’ लघुकथाओं में अपनों द्वारा अपनों के शोषण एवं लूट का भयावह चित्रण है।
‘अपना घर’ में पुत्र एवं उसके परिवार के होने के बावजूद पिता का आश्रम में रहना उसी पारिवारिक टूटन का ही एक और चित्र है।
‘दरार’ और ऐसी कई लघुकथाओं में मानवीय संबंधों और मूल्यों के टूटते चले जाने की स्थितियाँ बार–बार आई हैं। अशोक लव की ज्यादातर
लघुकथाओं में मध्यवर्गीय परिवारों की टूटती–बनती दुनिया की यथार्थ तस्वीर हैं। लघुकथाओं में विविधता है।राजनीतिक छल–छद्म और पाखंड को लेखक ने ‘प्रतिशोघ’ और ‘एक ही थैली के चट्टे–बट्टे’ लघुकथाओं में तल्खी के साथ बेपर्द किया है।
अर्थतंत्र में फँसे आदमी के छोटे होते जाने की प्रक्रिया के पीछे आर्थिक अपराधी किसी तरह सक्रिय हैं, यह ‘नयी दुकान’ जैसी कुछ लघुकथाओं में रेखांकित हुआ है।
भ्रष्टाचार के विभिन्न रूपों का ‘एक हरिश्चन्द्र और’, ‘कफनचोर’, ‘नए रास्ते’, ‘साक्षात्कार’ जैसी कुछ लघुकथाओं में यथार्थ अंकन हुआ है। रचनाओं के माध्यम से मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए लेखक ने कुछ ऐसे पात्रों को गढ़ा है, जो मानवीयता के लिए संघर्षशील हैं, जैसे ‘डरपोक’ का कपिल, ‘एक हरिश्चंद्र और’ का हरिचन्द्र साहनी, ‘सलाम दिल्ली’ का अशरफ आदि। ऐसे पात्रों की उपस्थिति आश्वस्त करती है, लेकिन प्रश्न उठता है कि समाज में ऐसे संघर्षशील पात्रों की कमी क्यों है?
अशोक लव की सहज भाषा अपने परिवेश को यथार्थ रूप में प्रकट करने में सक्षम है। उन्होंने परिवेश का चित्रण करने के लिए जिस तरह की भाषा चाहिए, वह उनके पास है: ‘अवसरवादी व्यवस्था में उसके क्रांतिकारी विचार मंदिर की घंटियाँ बजाने लगे थे।’(घंटियाँ) ‘दो कदम की घर की दूरी गणेशी के लिए कोस–भर की हो चुकी थी।’ (हिसाब–किताब) ‘फेफड़ों में सोई बलगम जग गई थी।’ (अपना घर) कई जग सीमित प्रभाव, अस्पष्ट दृष्टि और सतही कथ्य तथा सीमित उद्देश्य भी इन रचनाओं की सीमा बना है। रचनाकार एक विसंगत स्थिति को लेकर उसकी विसंगति में ही खो गया है और अपने उद्देश्य की सिद्धि को उसने बीच में ही छोड़ दिया है।
कहीं–कहीं जिंदगी से बाहर की असामान्य–सी स्थितियाँ भी इन रचनाओं के मूल में आई हैं।‘अविश्वास’, ‘ठहाके’, ‘नानी का घर’, ‘कृष्ण की वापसी’, ‘रामौतार की गाय’ आदि ऐसी ही लघुकथाएँ हैं। जहाँ कुछ लघुकथाएँ शिल्प और कथ्य की दृष्टि से परिपक्व और सुगठित हैं, वहीं कुछ वैचारिक स्तर पर अस्पष्ट रह गई हैं। इस संग्रह 'सलाम दिल्ली' की लघुकथाओं में चौंकनेवाली स्थितियों के स्थान पर तमाम क्षरण के बीच पीडि़त, शोषित और अशांत व्यक्ति का नैतिक बल, विवेक और संघर्ष–चेतना अभी बाकी है। यह अशोक लव की परदु:ख–कातरता और जीवन के प्रति आस्था तथा उसे अभिव्यक्त करने की क्षमता का भी परिचायक है। अशोक लव से ‘मृत्यु की आहट’, ‘चमेली की चाय’ जैसी कुछ और लघुकथाओं की आशा रखना स्वाभाविक है। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टि, अतिरिक्त् कुशलता, सृजनात्मक धैर्य, सजगता, मौलिक विचार, नवीन दृष्टिकोण किसी भी रचना की उत्कृष्टता के लिए आवश्यक हैं। संख्या में बहुत कम उन लघुकथाओं को ढूँढ पाना न केवल जोखिम का काम है, अपितु, धैर्य, तटस्थता, परिश्रम और संतुलन की परीक्षा भी है। अशोक लव के पास जीवन के सूक्ष्म,गहन और गूढ़ सत्यों को अभिव्यक्त करने की क्षमता है।

*लघुकथा.कॉम ( अक्टूबर २००९ अंक ) से
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