Wednesday 19 December, 2012

यादें

वक्त अपनों को न जाने कहाँ है ले गया l
हमें सिर्फ यादों का सिलसिला है दे गया ll
*अशोक  लव

Wednesday 28 November, 2012

कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती की शुभकामनाएँ !

ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਚੜਦੀ  ਕਲਾ,ਤੇਰੇ ਭਾਣੇ ਸਰਬਤ ਦਾ ਭਲਾ ! कार्तिक पूर्णिमा और गुरु नानक जयंती की हार्दिक  शुभकामनाएँ !| 

Wednesday 14 November, 2012

अशोक लव की लघुकथा 'सरजू बड़ा हो गया ' का असमी में अनुवाद

সৰজু ডাঙৰ হ’ল….

সৰজুৱে চাকৰি পালে৷ ইয়াতে কোপানী এটাত ঘৰ সৰা-মোচা, চাফ-চিকুণ কৰা আৰু চাহ-পানী দিয়া, বচ! সি সন্তুষ্ট৷ দুহেজাৰ টকীয়া চাকৰিৰে সি চলি যাব৷ গাৱঁৰ পৰা অহা ল’ৰাবোৰৰ সৈতে ইয়াৰে কোনোবা এটা কোঠাত থাকিব সি৷ পাঁচশ টকা ভাড়া দিব৷ তাৰ গাৱঁৰে তুলসী দুবছৰ আগতে বিহাৰৰ পৰা দিল্লীলৈ আহিছিল৷ সি দুটা কোঠাৰ ঘৰ এটা ভাড়া লৈ আছে৷ তাত আঠটা ল’ৰা থাকে৷ কেঁচা-পকী ঘৰৰ অবৈধ কলোনী৷
সি তুলসীৰ ওচৰলৈ যোৱাত তুলসীয়ে আচৰিত হৈ সুধিলে, “ আৰে তই আমাৰ লগত থাকিবিনে? তোৰ দেউতা দেখোন ইয়াতে থাকে৷ তেওঁৰ লগত থাকগৈ৷”
সৰজুৰ মুখ খঙতে ৰঙা হৈ পৰিল৷ তাৰ মুখমন্ডলত কষ্টৰ ভাৱ এটাও প্ৰকাশ পাই উঠিল৷ সে ভেকাহি মাৰি ক’লে, “দেউতা? কেনেকুৱা দেউতা? মোৰ মা গাৱঁত পৰি আছে৷ আৰু দেউতাই ইয়াত বেলেগ তিৰোতা ৰাখিছে৷ মদ খাই মতলীয়া হৈ থাকে৷ মোৰ মুখ দেখিলেই খঙতে ৰ’ব নোৱাৰা হয়৷ মাৰিব ধৰে৷ তই তোৰ লগত থাকিব দিলে মাহে পাঁচশ টকা ভাড়া দিম৷ কুকুৰৰ নিচিনা মাৰ খোৱাৰ পৰাতো সাৰি যাম৷ কিছু টকা মালৈকো পঠিয়াম৷
 
তুলসীয়ে অবাক হৈ তাৰ মুখলৈ চাই আছিল৷ যোৱা কালিলৈকে গাৱঁৰ গলিয়ে গলিয়ে নঙঠা হৈ ল’ৰি ফুৰা সৰজু পোন্ধৰ বছৰ বয়সতে কিমান ডাঙৰ হৈ গ’ল৷
অশোক লৱৰ হিন্দী লঘু কথা  'সৰজু বড়া হো গয়া' ৰ অনুবাদ

Translation of  Dr. Ashok Lav's लघुकथा  सरजू बड़ा हो गया

Friday 9 November, 2012

अशोक लव की लघुकथा ' सामने वाला कमरा '

शैवाल कक्षा में खिड़की के पास बैठता था.मैं निराला की कविता पढ़ा रहा था.वह बहुत देर से खिड़की से बाहर देखे जा  रहा था. विद्यार्थियों का ध्यान इधर-उधर हो तो मुझसे पढ़ाया नहीं जाता.उसकी ओर तीन-चार बार देख चुका था.उसे तो मानो किसी की चिंता ही नहीं थी.वह कक्षा में हमेशा प्रथम आता था.पर इस प्रकार की अनुशासंहीनता तो असहनीय थी.
उसके पास जाकर खड़ा हो गया. उसे कुछ पता न चला.
' कहाँ खोए हुए हो ?'-उसे कंधे से पकड़कर झकझोरते हुए कहा.
'सर ,वह .....' -वह घबरा गया. फिर एकदम खड़ा हो गया.
पूरी कक्षा हँस पडी.
' बैठ जाओ ,कविता पढ़ा रहा हूँ. ध्यान नहीं दोगे तो समझ नहीं पाओगे .' -उसे बिठाते हुए कहा.
वह रो पड़ा.
घंटी बज गई. पीरियड समाप्त हुआ. स्टाफ़-रुम जाकर भी उसका चेहरा आँखों के सामने आता रहा.एक विद्यार्थी को उसे बुलाने भेजा.
' बैठो शैवाल !' वह आया तो उसे साथ वाली कुर्सी पर बैठने के लिए कहा.वह झिझकते हुए बैठ गया.
' तुम कक्षा में रो क्यों पड़े थे ? मैंने तो कुछ भी नहीं कहा था ?'
' सर,आज माता जी की मृत्यु हुए पूरे दो वर्ष हो गए हैं. साथ वाले अस्पताल में उनकी मृत्यु हुई थी. मैं अस्पताल के  उसी कमरे की ओर देख रहा था.'
मैं अवाक् उसका मुख देखता रह गया. यदि कक्षा में उसे सज़ा दे देता  तो?

Thursday 18 October, 2012

वह और भेड़ें


वह सब्ज़ बाग दिखाकर झुंड में से कुछ भेड़ों को अपने साथ ले गया था. हरी-हरी घास, पीने के लिए झरनों का पानी ...उसने कितने-कितने स्वप्न दिखाए ! भेड़ें वर्षों से झुंड में थीं.लालच में आकर अपनों को छोड़कर चली गई. वह उन्हें अपने साथ जंगल में बहुत दूर ले गया. खूब खिलाया -पिलाया.लालची भेड़ों को लगा वे स्वर्ग में आ गई हैं.उन्होंने पीछे रह गई भेड़ों को मूर्ख कहा और भी न जाने क्या-क्या कहा.भेड़ें उसकी जय-जयकार करती रहीं.एक दिन वह उन्हें छोड़कर न जाने कहाँ चला गया. अब भेड़ें जंगल में भटकती फिर रही हैं.असमंजस में हैं.क्या करें? कहाँ जाएँ ?अपने झुंड में कैसे लौटें? 'वह' स्वार्थी भेड़ों का तमाशा देख रहा है. कुछ भेड़ें पागल होकर पेड़ों से सिर टकरा रहीं हैं. उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. अब उनका क्या होगा,किसी को नहीं पता !

Wednesday 17 October, 2012

कविता / आकाश को छूने से पहले / अशोक लव

किशोरावस्था की सपनीली रंगीन दुनिया
गडमडगड हो गई  

कुवारे कच्चे सपनों का काँच तड़क गया
चुभ गई किरिचें मन-पंखुड़ियों पर
पिता ! क्यों छोड़ दिया तुमने अपना संबल
इतनी जल्दी
अभी तो उतरी ही थीं आँखों में कल्पनाएँ
कैनवस बाँधा ही था
इकट्ठे कर  रहा था रंग
तूलिका कहाँ उठा पाया था बिखर गया सब.
उतर आया पहाड़-सा बोझ कंधों पर
आ खड़ी हुई
जीवन की पगडंडियों में एवरेसटी चुनौतियाँ
छिलते गए पाँव
होते गए खुरदरे करतल
धंसते गए गाल
स्याह होते गए आँखों के नीचे धब्बे.
गमले में अंकुरित हो
पौधे के आकाश की ओर बढ़ने की प्रक्रिया
आरंभ ही हुई थी
कहाँ संजो सका सपने पौधा
आकाश को छूने के.
किशोरावस्था ओर वृद्धावस्था के मध्य
रहता है लंबा अंतराल
जीवन का स्वर्ण-काल
फिसल गया
मेरी हथेलियों में आते-आते.
तुम छोड़ गए मेरे कंधों पर
अपने कंधों का बोझ
इसलिए नहीं चढ़ पाया
यौवन की दहलीज पर
तुम भी नहीं छू पाए थे मेरी भांति
यौवन की चौखट
तुम भी धकेल दिए गए थे
किशोरावस्था से वृद्धावस्था के आँगन में .
तुम्हारे रहते जानता तो पूछता—
क्यों आ जाता है हमारे हिस्से
पीढ़ी –दर-पीढ़ी इतनी जल्दी
यह बुढापा ,
क्यों रख दिया जाता है
बछड़े के कंधों पर
बैल के कंधों का बोझ .
पिता ! तुमने बता दिया होता
तो नहीं उगाता किशोर मन में
यौवन की फसलों के
लहलहाते खेत.

Saturday 13 October, 2012

अशोक लव द्वारा संपादित लघुकथा संग्रह-खिड़कियों पर टंगे लोग

अशोक लव द्वारा संपादित लघुकथा संग्रह-खिड़कियों पर टंगे लोग

Saturday 6 October, 2012

अशोक लव को ' याज्ञवल्क्य पत्रकारिता सम्मान '

मोहयाल सभा देहरादून की ओर से 23 सितम्बर 2012 को पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान के लिए 'याज्ञवल्क्य पत्रकारिता पुरस्कार'से सम्मानित किया गया। मेहता ओ पी मोहन सम्मानित करते हुए।अशोक लव को याज्ञवल्क्य पत्रकारिता सम्मान 

Bhai Mati Das Trust Ludhiana Honored Ashok Lav

BMD Trust Ludhiana honoured Ashok lavon 30th September 2012for editing Mohyal Mitter,  monthly for the last 25 years 



Friday 24 August, 2012

मोहयाल मित्र ,अगस्त 2012 संपादन के 25 वर्ष / अशोक लव

मोहयाल  मित्र ,अगस्त 2012 संपादन के 25 वर्ष / अशोक लव

'मोहयाल मित्र ' पत्रिका का संपादन करते हुए 25 वर्ष/अशोक लव

'मोहयाल  मित्र ' पत्रिका का संपादन करते हुए 25 वर्ष हो गए हैं . जुलाई 2012 के अंक के साथ 25 वर्ष पूरे हुए हैं। इन वर्षों में अनेक सुखद अनुभव हुए। वस्तुतः इस प्रकार की पत्रिकाओं का अपना पाठक -वर्ग होता है। किसी विशेष समुदाय से संबद्ध होने के कारण इनका स्वरूप सामाजिक अधिक होता है,साहित्यिक कम। जब मैंने इसका संपादन  संभाला तब हिन्दी का एक पृष्ठ होता था।आज स्थिति यह है कि हिन्दी के पृष्ठों की कोई सीमा नहीं है। इन 25 वर्षों में अनेक युवाओं को लेखक-पत्रकार बनाने में सहयोग किया,प्रोत्साहित किया। अनेक प्रतियोगिताएँ आयोजित करके हिंदी भाषा में लेखन के लिए पुरस्कृत  किया। सुखद लगता है। जनरल मोहयाल सभा संस्था की यह पत्रिका देश की सबसे पुरानी स्थापित और लगातार प्रकाशित होने वाली पत्रिका है। इसका प्रकाशन सन 1891 में कुछ समर्पित मोहयालों ने किया था। लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसका उल्लेख है।
बाएं से-सर्वश्री योगेश मेहता (सेक्रेटरी यूथ एंड कल्चर,जी एम एस),संजीव बाली (सेक्रेटरी यूथ ,मोहयाल सभा यमुनापार )मेहता ओ पी मोहन (सीनियर वाइस प्रेसिडेंट ,जी एम् एस),अशोक लव, के के बाली (प्रेसिडेंट मोहयाल  सभा,जनकपुरी,दिल्ली),श्री एल पी मेहता (सेक्रेटरी मोहयाल सभा ,देहरादून ),अशवनी बक्शी (सह-सचिव,यूथ एंड कल्चर,जी एम् एस,सेक्रेटरी मोहयाल सभा अम्बाला ),पीछे खड़े श्री एस के छिब्बर ( फायनेंस सेक्रेट्री जी एम् एस )
12 दिसंबर 2012 को जनरल मोह्यल सभा की मीटिंग में 'मोहयाल सभा ,यमुनापार दिल्ली ' और 'मोहयाल सभा फरीदाबाद ' की ओर  से सम्मानित किया गया.श्री संजीव बाली और श्री रमेश दत्ता को इस आयोजन के लिए धन्यवाद !

गुलाम नबी आजाद को ईद मुबारक देते हुए

गाँधी ग्लोबल फैमिली संस्था की ओर से ईद के अवसर पर जम्मू-कश्मीर हाउस में 20 अगस्त को ईद मिलन समारोह आयोजित किया गया .इसकी अध्यक्षता मध्य प्रदेश और छतीसगढ़ के पूर्व मंत्री श्री सत्य नारायण शर्मा ने की.इस अवसर पर नागालैंड,नेपाल,जम्मू-कश्मीर,हैदराबाद,पंजाब और अन्य प्रान्तों से आए संस्था के सदस्यों ने ईद पर संदेश दिए। इसके पश्चात एयर मार्शल अनिल चोपड़ा के नेतृत्व में सभी सदस्य गुलाम नबी आजाद के निवास पर गए। संस्था के उपाध्यक्ष श्री एस पी वर्मा के साथ सबने उन्हें ईद की मुबारक दी।गुलाम नबी आजाद   संस्था के अध्यक्ष हैं।
ईद के अवसर पर 20 अगस्त को भारत सरकार के मंत्री श्री गुलाम नबी आज़ाद को बधाई देते हुए श्री सुनील दत्ता के साथ ,उनके निवास पर .

Tuesday 29 May, 2012

सुप्रसिद्ध लेखिका एवं समाजसेवी जेन्नी शबनम से अशोक लव की बातचीत

1.आपकी रुचि साहित्य की ओर कैसे हुई ?
* साहित्य के प्रति रुचि  कब से है, इस विषय पर कभी सोचा  नहीं. लेकिन इतना ज़रूर है कि पढ़ने-लिखने के प्रति अभिरुचि बचपन से रही है| मेरे माता-पिता शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए थे, अतः हर तरह की पुस्तकों से घर भरा रहता था. बचपन से ही  माता-पिता को हर वक़्त लिखते-पढ़ते देखती रही, इसलिए मेरी भी आदत पढ़ते रहने की हो गई| बचपन में कुछ वर्ष गाँव में बीता.   दादी से रामायण, महाभारत, गीता, लोक-कथाएँ  , कबीर, रहीम के दोहे - भजन इत्यादि सुनती रहीशायद तभी से इन सब के प्रति रूचि जागती गई| मेरी शिक्षा बिहार में हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल से हुई है और उस समय मैट्रिक और आई.ए. में हिंदी विषय लेना अनिवार्य था| बी.ए. तक अंग्रेजी भी एक विषय रहा, जिसमें अंग्रेजी साहित्यकारों को पढ़ा | हिंदी के गद्य और पद्य  मुझे बहुत पसंद थे| जब कॉलेज जाना शुरू किया  तो उन्हीं दिनों  ''शिवानी'' द्वारा लिखित उपन्यास 'सुरंगमा' पढ़ा | वह  मुझे इतना ज्यादा पसंद आया कि शिवानी के कई उपन्यास, कहानियाँ  और अन्य रचनाएँ पढ़ गईउसके बाद ''अमृता प्रीतम'' की ''मोती,सागर और सीपियाँ'' पुस्तक पढ़ी, फिर तो अमृता जी की सभी रचनाएँ एक- एक कर पढ़ना शुरू कर दिया. शायद वही समय था जब मेरे लिखने का दौर भी शुरू हुआ था|
2.आपने कविता को ही अभिव्यक्ति का माध्यम क्यों चुना?
* मन की अभिव्यक्ति के  माध्यम कविता लेखन को मैनें चुना नहीं, बल्कि स्वतः हीं मेरे जीवन का हिस्सा बनती चली गई| कविता हीं सिर्फ मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम हो ऐसा नहीं है| सामजिक विषयों पर अपने विचार लेख के रूप में भी लिखती रही हूँ| लेख में किसी खास विषय या मुद्दे पर तथ्य के साथ उस विषय पर मेरे अपने विचार होते हैंकविताएँ लिखना मेरा शौक रहा है, अपनी मनःस्थिति कविता के माध्यम से ज्यादा सहजता से कह पाती हूँ| कविता के द्वारा मेरे अपने मन की वो बातें जो किसी से बाँट नहीं सकती आसानी से लिख लेती हूँ| या किसी और की बात जो मन को गहरे में छू जाती है शब्दों में लिख देती हूँ, बिना ये बताये कि उस रचना का पात्र कौन है| मुझे लगता कि कविता एक तरह से मेरी मित्र है जिसे मैं अपनी सभी बात कह सकती हूँ, और सिर्फ कविता हीं जान सकती कि कौन सी बात मेरी है और किस कविता में किसी और के भाव हैं| कविता मुझसे नहीं पूछती कि ऐसा क्यों लिखा या किसपर लिखा? अंतर्मन की गूढ़ अवस्था की अनुभूतियों को शब्द में ढ़ाल कर मन की अभिव्यक्ति को कविता का रूप देकर मन को राहत और संतुष्टि मिलती है|

3.
आपकी कविताओं में भावों की विविधता है. आपकी दृष्टि में आपको अपनी किन
भावों की कविताएँ अच्छी लगती हैं?
 वैसे तो मेरी सभी रचनाएं भावना-प्रधान है, परन्तु इंसानी रिश्तों से जुड़ी मेरी रचना मुझे ज्यादा पसंद है, जिसमें स्त्री-मन और समाज की कठिनाइयों का चित्रण है|

4.
लेखन के अतिरिक्त आप सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं. समाज-सेवा के
लिए आपको कहाँ से प्रेरणा मिली?
>>> लेखन से मेरा रिश्ता तो बाद में जुड़ा, सामजिक कार्यों से रिश्ता जन्म से हीं जुड़ गया था| मेरे पिता भागलपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर थे साथ हीं गांधीवादी और साम्यवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक होने के कारण विभिन्न सामजिक-कार्यों से जुड़े थे| मेरी माँ इंटर स्कूल में प्राचार्या थी, साथ हीं बहुत सारे सामजिक संगठनों से सक्रिय रूप से सम्बद्ध हैं| दोनों को हीं समाज-सेवा में संलग्न देखी हूँ, उनके साथ बचपन से हीं इन सब में हिस्सा लेती रही हूँ| एक तरह से कहा जा सकता कि समाज सेवा की प्रेरणा मेरे माता पिता के द्वारा विरासत में मुझे मिली है| और अब पति की सोच और साथ से यह कार्य सुचारू रूप से चल रहा है|

5.
आप किन क्षेत्रों में समाज-सेवा कर रही हैं ?
>>>मेरा समाज-सेवा का मुख्य क्षेत्र शिक्षा है| एक गैर-सरकारी संगठन के तहत मैं अपने पति के साथ समाज सेवा के कार्य से जुड़ी हूँ| इसमें एक बी.एड कॉलेज है, डीपीएस सोसाइटी के साथ संयुक्त उपक्रम (joint venture) के द्वारा डीपीएस भागलपुर है, और उसी कैम्पस में आस पास के ग्रामीण बच्चों को मुफ्त शिक्षा, पाठ्य सामग्री, नाश्ता और ड्रेस दिया जाता है| साथ हीं आधुनिक तकनीक द्वारा शुद्ध किया गया ४० से ५० हज़ार लीटर जल का वितरण समूचे भागलपुर शहर में प्रतिदिन मुफ़्त किया जाता है|

6.
शिक्षा के क्षेत्र में आप अत्यंत सक्रिय हैं. इस क्षेत्र को आपने
प्राथमिकता क्यों दी?
शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज में सार्थक समूल परिवर्तन लाया जा सकता है| बच्चों को अगर बचपन से सही दिशा और सोच मिले तो निश्चित हीं हम एक स्वस्थ चेतन समाज की उम्मीद कर सकते हैं| डी.पी.एस स्कूल में छात्र और छात्राओं के लिए अलग अलग छात्रावास की व्यवस्था की गई है, ताकि आस पास के क्षेत्र के बच्चों को समान शिक्षा मिल सके जो सिर्फ महानगरों में प्राप्त है| आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और पिछड़े वर्ग की लड़कियों को शिक्षा मिल सके ये भी बेहद ज़रूरी है| इसलिए समाज-सेवा केलिए शिक्षा का क्षेत्र सबसे उपयुक्त लगा|

7 . "
शिक्षा के माध्यम से समाज के स्वरूप को परिवर्तित किया जा सकता है"
-
क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? यह परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है?
>>> मैं इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि शिक्षा के माध्यम से समाज के स्वरुप को परिवर्तित किया जा सकता है| सिर्फ साक्षर नहीं शिक्षित होना ज़रूरी है, और शिक्षित समाज से हीं हम किसी भी प्रगति की उम्मीद कर सकते हैं| शिक्षा के माध्यम से उचित अनुचित की सोच, समझ और चेतना विकसित होती है| और यही चेतना इंसान को सभ्य और सुसंस्कृत बनाती है| फलतः एक शिक्षित समाज की स्थापना हो सकती है और समाज के स्वरुप को प्रगतिशील दिशा में परिवर्तित किया जा सकता है|

8 .
सामाजिक कार्य करते समय पुरुष की अपेक्षा नारियों को अधिक संघर्ष
करना पड़ता है. आपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तालमेल कैसे रखा है?
 सामजिक कार्य को सामान्यतः कार्य की श्रेणी में रखा नहीं जाता है क्योंकि उससे आर्थिक उपार्जन नहीं होता| किसी भी नारी को जो घर से बाहर कोई भी काम करती है उसे हमेशा हीं पुरुष से अधिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसपर कार्य की दोहरी जवाबदेही हो जाती है|
पारिवारिक और सामजिक जीवन में तालमेल यूँ तो बहुत मुश्किल होता है रखना|
मेरे पति की दिनचर्या काफी व्यस्त है, अतः पारिवारिक जवाबदेही के कारण
नौकरी काफ़ी पहले छोड़ दी थी, पर अन्य ऐसे काम में संलग्न रही हूँ जिसमें
कार्य-अवधि की बंदिश नहीं रही, फलतः परिवार उपेक्षित नहीं हुआ| तालमेल
रखने में मानसिक परेशानी तो रहती हीं है|

9.
प्रत्येक  व्यक्ति  को जीवन के किसी- न-किसी किसी मोड़ पर कठिन
परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. आपके जीवन में भी क्या ऐसे क्षण आए
हैं ?
मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे मोड़ आयें हैं, जब कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ा है| करीब १२ साल की उम्र में मेरे पिता का एक साल की लम्बी बीमारी के बाद देहांत हो गया| और एक साथ जैसे आर्थिक, मानसिक और सामजिक परेशानी आ गई| परन्तु मेरी माँ की दृढ़ता और उनके मित्रों के सहयोग से परेशानी सुलझती भी रही| बाद में विवाहोपरांत भी कई बार आर्थिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा| जब शादी हुई उसी समय पति प्राइवेट कंपनी में नौकरी शुरू किये थे, और चूकि शादी अपनी मर्ज़ी से हुई थी अतः ससुराल से किसी प्रकार का सहयोग न मिला| कभी कभी मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता था कि लगता जीवन जीना अब मुमकिन नहीं| बहुत बार तो ज़िन्दगी में ऐसे भी क्षण आये जब किसी तरह हम दोनों दिन में एक बार खाना भी खा पाते थे| बाद में हम दोनों हीं काम करने लगे जबतक जीवन की रफ़्तार अपनी सहज गति पर नहीं आ गई|

10.
माता जी ने आपके जीवन में अहम भूमिका निभाई है. उनके संघर्षों के मध्य
आपने क्या महसूस किया?
जब मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय मेरी माँ की उम्र काफ़ी कम थी| अचानक आये आर्थिक और मानसिक संकट को सहजता से झेल पाना उनके लिए बहुत मुश्किल भरा समय था| यूँ आर्थिक संकट बहुत ज्यादा नहीं आया क्योंकि मेरी माँ स्कूल में शिक्षिका थी, फिर भी खर्च चलाना मुश्किल होता था| जबकि मुझसे एक साल बड़ा मेरा भाई बहुत मेधावी छात्र रहा है, उसे छात्रवृति मिलती रही और उसने हमारे पैतृक गाँव से मैट्रिक किया, फिर इंटर के बाद आई.आई.टी कानपुर, और फिर अमेरिका से अपनी पढ़ाई पूरी किया| घर में पुरुष सदस्य नहीं होने के कारण कई तरह की समस्या का सामना करना पड़ा| माँ को मेरी दादी का बहुत ज्यादा संबल मिला| मैं ये सब देख कर उस समय से हीं ज़िन्दगी को समझने लगी थी| अचानक पिता के जाते हीं रिश्तेदारों का बेगानापन, समाज की क्रूरता, परंपरा की कठिन बेड़ियाँ, पुरुष के बिना स्त्री के प्रति बदलता समाज का नजरिया, बहुत कुछ उस उम्र में हीं सीख गई, जो कभी कभी पूरी उम्र में कोई नहीं सीख पाता| मैं अपनी माँ के सबसे करीब रही क्योंकि भाई भी बाहर रहा, अतः ज़िन्दगी के सभी कड़वे अनुभव जो माँ ने झेले उसे मैं देखती और समझती रही हूँ|

11.
आपकी शिक्षा में अनेक व्यवधान आए फिर भी आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने
के मार्ग पर अग्रसर रहीं. यह यात्रा कैसे अनुभव समेटे है?
एक शिक्षित मध्यवर्गीय परिवार की लड़की की तरह मेरी भी पढ़ाई आम सरकारी स्कूल में हुई| भविष्य केलिए कोई खास योजना या दिशा तय किये बिना एम.ए और एल.एल.बी करने के बाद शोध-कार्य शुरू की, लेकिन काफी लंबा समय लग गया| नौकरी और बच्चों की परवरिश के कारण वक़्त पर कार्य पूरा न कर सकी| दोबारा से सारा कार्य करना पड़ा और मेरे पति के सहयोग से अंततः मेरा शोध-कार्य पूरा हो सका| इस बीच बिहार से व्याख्याता केलिए लिखित परीक्षा (BET) भी पास कर ली| यूँ तो ज़िन्दगी बहुत उबड़ खाबड़ रास्ते से गुज़री है, परन्तु बहुत बड़ा व्यवधान नहीं आया शिक्षा के क्षेत्र में|

12.
वर्तमान में आप किन कार्यों में संलग्न हैं?
पिछले ८ साल से सर्वोच्च न्यायलय में अधिवक्ता हूँ| परन्तु अब ज्यादा समय अपनी स्वयं सेवी संस्था के द्वारा समाज कार्य में बीतता है| करीब ५ साल से स्वयं सेवी संस्था में कोषाध्यक्ष हूँ, जिसके तहत डीपीएस भागलपुर चलता है और उसी विद्यालय परिसर में गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है, साथ हीं अन्य समाज सेवा का कार्य होता है| बी.एड कॉलेज की सचिव हूँ जो हमारी संस्था के माध्यम से चलता है| इस संस्था के अंतर्गत ''संकल्प'' के नाम से एक अलग शाखा है जिसके तहत निर्धन क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर कार्य किया जाता है| कुछ अन्य योजनाओं पर कार्य चल रहा है जिसकी रूपरेखा तैयार है|

13.
आपके जीवन की उपलब्धियाँ? सच कहूँ तो जीवन में ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे अपनी उपलब्धि मानूँ| शिक्षा, शादी, नौकरी, बच्चे, परिवार, समाज-सेवा इत्यादि अपने वक़्त के हिसाब से मिलता रहा चलता रहा| जो कुछ जीवन में मिला वक़्त की थोड़ी बेरहमी, तकदीर का थोड़ा सहयोग, अपनों का थोड़ा परायापन, परायों का थोड़ा अपनापन, बस यही है मेरी उपलब्धि| उपलब्धि पर मेरी एक रचना भी है ''मेरी उपलब्धि'', जिसे मैं ख़ुद पर लिखी हूँ|

Friday 20 April, 2012

Friday 6 April, 2012

‘ हिन्दी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार ‘ का लोकार्पण


डॉ शंकर दयाल शर्मा ने  मेरी पुस्तक हिन्दी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार का लोकार्पण ९ फरवरी १९९० को किया था.यह कार्यक्रम उपराष्ट्रपति-निवास में डॉ विजयेंद्र स्नातक के सानिद्ध्य में और दैनिक हिंदुस्तान के संपादक श्री विनोद कुमार मिश्र की अध्यक्षता में हुआ था. डॉ नारायण दत्त पालीवाल, डॉ रणवीर रांग्रा , डॉ गंगा प्रसाद विमल,रायजादा बी डी बाली प्रमुख वक्ता थे. डॉ उपेन्द्र रैणा ने लोकार्पण-समारोह का  कुशल संचालन किया था. इस पुस्तक में डॉ रामेश्वर शुक्ल अंचल, श्री मन्मथनाथ गुप्त, डॉ प्रभाकर माचवे , श्री केदारनाथ अग्रवाल ,पद्मश्री यशपाल जैन, पद्मश्री आचार्य क्षेमचन्द्र सुमन, पद्मश्री चिरंजीत से किए मेरे साक्षात्कार थे. यह सभी साक्षात्कार दैनिक हिंदुस्तान में यादों के झरोखे से स्तंभ में प्रकाशित हुए थे. जिन साहित्यकारों से साक्षत्कार किए थे इस समारोह में उनमें से श्री मन्मथनाथ गुप्त, श्री यशपाल जैन, आचार्य क्षेमचन्द्र सुमन, श्री चिरंजीत उपस्थित थे. मेरे अन्य अनेक साहित्यकार-मित्र भी उपस्थित हुए थे. इनमें सर्वश्री अशोक वर्मा,असीम शुक्ल, धंनजय सिंह, आरिफ जमाल, सुरेश यादव,नरेन्द्र लाहड़, श्रवण राही, भारतेंदु मिश्र, डॉ जगदीश चंद्रिकेश ,सुरेश गौतम,श्री महेंद्र शर्मा, श्री सत्यप्रकाश भारद्वाज,श्री वीरेंद्र जरयाल, श्री राजगोपाल सिंह प्रमुख थे. शिक्षाविदों में श्री एम एल बब्बर और एयर कमाडोर बी के निगम उपस्थित हुए. समरो के लिए एक घंटे का समय मिला था. जब डॉ शंकर दयाल शर्मा जी साहित्य पर बोलने लगे तो पचास मिनट तो उन्होंने ही ले लिए. समारोह लगभग दो घंटे तक चला. जीवन के कुछ क्षण अविस्मरणीय हो जाते हैं ये भी ऐसे ही क्षण थे.

Friday 23 March, 2012

एयर फ़ोर्स के शिक्षा निदेशालय द्वारा ' हिन्दी संगोष्ठी ' में भाग लिया / अशोक लव

अशोक लव, भगवती प्रसाद निदारिया और ए विजय कुमार

ए विजय कुमार संबोधित करते हुए

एयर फ़ोर्स ऑडिटोरियम का कांफ्रेंस हाल , प्रवेश
एयर फ़ोर्स के शिक्षा निदेशालय द्वारा ' हिन्दी संगोष्ठी ' का आयोजन एयर फ़ोर्स ऑडिटोरियम , सुब्रोतो पार्क , नई दिल्ली में तेईस को  मार्च किया गया. इसमें प्रोफ़ेसर ए विजय कुमार (पूर्व अध्यक्ष,शब्दावली आयोग,भारत सरकार ) ने ' हिन्दी भाषा में तकनीकी शब्दों का प्रयोग'  विषय पर प्रतिभागियों को संबोधित किया. मेरा विषय था ' हिन्दी का प्रचार-प्रसार और सरलीकरण '. मेरे पश्चात् प्रशांत कुमार शर्मा ने ' यूनिकोड का प्रयोग' विषय पर अपने विचार रखे.
एयर मार्शल एन के वर्मा मुख्य-अतिथि थे. वे दी एयर फ़ोर्स स्कूल के छात्र रह चुके हैं. संगोष्ठी से पूर्व उनके साथ स्कूल के विषय में बातचीत हुई.वे मेरे विद्यार्थी नहीं थे. श्री कैलाश विद्यालंकार ने उन्हें पढ़ाया था. एयर वाईस मार्शल सत्येन्द्र कुमार अपनत्व से मिले. हिन्दी अध्यापकों की चयन-समिति में हम एक साथ थे. ग्रुप कैप्टन राहुल पाठक संगोष्ठी के संयोजक थे. उनके साथ गत सप्ताह से इस विषय में चर्चाएँ होती रही थीं.
बाएं से-एयर वाईस मार्शल सत्येन्द्र कुमार,अशोक लव, एयर मार्शल एन के वर्मा. पीछे - ए विजय कुमार, भगवती प्रसाद निदारिया और प्रशांत के शर्मा .
बहुत दिनों के पश्चात् हिन्दी के विषय में चर्चा करना अच्छा लगा. 

Wednesday 21 March, 2012

लघुकथा : मृत्यु की आहट / अशोक लव

मेरे लघुकथा-संग्रह ' सलाम दिल्ली ' की यह बहुचर्चित लघुकथा है. यह अनेक अन्य लघुकथा-संग्रहों में संकलित भी की गई है. पाठ्य-पुस्तकों में भी शामिल है.

ए.बी.सिंह ने एक लाख दोहे लिखकर विश्व साहित्य में नया कीर्तिमान स्थापित किया / अशोक लव

ए.बी.सिंह ने एक लाख दोहे लिखकर विश्व साहित्य में नया कीर्तिमान स्थापित किया. अपने प्रिय मित्र की इस उपलब्धि पर गर्व होना स्वाभाविक है.
अभी-अभी उन्होंने अपना दोहा-संग्रह ' धरती' भेंट किया है. इसमें उनके अपने लिखे 14000 दोहे हैं. ए.बी.सिंह की दोहों की लगभग चालीस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.प्रत्येक पुस्तक में सात सौ से अधिक दोहे हैं. बिहारी ने सात सौ दोहों की सतसई लिखकर हिन्दी साहित्य में अपनी पहचान बने थी. ए.बी.सिंह का  कार्य उनकी साहित्य साधना का प्रमाण है. वे सीनियर इंजीनियर हैं.
हिन्दी साहित्य में इस योगदान के लिए हम उन्हें बधाई देते हैं.

Monday 19 March, 2012

निर्लिप्त मन / अशोक लव

निर्लिप्त मन / अशोक लव  
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इंद्रधनुषी रंगों की छटाएँ
मरुथली तपन 
कंपकंपाती शीतल हवाएँ
आड़ी-तिरछी रेखाओं-सी 
पगडंडियाँ 
गिरते -उठते उठकर बढ़ते
निरंतर प्रवाहमयी नदी को भीतर जीते 
जीवन को गतिशील रखे 
पथ पर अग्रसर  
निर्लिप्त मन 
कहता निरंतर 
बढ़ चल बढ़ चल !