घबराहट है
वेदना है
छटपटाहट है
छिन रहा है
बहुत-बहुत प्रिय।
और विवशता है कि
असहाय हैं
मूक दर्शक हैं
न रोक पाने की सामर्थ्य है
न हठ करने का साहस
बस निवेदन और निवेदन
प्रार्थनाएँ ही प्रार्थनाएँ !
कितना असहाय हो जाता है
मनुष्य
और नियति को स्वीकार करने को
हो जाता है बाध्य।
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* ७.१२.०९ , माँ के लिए
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