Friday, 31 October 2008

गिलहरियाँ / *अशोक लव


नन्हीं गिलहरियाँ
पेड़ों से उतरकर
आ जाती हैं नीचे ,
उठा लेती हैं
छोटी- छोटी उँगलियों से बिखरे दाने।
टुक-टुक काटती खाती हैं
टुकर-टुकर तकती हैं ,
लजा जाती है
उनकी चंचलता के समक्ष
कौंधती बिजलियाँ ।
झाडियों में दुबकी बिल्ली
झट से झपटती है
चट से चढ़ जाती है पेड़ों पर
गिलहरियाँ
खूब चिढाती हैं ;
खिसियाई बिल्ली
गर्दन नीचे किए
खिसक जाती है।
गिलहरियों की ओर बढ़ा देता हूँ
मित्रता का हाथ ,
देना चाहता हूँ उढेल
स्नेह ,
बहुत भली होती हैं गिलहरियाँ
पास आकर भाग जाती हैं गिलहरियाँ।


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