
मधुमक्खियाँ गुनगुनाती हैं
सुनाती हैं फूलों को
मधुर गीत ,
पाती हैं फूलों से
गंध , रस
सहेजती हैं इन्हें
नन्हीं -नन्हीं स्निग्थ दूधिया कोठरियों में
जुटी रहती हैं
संवारने में अपना मधुमय संसार।
वे आते हैं
लूटकर ले जाते हैं
मधुमक्खियों के एक-एक दिवस का श्रम
झोंक जाते हैं आंखों में
तेज़ धुआँ।
मधुमक्खियाँ नहीं होतीं हताश
तलाशती हैं नई टहनी
बसाती हैं पुनः
मधुमय संसार।

*अशोक लव (पुस्तक : मधु पराग, अनुभूतियों की
आहटें)
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