Thursday, 23 October 2008

नव आगमन *अशोक लव






गूंजी एक किलकारी
गर्भाशय से निकल
ताकने लगा नवजात शिशु
छत, दीवारें, मानव देहें।

प्रसव पीड़ा भूल
मुस्करा उठी माँ
सजीव हो उठे
पिता के स्वप्न।

बंधी संबंधों की नई डोर
तीन प्राणियों के मध्य ,
हुई पूर्णता
नारी और पुरुष के वैवाहिक संबंधों की।

नन्हें शिशु के संग जागी
आशाएं ।

पुनः तैरने लगे
नारी और पुरुष के मध्य
नए - नए स्वप्न
नवजात शिशु को लेकर।
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( * लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान, पुस्तक से )
*सर्वाधिकार सुरक्षित



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