1.आपकी रुचि साहित्य की ओर कैसे हुई ?
3.आपकी कविताओं में भावों की विविधता है. आपकी दृष्टि में आपको अपनी किन
भावों की कविताएँ अच्छी लगती हैं?
4.लेखन के अतिरिक्त आप सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं. समाज-सेवा के
लिए आपको कहाँ से प्रेरणा मिली?
5.आप किन क्षेत्रों में समाज-सेवा कर रही हैं ?
6. शिक्षा के क्षेत्र में आप अत्यंत सक्रिय हैं. इस क्षेत्र को आपने
प्राथमिकता क्यों दी?
7 . "शिक्षा के माध्यम से समाज के स्वरूप को परिवर्तित किया जा सकता है"
- क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? यह परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है?
8 . सामाजिक कार्य करते समय पुरुष की अपेक्षा नारियों को अधिक संघर्ष
करना पड़ता है. आपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तालमेल कैसे रखा है?
9.प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के किसी- न-किसी किसी मोड़ पर कठिन
परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. आपके जीवन में भी क्या ऐसे क्षण आए
हैं ?
10.माता जी ने आपके जीवन में अहम भूमिका निभाई है. उनके संघर्षों के मध्य
आपने क्या महसूस किया?
11.आपकी शिक्षा में अनेक व्यवधान आए फिर भी आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने
के मार्ग पर अग्रसर रहीं. यह यात्रा कैसे अनुभव समेटे है?
12.वर्तमान में आप किन कार्यों में संलग्न हैं?
13.आपके जीवन की उपलब्धियाँ? सच कहूँ तो जीवन में ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे अपनी उपलब्धि मानूँ| शिक्षा, शादी, नौकरी, बच्चे, परिवार, समाज-सेवा इत्यादि अपने वक़्त के हिसाब से मिलता रहा चलता रहा| जो कुछ जीवन में मिला वक़्त की थोड़ी बेरहमी, तकदीर का थोड़ा सहयोग, अपनों का थोड़ा परायापन, परायों का थोड़ा अपनापन, बस यही है मेरी उपलब्धि| उपलब्धि पर मेरी एक रचना भी है ''मेरी उपलब्धि'', जिसे मैं ख़ुद पर लिखी हूँ|
* साहित्य के प्रति रुचि कब से है, इस विषय पर कभी सोचा नहीं. लेकिन इतना ज़रूर है कि पढ़ने-लिखने के प्रति अभिरुचि
बचपन से रही है| मेरे माता-पिता शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हुए थे, अतः हर तरह की पुस्तकों से घर
भरा रहता था. बचपन से ही माता-पिता को हर वक़्त लिखते-पढ़ते देखती रही, इसलिए मेरी भी आदत पढ़ते रहने की हो गई| बचपन में कुछ वर्ष गाँव
में बीता. दादी से रामायण, महाभारत, गीता, लोक-कथाएँ , कबीर, रहीम के दोहे -
भजन इत्यादि सुनती रही| शायद तभी से इन सब के प्रति रूचि जागती गई| मेरी शिक्षा बिहार में हिंदी माध्यम के सरकारी स्कूल से हुई है और उस समय मैट्रिक और आई.ए. में हिंदी विषय लेना अनिवार्य था| बी.ए. तक अंग्रेजी भी एक विषय रहा, जिसमें अंग्रेजी साहित्यकारों को पढ़ा | हिंदी के गद्य और पद्य मुझे बहुत पसंद थे| जब कॉलेज जाना शुरू किया तो उन्हीं दिनों ''शिवानी'' द्वारा लिखित उपन्यास 'सुरंगमा' पढ़ा | वह मुझे इतना ज्यादा पसंद
आया कि शिवानी के कई उपन्यास, कहानियाँ और अन्य रचनाएँ पढ़ गई| उसके बाद ''अमृता प्रीतम'' की ''मोती,सागर और सीपियाँ'' पुस्तक पढ़ी, फिर तो अमृता जी की सभी रचनाएँ एक- एक कर पढ़ना शुरू कर दिया. शायद वही समय था जब मेरे लिखने का दौर भी शुरू हुआ था|
2.आपने कविता को ही अभिव्यक्ति का माध्यम क्यों चुना?
* मन की अभिव्यक्ति के माध्यम कविता लेखन को मैनें चुना नहीं, बल्कि स्वतः हीं मेरे जीवन का हिस्सा बनती चली गई| कविता हीं सिर्फ मेरी अभिव्यक्ति का माध्यम हो ऐसा नहीं है| सामजिक विषयों पर अपने विचार लेख के रूप में भी लिखती
रही हूँ| लेख में किसी खास विषय या मुद्दे पर तथ्य के साथ उस विषय पर मेरे अपने विचार होते हैं| कविताएँ लिखना मेरा शौक रहा है, अपनी मनःस्थिति कविता के माध्यम से ज्यादा सहजता से कह पाती
हूँ| कविता के द्वारा मेरे अपने मन की वो बातें जो किसी से बाँट
नहीं सकती आसानी से लिख लेती हूँ| या किसी और की बात जो मन को गहरे में छू जाती है शब्दों में लिख देती हूँ, बिना ये बताये कि
उस रचना का पात्र कौन है| मुझे लगता कि कविता एक
तरह से मेरी मित्र है जिसे मैं अपनी सभी बात कह सकती हूँ, और सिर्फ कविता हीं जान सकती कि कौन सी बात मेरी है और किस
कविता में किसी और के भाव हैं| कविता मुझसे नहीं पूछती कि ऐसा क्यों लिखा या किसपर लिखा? अंतर्मन की गूढ़ अवस्था की अनुभूतियों को शब्द में ढ़ाल कर
मन की अभिव्यक्ति को कविता का रूप देकर मन को राहत और संतुष्टि
मिलती है|
3.आपकी कविताओं में भावों की विविधता है. आपकी दृष्टि में आपको अपनी किन
भावों की कविताएँ अच्छी लगती हैं?
वैसे तो मेरी सभी रचनाएं भावना-प्रधान है, परन्तु इंसानी रिश्तों से
जुड़ी मेरी रचना मुझे ज्यादा पसंद है, जिसमें स्त्री-मन और समाज की
कठिनाइयों का चित्रण है|
4.लेखन के अतिरिक्त आप सामाजिक कार्यों में भी सक्रिय हैं. समाज-सेवा के
लिए आपको कहाँ से प्रेरणा मिली?
>>> लेखन से मेरा रिश्ता तो बाद में जुड़ा, सामजिक कार्यों से रिश्ता जन्म से
हीं जुड़ गया था| मेरे पिता भागलपुर विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र विभाग में प्रोफ़ेसर थे साथ हीं गांधीवादी और साम्यवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक होने के कारण विभिन्न
सामजिक-कार्यों से जुड़े थे| मेरी माँ इंटर स्कूल में प्राचार्या थी, साथ हीं बहुत सारे सामजिक संगठनों से सक्रिय रूप से सम्बद्ध हैं| दोनों को हीं समाज-सेवा में संलग्न देखी हूँ, उनके साथ बचपन से हीं इन सब में हिस्सा लेती रही हूँ| एक तरह से कहा जा सकता कि
समाज सेवा की प्रेरणा मेरे माता पिता के द्वारा विरासत में मुझे मिली है| और अब पति की सोच और साथ से यह कार्य सुचारू रूप से चल रहा है|
5.आप किन क्षेत्रों में समाज-सेवा कर रही हैं ?
>>>मेरा समाज-सेवा का मुख्य क्षेत्र शिक्षा है| एक गैर-सरकारी संगठन
के तहत मैं अपने पति के साथ समाज सेवा के कार्य से जुड़ी हूँ| इसमें एक बी.एड कॉलेज है, डीपीएस सोसाइटी के साथ संयुक्त उपक्रम (joint venture) के द्वारा डीपीएस भागलपुर है, और उसी कैम्पस में
आस पास के ग्रामीण बच्चों को मुफ्त शिक्षा, पाठ्य सामग्री, नाश्ता और ड्रेस दिया जाता है| साथ हीं आधुनिक तकनीक द्वारा शुद्ध किया गया ४० से ५० हज़ार
लीटर जल का वितरण समूचे भागलपुर शहर में प्रतिदिन मुफ़्त किया
जाता है|
6. शिक्षा के क्षेत्र में आप अत्यंत सक्रिय हैं. इस क्षेत्र को आपने
प्राथमिकता क्यों दी?
शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिससे समाज में सार्थक समूल परिवर्तन लाया जा सकता है| बच्चों को अगर बचपन से सही दिशा और सोच मिले तो निश्चित हीं हम एक स्वस्थ चेतन समाज की उम्मीद कर सकते हैं| डी.पी.एस स्कूल में छात्र
और छात्राओं के लिए अलग अलग छात्रावास की व्यवस्था की गई है, ताकि आस पास के क्षेत्र के बच्चों को समान शिक्षा मिल सके
जो सिर्फ महानगरों में प्राप्त है| आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों और पिछड़े वर्ग की लड़कियों को शिक्षा मिल सके ये भी बेहद ज़रूरी है| इसलिए समाज-सेवा केलिए शिक्षा का क्षेत्र सबसे उपयुक्त लगा|
7 . "शिक्षा के माध्यम से समाज के स्वरूप को परिवर्तित किया जा सकता है"
- क्या आप इस कथन से सहमत हैं ? यह परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है?
>>> मैं इस बात से पूर्णतः सहमत हूँ कि शिक्षा के माध्यम से समाज के स्वरुप को परिवर्तित किया जा सकता है| सिर्फ साक्षर नहीं शिक्षित होना
ज़रूरी है, और शिक्षित समाज से हीं हम किसी भी प्रगति की उम्मीद कर सकते हैं| शिक्षा के माध्यम से उचित अनुचित की सोच, समझ और चेतना विकसित होती है| और यही चेतना इंसान को सभ्य और सुसंस्कृत बनाती है| फलतः एक शिक्षित समाज की स्थापना हो सकती है और समाज के
स्वरुप को प्रगतिशील दिशा में परिवर्तित किया जा सकता है|
8 . सामाजिक कार्य करते समय पुरुष की अपेक्षा नारियों को अधिक संघर्ष
करना पड़ता है. आपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में तालमेल कैसे रखा है?
सामजिक कार्य को सामान्यतः कार्य की श्रेणी में रखा नहीं जाता है क्योंकि उससे आर्थिक उपार्जन नहीं होता| किसी भी नारी को जो घर से बाहर कोई भी
काम करती है उसे हमेशा हीं पुरुष से अधिक संघर्ष का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उसपर कार्य की दोहरी जवाबदेही हो जाती है|
पारिवारिक और सामजिक जीवन में तालमेल यूँ तो बहुत मुश्किल होता है रखना|
मेरे पति की दिनचर्या काफी व्यस्त है, अतः पारिवारिक जवाबदेही के कारण
नौकरी काफ़ी पहले छोड़ दी थी, पर अन्य ऐसे काम में संलग्न रही हूँ जिसमें
कार्य-अवधि की बंदिश नहीं रही, फलतः परिवार उपेक्षित नहीं हुआ| तालमेल
रखने में मानसिक परेशानी तो रहती हीं है|
पारिवारिक और सामजिक जीवन में तालमेल यूँ तो बहुत मुश्किल होता है रखना|
मेरे पति की दिनचर्या काफी व्यस्त है, अतः पारिवारिक जवाबदेही के कारण
नौकरी काफ़ी पहले छोड़ दी थी, पर अन्य ऐसे काम में संलग्न रही हूँ जिसमें
कार्य-अवधि की बंदिश नहीं रही, फलतः परिवार उपेक्षित नहीं हुआ| तालमेल
रखने में मानसिक परेशानी तो रहती हीं है|
9.प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के किसी- न-किसी किसी मोड़ पर कठिन
परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. आपके जीवन में भी क्या ऐसे क्षण आए
हैं ?
मेरे जीवन में ऐसे बहुत सारे मोड़ आयें हैं, जब कठिन परिस्थितियों से
गुजरना पड़ा है| करीब १२ साल की उम्र में मेरे पिता का एक साल की लम्बी बीमारी के बाद देहांत हो गया| और एक साथ जैसे आर्थिक, मानसिक और सामजिक परेशानी आ गई| परन्तु मेरी माँ की दृढ़ता और उनके मित्रों के सहयोग से परेशानी सुलझती भी रही| बाद में विवाहोपरांत भी कई बार आर्थिक और मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ा| जब शादी हुई उसी समय पति प्राइवेट कंपनी में नौकरी
शुरू किये थे, और चूकि शादी अपनी मर्ज़ी से हुई थी अतः ससुराल से किसी प्रकार का सहयोग न मिला| कभी कभी मानसिक तनाव इतना बढ़ जाता था कि लगता जीवन जीना अब मुमकिन नहीं| बहुत बार तो ज़िन्दगी में ऐसे भी क्षण आये जब किसी
तरह हम दोनों दिन में एक बार खाना भी खा पाते थे| बाद में हम दोनों हीं काम करने लगे जबतक जीवन की रफ़्तार अपनी
सहज गति पर नहीं आ गई|
10.माता जी ने आपके जीवन में अहम भूमिका निभाई है. उनके संघर्षों के मध्य
आपने क्या महसूस किया?
जब मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय मेरी माँ की उम्र काफ़ी कम थी| अचानक आये आर्थिक और मानसिक संकट को सहजता से झेल पाना उनके लिए बहुत मुश्किल भरा समय था| यूँ आर्थिक संकट बहुत ज्यादा नहीं आया क्योंकि मेरी माँ
स्कूल में शिक्षिका थी, फिर भी खर्च चलाना मुश्किल होता था| जबकि मुझसे एक साल बड़ा मेरा भाई बहुत मेधावी छात्र रहा है, उसे छात्रवृति मिलती
रही और उसने हमारे पैतृक गाँव से मैट्रिक किया, फिर इंटर के बाद आई.आई.टी कानपुर, और फिर अमेरिका से अपनी पढ़ाई पूरी किया| घर में पुरुष सदस्य नहीं होने के कारण कई तरह की समस्या का सामना
करना पड़ा| माँ को मेरी दादी का
बहुत ज्यादा संबल मिला| मैं ये सब देख कर उस समय से हीं ज़िन्दगी को समझने लगी थी| अचानक पिता के
जाते हीं रिश्तेदारों का बेगानापन, समाज की क्रूरता, परंपरा की कठिन बेड़ियाँ, पुरुष के बिना स्त्री के प्रति बदलता समाज का नजरिया, बहुत कुछ उस उम्र में हीं सीख गई, जो कभी कभी पूरी उम्र में कोई नहीं सीख पाता| मैं अपनी माँ के
सबसे करीब रही क्योंकि भाई भी बाहर रहा, अतः ज़िन्दगी के सभी कड़वे अनुभव जो माँ ने झेले उसे मैं देखती और समझती रही हूँ|
11.आपकी शिक्षा में अनेक व्यवधान आए फिर भी आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने
के मार्ग पर अग्रसर रहीं. यह यात्रा कैसे अनुभव समेटे है?
एक शिक्षित मध्यवर्गीय परिवार की लड़की की तरह मेरी भी पढ़ाई आम सरकारी स्कूल में हुई| भविष्य केलिए कोई खास योजना या दिशा तय किये बिना एम.ए और एल.एल.बी करने के बाद शोध-कार्य शुरू की, लेकिन काफी लंबा समय लग गया| नौकरी और बच्चों की परवरिश के कारण वक़्त पर कार्य पूरा न कर सकी| दोबारा से सारा
कार्य करना पड़ा और मेरे पति के सहयोग से अंततः मेरा शोध-कार्य पूरा हो सका| इस बीच बिहार से
व्याख्याता केलिए लिखित परीक्षा (BET) भी पास कर ली| यूँ तो ज़िन्दगी बहुत उबड़ खाबड़ रास्ते से गुज़री है, परन्तु बहुत बड़ा व्यवधान नहीं आया शिक्षा के क्षेत्र में|
12.वर्तमान में आप किन कार्यों में संलग्न हैं?
पिछले ८ साल से सर्वोच्च न्यायलय में अधिवक्ता हूँ| परन्तु अब ज्यादा समय अपनी स्वयं सेवी संस्था के द्वारा
समाज कार्य में बीतता है| करीब ५ साल से
स्वयं सेवी संस्था में कोषाध्यक्ष हूँ, जिसके तहत डीपीएस भागलपुर चलता है और उसी विद्यालय परिसर में गरीब
बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाती है, साथ हीं अन्य समाज सेवा का कार्य होता है| बी.एड कॉलेज की सचिव हूँ जो हमारी संस्था के माध्यम से चलता है| इस संस्था के अंतर्गत ''संकल्प'' के नाम से एक अलग शाखा है जिसके तहत निर्धन क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि
पर कार्य किया जाता है| कुछ अन्य योजनाओं पर कार्य चल रहा है
जिसकी रूपरेखा तैयार है|
13.आपके जीवन की उपलब्धियाँ? सच कहूँ तो जीवन में ऐसा कुछ नहीं लगता जिसे अपनी उपलब्धि मानूँ| शिक्षा, शादी, नौकरी, बच्चे, परिवार, समाज-सेवा इत्यादि अपने वक़्त के हिसाब से मिलता रहा चलता रहा| जो कुछ जीवन में मिला वक़्त की थोड़ी बेरहमी, तकदीर का थोड़ा सहयोग, अपनों का थोड़ा परायापन, परायों का थोड़ा अपनापन, बस यही है मेरी उपलब्धि| उपलब्धि पर मेरी एक रचना भी है ''मेरी उपलब्धि'', जिसे मैं ख़ुद पर लिखी हूँ|