Thursday, 20 May 2010

सहित्यकार के रूप में सम्मानपूर्वक जीना चाहिए

साहित्यकार साहित्य का सृजन आत्म संतोष के लिए करता है अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए करता है वह इसे प्रचार का माध्यम अथवा पहचान का माध्यम नहीं बनाता
श्रेष्ठ रचनाकार की पहचान स्वयं बनती चली जाती है उसकी रचनाएँ इसका माध्यम बनती हैं
वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों में साहित्य मुख्य - धारा नहीं रहा अर्थ और राजनीति प्रधान हो गए हैं इसका यह तात्पर्य यह नहीं है कि साहित्य सृजन नहीं हो रहा या आम व्यक्ति ने साहित्य पढ़ना बंद कर दिया है हाँ प्रतिशत बहुत कम हुआ है
कविता लिखना सबके बस का काम नहीं है और कविता से लगाव भी सबके बस का नहीं है इसलिए सृजन करते रहना चाहिए और सहित्यकार के रूप में सम्मानपूर्वक जीना चाहिए
अपनी रचनाएँ पढ़वाने के लिए -मेल पर - मेल नहीं भेजने चाहिएँ

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