Monday, 7 February 2011

हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा ० संपादक : डॉ. रूप देवगुण

लघुकथा का विहंगम परिदृश्य 

डॉ.सुभाष रस्तोगी

यशस्वी साहित्यकार डॉ. रूप देवगुण की सद्य: प्रकाशित संपादित कृति हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा में हरियाणा के 52 लघुकथाकारों की 126 लघु कथाएं संकलित हैं। यह जानकर हैरत होती है कि हरियाणा जैसे छोटे प्रदेश में 56 लघुकथाकार हैं और इस संपादित कृति में कई लघुकथाकार ऐसे भी हैं जिन्होंने समकालीन हिंदी लघुकथा परिदृश्य में बतौर लघुकथाकार और लघुकथा के चिंतक के रूप में अपनी स्वतंत्र पहचान भी स्थापित की है। डा. रूप देवगुण के इस चयन की एक विशेषता यह भी है कि उन्होंने संपादक के सही धर्म का निर्वाह किया है और साहित्यिक बाड़ेबंदी से बचते हुए केवल लघुकथाकारों के रचना कर्म को ही अधिमान दिया है।
यह सच है कि कोई भी कृति चाहे वह संपादित हो या मौलिक, संपादक अथवा रचनाकार के व्यक्तित्व का ही प्राय: प्रतिफलन हुआ करती है। यह काबिलेगौर है कि रूप देवगुण के व्यक्तित्व में जो सहजता और सरलता है, यह कृति अपने संपादकीय कलेवर में उसी सहजता और सरलता के कायांतरण के रूप में सामने आयी है।
रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ हरियाणा के लघुकथा लेखन की तो नुमाइंदगी करती ही है, समकालीन हिंदी लघुकथा के राष्ट्रीय परिदृश्य में हरियाणा के लघुकथाकारों के सार्थक हस्तक्षेप को भी रेखांकित करती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदी लघुकथा का जब भी कोई निरपेक्ष इतिहास लिखा जायेगा तो वह इस चयन में संकलित हरियाणा के लघुकथाकारों यथा विष्णु प्रभाकर, पूरन मुद्गल, सुगनचंद मुक्तेश, सुधा जैन, जितेन्द्र सूद, उर्मि कृष्ण, पृथ्वीराज अरोड़ा, सुखचैन सिंह भंडारी, रामकुमार आत्रेय, अशोक लव, अशोक भाटिया, रूप देवगुण, रामनिवास मानव, मधुकांत, डा. मुक्ता, कमलेश भारतीय, राजकुमार निजात, प्रेमसिंह बरनालवी, मधुदीप, हरनाम  शर्मा, प्रदीप शर्मा स्नेही, सुरेन्द्र ‘गुप्त’, रोहित यादव, सत्यवीर मानव, सुरेंद्र ‘अंशुल’, कमल कपूर, बीजेन्द्र जैमिनी, प्रद्युम्न भल्ला, अरुण कुमार, पवन चौधरी ‘मनमौजी’ तथा अंजु दुआ जैमिनी के अवदान को रेखांकित किये बिना आधा और अधूरा ही रहेगा।
इस कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा डा. रूप देवगुण का एक शोधपरक विवेचनात्मक आलेख ‘हिन्दी लघुकथा को हरियाणा का योगदान’ है जो निश्चय ही समकालीन हिंदी लघुकथा परिदृश्य में हरियाणा के योगदान को रेखांकित करने की दृष्टि से एक संदर्भ कोश की भूमिका निभाता प्रतीत होता है।  सोने पर सुहागा यह होता कि यदि इस लेख का समापन संपादक की कुछ निष्कर्षात्मक टिप्पणियों के साथ हुआ होता। समग्रत: डॉ. रूप देवगुण द्वारा संपादित कृति ‘हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा’ का एक विहंगम परिदृश्य उपस्थित करती है।
० पुस्तक : हरियाणा की प्रतिनिधि लघुकथा ० संपादक : डॉ. रूप देवगुण ० प्रकाशक : सुकीर्ति प्रकाशन, डीसी निवास के सामने, करनाल रोड, कैथल ० पृष्ठ : 199 ०मूल्य : 250 रुपये
दैनिक ट्रिब्यून : 7.2.2011

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