Friday, 20 May 2011

तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया / ग़ालिब

फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तश्ना-ए-फ़रियाद आया

दम लिया था न क़यामत ने हनोज़
फिर तेरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया

सादगी हाये तमन्ना यानी
फिर वो नैइरंग-ए-नज़र याद आया

उज़्र-ए-वामाँदगी अए हस्रत-ए-दिल
नाला करता था जिगर याद आया

ज़िन्दगी यूँ भी गुज़र ही जाती
क्यों तेरा राहगुज़र याद आया

क्या ही रिज़वान से लड़ाई होगी
घर तेरा ख़ुल्‌द में गर याद आया

आह वो जुर्रत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आके जिगर याद आया

फिर तेरे कूचे को जाता है ख़्याल
दिल-ए-ग़ुमगश्ता मगर याद् आया

कोई वीरानी-सी-वीराँई है
दश्त को देख के घर याद आया

मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था के सर याद आया

--ग़ालिब

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