शिक्षक और गुरु में बहुत अंतर है. शिक्षण को व्यवसाय के रूप में अपनाने
वाले शिक्षक हो सकते हैं, गुरु नहीं. गुरु अपने लिए नहीं अपने शिष्यों के
लिए जीते हैं . अपने अर्जित समस्त ज्ञान को शिष्यों को अर्पित कर देते हैं.
गुरु कुम्हार शिष्य कुभ्भ है गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट । अन्तर हाथ सहाय दे बाहर बाहै चोट ॥
शिक्षक अपने भीतर के प्रकाश से शिष्यों के अंधकारमय जीवन को प्रकाशमय कर देते हैं. उन्हें ज्ञानवान बनाते हैं. इसलिए गुरुजन के लिए कहा गया है-- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
ब्रह्मा,विष्णु और महेश बनना असंभव है. यह गुरु को सम्मान देने का भाव है. वर्तमान में श्रेष्ठ शिक्षक होना ही बहुत बड़ी बात है.
ऐसे महान शिक्षकों को नमन जिन्होंने शिक्षक के पद को गुरु के रूप में बदल दिया. अपना समस्त जीवन विद्यार्थियों को समर्पित कर दिया.
गुरु कुम्हार शिष्य कुभ्भ है गढ़ि गढ़ि काढ़े खोट । अन्तर हाथ सहाय दे बाहर बाहै चोट ॥
शिक्षक अपने भीतर के प्रकाश से शिष्यों के अंधकारमय जीवन को प्रकाशमय कर देते हैं. उन्हें ज्ञानवान बनाते हैं. इसलिए गुरुजन के लिए कहा गया है-- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
ब्रह्मा,विष्णु और महेश बनना असंभव है. यह गुरु को सम्मान देने का भाव है. वर्तमान में श्रेष्ठ शिक्षक होना ही बहुत बड़ी बात है.
ऐसे महान शिक्षकों को नमन जिन्होंने शिक्षक के पद को गुरु के रूप में बदल दिया. अपना समस्त जीवन विद्यार्थियों को समर्पित कर दिया.
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