•कृति- शिखरों से आगे •लेखक-अशोक लव •विधा-उपन्यास
•प्रकाशक - हर्फ़ प्रकाशन, नई दिल्ली•प्रथम संस्करण-2018 ,नवीन-2019•मूल्य -200/-(पेपर बैक)पृष्ठ-206.
जीवन में शुचिता की महत्ता को प्रतिपादित करता उपन्यास
कविता, कहानी, लघुकथा, उपन्यास, आलोचना आदि विविध विधाओं में अविराम गति से सृजनरत लब्ध प्रतिष्ठित वरिष्ठ साहित्यकार अशोक लव द्वारा रचित उपन्यास 'शिखरों से आगे' एक सामाजिक उपन्यास है।लेखक ने उपन्यास के नायक विनोद के माध्यम से शिक्षा, साहित्य ,चित्रकला और अध्यात्म के क्षेत्रों के विविध स्वरूपों को शिद्दत से चित्रांकित किया है तथा सामाजिक परिवेश में प्रचलित प्रेम के विभिन्न स्वरूपों का भी सटीक उद्घाटन किया है।
स्वामी अखिलानंद राष्ट्र को उन्नत एवं विकसित बनाने के लिए कृत-संकल्पित हैं ,उनके सपनों को मूर्त रूप देने के लिए नायक विनोद अपने जीवन को उनके चरणों में समर्पित कर देता है तथा नायिका शुभांगी विनोद को अध्यात्म के उच्च शिखरों को स्पर्श कराने में अहम भूमिका अदा करती है,तथा कृति विनोद की सहचरी के रूप में उद्देश्य सम्प्राप्ति में अत्यंत सहायक है।उपन्यास की कथावस्तु सामयिक है ,इसमें देश की अनेक ज्वलन्त समस्याओं को रेखांकित किया गया है। विशेषरूप से सामाजिक ,राजनीतिक, धार्मिक,आर्थिक और शैक्षिक मूल्यों में आई गिरावट का प्रभावशाली तरीके से विवेचन हुआ है।कतिपय झलकियां प्रस्तुत हैं -स्वामी जी बोले, "आज औद्योगिकरण के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, उपभोगवादी- संस्कृति जन्म ले रही है। छोटे-छोटे परिवार बन गए हैं ,व्यक्ति की सोच भी उतनी ही छोटी होती जा रही है, मूल्यों के विषय में किसी को भी चिंता नहीं है ,राजनेता मूल्यों का गला घोट सत्ता प्राप्ति के सुख भोगने में लगे हैं।" पृष्ठ-61.
" आज देश के समक्ष मूल्यों का संकट है, शिक्षा में नैतिक मूल्यों का अभाव है, सामाजिक जीवन से ईमानदारी लुप्त होती जा रही है, राजनीति गुंडों, बदमाशों, लुटेरों, भ्रष्टाचारियों के हाथ की कठपुतली बन गई है। भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का कुचक्र चल रहा है,राजनेताओं ने धर्म की विकृतिपूर्ण व्याख्या करके उसे राजनीति का मोहरा बना डाला है। इस वातावरण को परिवर्तित करना होगा।" पृष्ठ-84. " लोकतंत्रात्मक प्रणाली का सबसे बड़ा दोष है- इसमें गुंडों, बदमाशों, तस्करों आदि अपराधियों को चुनाव जीत कर विधानसभा, संसद में आने का पूर्ण अधिकार है। ऐसे राजनेता क्षुद्र-स्वार्थों के कारण देश को जलती आग में झोंकने से नहीं हिचकिचाते...
आज धर्म व्यक्ति के विचारों का परिष्कार नहीं कर रहा, धर्म स्वार्थियों के हाथ की कठपुतली बन कर विनाशकारी उन्माद उत्पन्न कर रहा है। पूजा-स्थल तेज़ाबी शब्द उगलने के कारखाने बन गए हैं।" पृष्ठ-95.
कथानायक विनोद ने स्वामीजी से कहा -"विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण और उनमें राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए नैतिक शिक्षा अत्यंत आवश्यक है।... आज के विद्यार्थियों पर विषयों का अत्यधिक बोझ है। वर्तमान शिक्षा- प्रणाली मनुष्य को सच्चा मनुष्य नहीं बना पा रही है ।शिक्षा का उद्देश बालक का सर्वांगीण शारीरिक मानसिक व बौद्धिक विकास करना है ऐसा कहां हो पा रहा है? पूरा समाज धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर टुकड़ों में बटता जा रहा है ।आत्मिक उत्थान हेतु शिक्षा में क्या प्रावधान है ? शिक्षा के प्रचार-प्रसार के पश्चात भी सांप्रदायिक दंगे और आतंकवाद और पनपा है। इसके लिए विद्यार्थियों में 'सर्वधर्म समभाव' की भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है।" पृष्ठ138.
इस प्रकार उपन्यास की कथावस्तु सामयिक- समस्याओं पर प्रकाश डालने वाली और उनका सम्भावित समाधान प्रस्तुत करने वाली है। इसके संवाद बड़े रोचक,कथा की गति को आगे बढ़ने वाले तथा पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले हैं।भाषा सरल और पात्रानुकूल है।देश-काल एवं परिस्थितियों का भी सम्यक विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
औपन्यासिक कृति का मूल प्रतिपाद्य मानव जीवन को शुद्ध-सात्विक ,विकारों से रहित,कर्तव्य-परायण, प्रगतिशील,लोक-कल्याणकारी व अध्यात्म के शिखरों को छूने वाला बनाना है।इस प्रयोजन की प्राप्ति हेतु स्वामी जी का विनोदके प्रति कथन सर्वथा समीचीन है ,-" गृहस्थ जीवन जीने वाला व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता रहे। इसके संग-संग आत्मिक उत्थान भी करता रहे। परमात्मा की ओर ध्यान लगाए ।अपने घर में रहकर ही ध्यान लगाया जा सकता है। इसी ध्यानावस्था से सिद्धावस्था आती है ।ईश्वरीय-नैकट्य प्राप्त होता है। व्यक्ति को शनैः शनैः अपनी पाशविक वृत्तियों का शमन करते जाना चाहिए।" पृष्ठ-61.
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि अशोक लव द्वारा रचित 'शिखरों से आगे ' उपन्यास कथावस्तु ,पात्र-चरित्र-चित्रण,संवाद,देश-काल-परिस्थिति ,भाषा-शैली, उद्देश्य, शीर्षक,और सन्देश की दृष्टि से उत्कृष्ट एवं प्रभविष्णु है। सुधी समाज में समादृत होगा,ऐसा मेरा विश्वास है।
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