Tuesday, 30 August 2011
Friday, 26 August 2011
Tuesday, 23 August 2011
नया सूर्योदय : अन्ना हजारे / -अशोक लव
अन्ना हजारे ने आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. भ्रष्ट राजनेता तिलमिला रहे हैं. संसद में पहुँच जाने के पश्चात् वे शासक के रूप में व्यवहार करने लगते हैं. सत्तारूढ़ दल के विषय में तो कहना ही क्या है ! मंत्री बन जाने के बाद तो अधिकांश रावण के समान अहंकार में चूर हो जाते हैं. गत कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखें तो इन सब के चेहरे आम आदमी के सामने बेनकाब हो गए हैं. सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं और मंत्रियों को खिसियाते, बौखलाते , झुंझलाते, धमकाते और रावण बनते सबने देखा है.
सबसे नीचे के स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक हुए घोटाले जग ज़ाहिर हो चुके हैं. प्रधान मंत्री समस्त मंत्रियों के कार्य कलापों का उत्तरदायी होता है. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल ने जो लूट-खसोट मचाई है उसकी बखिया नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ने उधेड़ कर रख दी हैं. दिल्ली क़ी मुख्य - मंत्री के बारे में जेल में बंद कांग्रेसी सांसद सुरेश कलमाडी ने पहले ही कहा था कि वह भी लूट-खसोट में शामिल है. लोग जानते हैं कि भिन्न - भिन्न रूपों में लूटा धन अंत में कहाँ पहुंचता है. सत्ता के केंद्र में जो व्यक्ति है जब वह और उसका परिवार अरबों रूपये लूट रहा है तो भ्रष्ट व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही कौन करेगा ? दिखाने के लिए बलि का बकरा / बकरी बनाकर कुछ लोगों को जेल में भेजकर सत्ताधीश चैन क़ी बांसुरी बजा रहे थे. आलोचना करने वालों को इसके प्रवक्ता पागल कुत्ते क़ी तरह काट खाने के लिए टूट पड़ते थे. चोरी और सीना जोरी क़ी अदभुत मिसाल !अचानक दृश्य परिवर्तित हुआ. नया सूर्योदय अन्ना हजारे के रूप में उदित हुआ. सत्तारूढ़ दल के नेता अहंकार के मद में चूर थे. इस सूर्य के सामर्थ्य को भांप नहीं पाए. आज सड़कों पर लाखों भारतीय क्यों उमड़ पड़े हैं ? क्या अन्ना के पास कोई जादू क़ी छड़ी है ? अन्ना तो एक बहाना हैं, लोग भ्रष्ट व्यवस्था से त्रस्त हैं . अन्ना के माध्यम से उन्हें अपनी बात कहने का अवसर मिला. अन्ना ने उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति का स्वर दिया.
आज सड़कों पर उतरे लोगों के स्वर को संसद में बैठे कुछ लोगों के बहरे कान नहीं सुन पाए तो उन्हें पछताना पड़ेगा.
यह सिद्ध हो चुका है कि प्रधानमंत्री तक घोटालों में लिप्त है. लोकपाल क़ी आवश्कता क्यों है ? इसलिए कि उसे व्यवस्था के साथ जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार हो. लोकपाल बिल क़ी आड़ में लचर बिल लाकर सत्तारूढ़ दल के खेल को अन्ना ने बेनकाब कर दिया है. कुछ मंत्रियों ने अन्ना के साथ लोकपाल बिल क़ी बैठकों के बहाने जो धोखेबाजी क़ी थी. जनता में उनके इस व्यवहार के प्रति भी आक्रोश है.
चोर ऐसा कानून क्यों बनाएगा जिससे उसे जेल जाना पड़े ? सरकारी लोकपाल बिल इसका प्रमाण है.
कुशल राजनेता समय को पहचानते हैं. वे दूरदर्शी होते हैं. वर्तमान में कुछ त्यागना पड़े तो त्याग देते हैं. सत्तारूढ़ दल में ऐसा कोई दूरदर्शी नेता है ही नहीं क्योंकि सब के सब कठपुतली हैं. सबका रिमोट एक के ही हाथ में है. संकट क़ी स्थिति में सब बगले क्यों झाँकने लगते हैं ? किसी में निर्णय लेने क़ी क्षमता ही नहीं है. जब सत्ता एक व्यक्ति के हाथों में सिमट जाती है , वह तानाशाह हो जाता है. शेष सब जी-हजूरिए और दरबारी बनकर रह जाते हैं. यह जी-हजूरिए और दरबारी देश को क्या दिशा देंगे? अपने भ्रष्ट आचरणों को कानूनी रूप देने के लिए वैसा कानून बनाएँगे.
अन्ना क्या है ? जन-जन क़ी अभिव्यक्ति है.लाठी और लंगोटी वाला एक गांधी हुआ था. आज अन्ना हमारे सामने हैं ! न कोई स्वार्थ , न धन संग्रह करने क़ी लालसा ! इसलिए जन-जन अन्ना कहला रहे हैं.
Friday, 12 August 2011
काहे न धीर धरे / अशोक लव
और अधिक , और अधिक पाने और संग्रहित करने की इच्छा की पूर्ति हेतु मनुष्य अनवरत भाग रहा है। प्रातः से सायं ही नहीं अपितु देर रात तक कोल्हू के बैल के समान कार्यरत रहने लगा है. उसे न अपनी चिंता है और न अपने घर - परिवार की चिंता है. चिंता है केवल अधिक से अधिक धन अर्जित करने की. प्रातः घर से निकले और लौटेंगे कब ,कोई पता नहीं !व्यापारी अपने व्यवसाय को और अधिक विस्तार देने में शेष सब कुछ भुला देते हैं। नौकरी करने वाले अधिक धन कमाने के लालच में नौकरी के समय के पश्चात् भी कार्य करने चले जाते हैं। भागते लोग, भागती भीड़ ...कहाँ जा रहे हैं , कुछ होश नहीं है। धन और धन , बस और धन --यही जीवन का लक्ष्य रह गया है।सब व्यस्त हैं , अस्त-व्यस्त हैं . यह व्यस्तता क्या है ? किसलिए है? क्यों है ? इसके विषय में सोचने का भी समय नहीं है।धन का महत्त्व है। इसे नकार नहीं सकते। जीवन-स्तर श्रेष्ठ बने, इसके लिए धन चाहिए।हर प्रकार की सुख-सुविधा उपलब्ध हो, हो जाए तो और उपलब्ध हो....इसलिए खूब भागो...जो आगे बढ़ गए है उन्हें पीछे छोड़ो --यह अंधी दौड़ सुख चैन छीन रही है। इस अंधी दौड़ में भागता मनुष्य कब युवावस्था और अधेड़ावस्था को पार कर जाता है, उसे पता ही नहीं चलता। और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। तब इस अंधी दौड़ से अर्जित धन के भोग के लिए देह कमज़ोर चुकी होती है।कबीर ने बहुत अच्छा लिखा है--मन सागर , मनसा लहरी, बूड़े -बहे अनेक ।कहि कबीर ते बाचिहैं, जाके हृदय बिबेक। ।
मन रूपी सागर में इच्छा रूपी लहरें उठती रहती हैं. एक लहर किनारे तक आती है तो दूसरी उसके पीछे-पीछे आ जाती है. इसी प्रकार एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सामने आ जाती है. मनुष्य उसे पूरा करने में संलिप्त हो जाता है. एक के पश्चात एक इच्छाएं जन्म लेती है और मनुष्य उन्हें पूरा करने में लग जाता है. इन इच्छाओं रूपी लहरों में अधिकतर लोग बह जाते है. अनेक डूब कर मर जाते हैं केवल वही इनमें डूबने से बचते हैं जिनमें ' विवेक' होता है.
वर्तमान समाज में अधिकांशतः लोगों की यही दशा है. वे जो है उसके महत्त्व को नहीं जानते और जो नहीं है उन भौतिक वस्तुओं को पाने और संग्रहित करने केलिए भाग रहे हैं.दिन-रात चिंतामग्न रहते हैं. चिता तनावों की जननी है. तनावग्रस्त होकर मनुष्य भांति-भांति के रोगों से पीड़ित हो जाता है. उसकी ' विवेक' शक्ति नष्ट हो जाती है. वह सम्मानपूर्वक जीने के अर्थ भूल जाता है. नैतिक और अनैतिक में भेद न करके जैसे संभव हो धन के अम्बार लगाने में जुटा रहता है. यही कारण है राजनेतागण , उच्च पदाधिकारी , उद्योगपति और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति घोटाले पर घोटाले करते हैं. समाचार-पत्र, टीवी उनके कारनामों के पृष्ठ पर पृष्ठ प्रकाशित करते हैं / दिखाते हैं. अनेक जेल-यात्रा करते हैं और बाहर आकर निर्लज्ज घूमते हैं.
ये लोग भूल जाते हैं कि समय बहुत तेज़ी का साथ भागता है. वे धन के अम्बार जुटाते-जुटाते कब संसार से विदा ले लेते है, किसी को पता ही नहीं चलता. उनकी स्मृति एक भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में सदा-सदा के लिए अंकित रह जाती है.
हम अनेक बार कहते हैं--लाल किला यहाँ,शाहजहाँ कहाँ ?
आज शाहजहाँ को कोई नहीं पहचानता. विश्व के अनेक राष्ट्रपति मर गए, प्रधानमंत्री मर गए. लोगों को उनके नाम तक स्मरण नहीं हैं. इन धन अर्जित करने की दौड़ में भागने वालों को उनके परिवार की तीसरी पीढी तक स्मरण नहीं करेगी.
थोड़ी देर के लिए रुकें. अपने विषय में सोचें.अपने उचित-अनुचित कार्यों का विश्लेषण करें. अपने जीवन के उद्देश्यों के विषय चिंतन करें सम्मानपूर्वक जीने के मार्ग निर्धारित करें . ' धैर्य ' को अपनाएँ. मन है तो विचलित भी होगा. उसे समझाएँ-- मन रे काहे न धीर धरे !
-- अशोक लव
मन रूपी सागर में इच्छा रूपी लहरें उठती रहती हैं. एक लहर किनारे तक आती है तो दूसरी उसके पीछे-पीछे आ जाती है. इसी प्रकार एक इच्छा पूरी होती है तो दूसरी सामने आ जाती है. मनुष्य उसे पूरा करने में संलिप्त हो जाता है. एक के पश्चात एक इच्छाएं जन्म लेती है और मनुष्य उन्हें पूरा करने में लग जाता है. इन इच्छाओं रूपी लहरों में अधिकतर लोग बह जाते है. अनेक डूब कर मर जाते हैं केवल वही इनमें डूबने से बचते हैं जिनमें ' विवेक' होता है.
वर्तमान समाज में अधिकांशतः लोगों की यही दशा है. वे जो है उसके महत्त्व को नहीं जानते और जो नहीं है उन भौतिक वस्तुओं को पाने और संग्रहित करने केलिए भाग रहे हैं.दिन-रात चिंतामग्न रहते हैं. चिता तनावों की जननी है. तनावग्रस्त होकर मनुष्य भांति-भांति के रोगों से पीड़ित हो जाता है. उसकी ' विवेक' शक्ति नष्ट हो जाती है. वह सम्मानपूर्वक जीने के अर्थ भूल जाता है. नैतिक और अनैतिक में भेद न करके जैसे संभव हो धन के अम्बार लगाने में जुटा रहता है. यही कारण है राजनेतागण , उच्च पदाधिकारी , उद्योगपति और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़े व्यक्ति घोटाले पर घोटाले करते हैं. समाचार-पत्र, टीवी उनके कारनामों के पृष्ठ पर पृष्ठ प्रकाशित करते हैं / दिखाते हैं. अनेक जेल-यात्रा करते हैं और बाहर आकर निर्लज्ज घूमते हैं.
ये लोग भूल जाते हैं कि समय बहुत तेज़ी का साथ भागता है. वे धन के अम्बार जुटाते-जुटाते कब संसार से विदा ले लेते है, किसी को पता ही नहीं चलता. उनकी स्मृति एक भ्रष्ट व्यक्ति के रूप में सदा-सदा के लिए अंकित रह जाती है.
हम अनेक बार कहते हैं--लाल किला यहाँ,शाहजहाँ कहाँ ?
आज शाहजहाँ को कोई नहीं पहचानता. विश्व के अनेक राष्ट्रपति मर गए, प्रधानमंत्री मर गए. लोगों को उनके नाम तक स्मरण नहीं हैं. इन धन अर्जित करने की दौड़ में भागने वालों को उनके परिवार की तीसरी पीढी तक स्मरण नहीं करेगी.
थोड़ी देर के लिए रुकें. अपने विषय में सोचें.अपने उचित-अनुचित कार्यों का विश्लेषण करें. अपने जीवन के उद्देश्यों के विषय चिंतन करें सम्मानपूर्वक जीने के मार्ग निर्धारित करें . ' धैर्य ' को अपनाएँ. मन है तो विचलित भी होगा. उसे समझाएँ-- मन रे काहे न धीर धरे !
-- अशोक लव
Sunday, 7 August 2011
मित्रता -दिवस पर शुभकामनाएँ !
मैत्री - दिवस सबके मन में मैत्री की भावना जागृत करे , ' सर्वे भवन्तु सुखिनः ' की भावना के अनुरूप सबकी मंगल कामना करें. सब मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ !
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