अन्ना हजारे ने आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. भ्रष्ट राजनेता तिलमिला रहे हैं. संसद में पहुँच जाने के पश्चात् वे शासक के रूप में व्यवहार करने लगते हैं. सत्तारूढ़ दल के विषय में तो कहना ही क्या है ! मंत्री बन जाने के बाद तो अधिकांश रावण के समान अहंकार में चूर हो जाते हैं. गत कुछ महीनों के घटनाक्रम को देखें तो इन सब के चेहरे आम आदमी के सामने बेनकाब हो गए हैं. सत्तारूढ़ दल के प्रवक्ताओं और मंत्रियों को खिसियाते, बौखलाते , झुंझलाते, धमकाते और रावण बनते सबने देखा है.
सबसे नीचे के स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक हुए घोटाले जग ज़ाहिर हो चुके हैं. प्रधान मंत्री समस्त मंत्रियों के कार्य कलापों का उत्तरदायी होता है. मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल ने जो लूट-खसोट मचाई है उसकी बखिया नियंत्रक-महालेखापरीक्षक ने उधेड़ कर रख दी हैं. दिल्ली क़ी मुख्य - मंत्री के बारे में जेल में बंद कांग्रेसी सांसद सुरेश कलमाडी ने पहले ही कहा था कि वह भी लूट-खसोट में शामिल है. लोग जानते हैं कि भिन्न - भिन्न रूपों में लूटा धन अंत में कहाँ पहुंचता है. सत्ता के केंद्र में जो व्यक्ति है जब वह और उसका परिवार अरबों रूपये लूट रहा है तो भ्रष्ट व्यक्तियों के विरुद्ध कार्यवाही कौन करेगा ? दिखाने के लिए बलि का बकरा / बकरी बनाकर कुछ लोगों को जेल में भेजकर सत्ताधीश चैन क़ी बांसुरी बजा रहे थे. आलोचना करने वालों को इसके प्रवक्ता पागल कुत्ते क़ी तरह काट खाने के लिए टूट पड़ते थे. चोरी और सीना जोरी क़ी अदभुत मिसाल !अचानक दृश्य परिवर्तित हुआ. नया सूर्योदय अन्ना हजारे के रूप में उदित हुआ. सत्तारूढ़ दल के नेता अहंकार के मद में चूर थे. इस सूर्य के सामर्थ्य को भांप नहीं पाए. आज सड़कों पर लाखों भारतीय क्यों उमड़ पड़े हैं ? क्या अन्ना के पास कोई जादू क़ी छड़ी है ? अन्ना तो एक बहाना हैं, लोग भ्रष्ट व्यवस्था से त्रस्त हैं . अन्ना के माध्यम से उन्हें अपनी बात कहने का अवसर मिला. अन्ना ने उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति का स्वर दिया.
आज सड़कों पर उतरे लोगों के स्वर को संसद में बैठे कुछ लोगों के बहरे कान नहीं सुन पाए तो उन्हें पछताना पड़ेगा.
यह सिद्ध हो चुका है कि प्रधानमंत्री तक घोटालों में लिप्त है. लोकपाल क़ी आवश्कता क्यों है ? इसलिए कि उसे व्यवस्था के साथ जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के विरुद्ध कार्यवाही करने का अधिकार हो. लोकपाल बिल क़ी आड़ में लचर बिल लाकर सत्तारूढ़ दल के खेल को अन्ना ने बेनकाब कर दिया है. कुछ मंत्रियों ने अन्ना के साथ लोकपाल बिल क़ी बैठकों के बहाने जो धोखेबाजी क़ी थी. जनता में उनके इस व्यवहार के प्रति भी आक्रोश है.
चोर ऐसा कानून क्यों बनाएगा जिससे उसे जेल जाना पड़े ? सरकारी लोकपाल बिल इसका प्रमाण है.
कुशल राजनेता समय को पहचानते हैं. वे दूरदर्शी होते हैं. वर्तमान में कुछ त्यागना पड़े तो त्याग देते हैं. सत्तारूढ़ दल में ऐसा कोई दूरदर्शी नेता है ही नहीं क्योंकि सब के सब कठपुतली हैं. सबका रिमोट एक के ही हाथ में है. संकट क़ी स्थिति में सब बगले क्यों झाँकने लगते हैं ? किसी में निर्णय लेने क़ी क्षमता ही नहीं है. जब सत्ता एक व्यक्ति के हाथों में सिमट जाती है , वह तानाशाह हो जाता है. शेष सब जी-हजूरिए और दरबारी बनकर रह जाते हैं. यह जी-हजूरिए और दरबारी देश को क्या दिशा देंगे? अपने भ्रष्ट आचरणों को कानूनी रूप देने के लिए वैसा कानून बनाएँगे.
अन्ना क्या है ? जन-जन क़ी अभिव्यक्ति है.लाठी और लंगोटी वाला एक गांधी हुआ था. आज अन्ना हमारे सामने हैं ! न कोई स्वार्थ , न धन संग्रह करने क़ी लालसा ! इसलिए जन-जन अन्ना कहला रहे हैं.
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