हिन्दी भाषा के लिए दीर्घकालीन संघर्षरत रहे जुझारू श्री राजकरण सिंह के निधन के समाचार ने स्तब्ध कर दिया. अनेक साहित्यिक आयोजनों में उनसे भेंट होती रही थी. वे अपनी तरह के विशिष्ट व्यक्ति थे. वर्षों तक हिन्दी भाषा के लिए ऐसा संघर्ष करने वाले बहुत कम लोग हुए हैं. हम हमेशा उनके प्रशंसक रहे हैं. राजकरण एक लहर थे जिसने पूरे देश को हिन्दी के लिए आंदोलित कर दिया था. उनके निधन पर हार्दिक सम्वेदनाएँ !!---अशोक लव
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हिंदी आंदोलन के प्रमुख स्तम्भ " राजकरण सिंह जी " की असामयिक मृत्यु पर आयोजित शोक सभा |
डी - 51 , हौज खास , नई दिल्ली
... भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरणसिंह को आज 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा बाराबंकी जनपद में निधन हो गया।
57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल भाारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे अपने विश्व ंविख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन ंकरके पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के आंदोलन के बाद उद्देलित करने वालों में प्रमुख रहे।
ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।
समय : 4 नवम्बर 3 बजे शाम को
स्थान : भारत नीति प्रतिष्ठान डी - 51 , हौज खास , नई दिल्ली
... भारतीय भाषा आंदोलन के पुरोधा राजकरणसिंह को आज 30 अक्टूबर 2011की सुबह को हृदयगति रूकने से अपने गांव बिष्णुपुरा बाराबंकी जनपद में निधन हो गया।
57 वर्षीय राजकरण सिंह, भारतीय भाषाओं को संघ लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं में अग्रेजी अनिवार्यता के बंधन से मुक्त करने के लिए देश की राजधानी दिल्ली में अपने साथी पुष्पेन्द्रसिंह चैहान के साथ ‘अखिल भाारतीय भाषा संरक्षण संगठन’ के बेनरतले संघ लोक सेवा आयोग ‘यूपीएससी’ के समक्ष 16 ंसाल लम्बे अपने विश्व ंविख्यात निरंतर धरना प्रदर्शन ंकरके पूरे देश कंे ंप्रबुद्व जनमानस को लोहिया के आंदोलन के बाद उद्देलित करने वालों में प्रमुख रहे।
ंइसी ंमुद्दे पर 29 दिन लम्बी आमरण अनशन की गूंज संसद से लेकर भारतीय भाषा समर्थकों को झकझोर कर रख दिया था। उनके इसी आंदोलन की विराटता का पता इसी बात से साफ झलकता है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल, चतुरानन्दमिश्र, मुलायमसिंह यादव, शरद यादवं, रामविलास पासवान, सोमपाल शास्त्री, सहित चार दर्जन से अधिक सांसदों ने कई समय यहां के आंदोलन में ंसडक में भाग लिया था।
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