Monday, 30 January 2012

यूँ निकला सूरज / अशोक लव

रात की काली चादर उतारकर 
भागती भोर 
सूरज से जा टकराई 
बिखर गए सूरज के हाथों से -
रंग.
 छितरा गए आकाश पर 
पर्वतों पर, झरनों पर 
नदी की लहरों पर 
धरती के वस्त्रों पर 
रंग ही रंग.
छू न सका सूरज भोर को 
डांट न सका सूरज भोर को 
और 
निकल आया आकाश पर. 

Tuesday, 24 January 2012

धुंधलका / अशोक लव

मित्र !
धुंध जब इतनी घिर जाए
की शीशे के पार कुछ न दिखाई  न दे 
तब-
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना 
फिर शीशे के पार देखना 
सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा 
मैं तो वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ 
सिर्फ धुंध ने तुम्हें 
बहका रखा था. 
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@पुस्तक- 'लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान'



Friday, 20 January 2012

मेंढक और लोग / अशोक लव

पानी जब खूब बरसता है 
मेंढक खूब टर्राते  हैं 
उछल-उछल जाते हैं 
धन के खूब आ जाने पर 
कुछ लोग मेंढक बन जाते हैं.
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@ अशोक लव 20 जनवरी 2012 मेंढक और लोग

Tuesday, 10 January 2012

कविता -अहंकारी की आत्म-प्रवंचना / अशोक लव

मैं ही मैं हूँ
बस मैं ही मैं हूँ
यहाँ भी और वहाँ भी
इधर भी और उधर भी
ऊपर भी और नीचे भी
यह भी है मेरा
और वह भी है मेरा
जिधर देखता हूँ
स्वयं को देखता हूँ
जो कुछ सोचता हूँ
स्वयं को सोचता हूँ।
मेरे सिवा और क्या है जहां में ?
यह मकां मेरा वह दुकां मेरी
यह पत्नी मेरी
वह बच्चे मेरे
यह नौकर मेरे
वह चाकर मेरे
और क्या है जहां में
सिवा मेरे
यहाँ भी मैं हूँ
और वहाँ भी मैं हूँ
मैं ही हूँ बस
मैं ही मैं हूँ।

Sunday, 1 January 2012

नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ / अशोक लव

नव वर्ष 
सब ओर हो 
हर्ष ही हर्ष 
शुभ हो 
ओर हो मंगलमय 
नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
--अशोक लव