Monday, 30 January 2012

यूँ निकला सूरज / अशोक लव

रात की काली चादर उतारकर 
भागती भोर 
सूरज से जा टकराई 
बिखर गए सूरज के हाथों से -
रंग.
 छितरा गए आकाश पर 
पर्वतों पर, झरनों पर 
नदी की लहरों पर 
धरती के वस्त्रों पर 
रंग ही रंग.
छू न सका सूरज भोर को 
डांट न सका सूरज भोर को 
और 
निकल आया आकाश पर. 

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