मित्र !
धुंध जब इतनी घिर जाए
की शीशे के पार कुछ न दिखाई न दे
तब-
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हें
बहका रखा था.
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@पुस्तक- 'लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान'
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