Wednesday, 26 June 2013

लघुकथा--छोटा भाई /प्रवासी दुनिया में प्रकाशित

लघुकथा: छोटा भाई – अशोक लव


  पुत्र के जन्म-दिन की खुशी में बाबू अनिल वैद ने तम्बू लगवाया. हलवाई बिठाया. मित्रों-रिश्तेदारों को न्यौता दिया.
एक-एक कर मेहमान आते. उपहार देते.
ताऊ जी बड़ा पालना लाए. बड़ी बुआ सैर-गाड़ी लाई. चाचा जी नहाने का टब लाए.छोटी बुआ खिलौनों का ढेर लाई. मामा विदेशी वस्त्रों के सेट लाए.
ऋतु आँखें फाड़े इन उपहारों को देख रही थी. उसके लिए ऐसे उपहार कोई नहीं लाया था. पूर्वा के लिए भी ऐसे उपहार कोई नहीं लाया था. प्राची को भी ऐसे उपहार नहीं मिले थे. हेमंत को ही ऐसे उपहार क्यों मिले थे? ऋतु से रहा नहीं गया. सीधे माँ के पास भागी. कारण पूछने लगी.
“ हेमंत तुम तीनों बहनों के बाद जो पैदा हुआ है. पूरे खानदान में पहला लड़का हुआ है. इसीलिये सब इतने सुंदर-सुंदर उपहार लाए हैं.”-माँ ने समझाते हुए कहा.
ऋतु को पहली बार लगा कि उसके घर में कोई विशेष घटना घटी है. उसका बाल-मन पहली बार भाई और बहन के अंतर को पहचान रहा था. वह स्वयं को उस नन्हें भाई से छोटा , बहुत छोटा महसूस कर रही थी.
*****
पुस्तक :सलाम दिल्ली @अशोक लव
*प्रवासी दुनिया के 25 जून 2013  अंक में प्रकाशित

उत्तराखंड में आपदा पर द्वारका परिचय में प्रकाशित लेख /अशोक लव

Tuesday 25 June 2013

हिमालय में जल-प्रलय

अशोक लव  

पंद्रह-सोलह जून की वर्षा ने उत्तराखंड में जो विनाश-लीला की है, उसमें हजारों व्यक्ति अपने प्राण गँवा चुके हैं. सैंकडों घर नदियों में बह गए हैं. गाँवों के गाँवों का कोई आता-पता नहीं है. ज़िंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते हज़ारों लोग पहाड़ों के अनजान रास्तों में फंसे पड़े हैं. हज़ारों पहाड़ों में भटक रहे हैं. मृत्यु का ऐसा तांडव अपने पीछे अनेक प्रश्न छोड़ गया है.

संकट की इस घड़ी में स्वयं-सेवी संस्थाओं को आगे आना चाहिए. विस्थापित हो चुके लोगों को फिर से बसाने के लिए, सड़कों के निर्माण के लिए, संचार माध्यमों की बहाली के लिए, अपार धनराशि की आवश्यकता होगी. गावों और नगरों में जो विनाश-लीला हुई उसके लिए स्वयंसेवी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं द्वारा सेवा की आवश्कता होगी. सड़कों के निर्माण के पश्चात यह सबसे बड़ा कार्य होगा. अभी भी इस विनाश-लीला का आकलन नहीं हो पाया है.

विभिन्न नगरों की संस्थाओं को आगे आकर विस्थापितों तक भोजन और पानी पहुँचाना सबसे बड़ी आवयश्कता  बन चुकी है. भूखे-प्यासे स्थानीय निवासी सड़कों पर उतर आए हैं. पर्यटकों की समस्याएँ स्थानीय निवासियों से भिन्न हैं. उनकी ओर भी तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है. सारी उम्र की कमाई से बनाए मकान  ज़मीन में धंस गए हैं. कई टनों मलबे के नीचे दब गए हैं. कुछ मकानों में मलबा भर गया है. अनेक लोगों की दुकानें बह गई हैं. कईयों की आजीविका के साधन नहीं रहे. ऐसी भयावह स्थिति में मानवीयता की कारुणिक पुकार को सुनने की आवश्यकता है.

केदारनाथ धाम के पुनरोत्थान के लिए भी धार्मिक संस्थाओं को आगे आना चाहिए. वे धार्मिक संस्थाएं जो मदिरों के लिए अपार धनराशि दान में लेती हैं, उन्हें आगे आना चाहिए.

इस विनाश-लीला के लिए पहाड़ों पर अनेक कारणों से बढ़ता बोझ है. तीर्थ-स्थल पिकनिक–स्पॉट बन गए हैं. पहाड़ों का दोहन हो रहा है. पर्वतीय पर्यावरण की सुरक्षा की कोई नीति नहीं है. अवैध खनन और अवैध निर्माण ने पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ दिया है. ये वे मुद्दे हैं जिन पर अभी से चिंतन और क्रियान्वयन की आवयश्कता है. तत्काल आवश्यकता है लोगों की जान बचाने की और उन तक भोजन पहुँचाने की. आशा है संकट की घड़ी में दानी सज्जन आगे आएँगे और अपना कर्तव्य निभाएँगे.

 http://dwarkaparichay.blogspot.in/2013/06/blog-post_416.html

Wednesday, 19 June 2013

आकाश को छूने से पहले

 

Published In Dwarka Parichay

आकाश को छूने से पहले



अशोक लव 
किशोरावस्था की सपनीली रंगीन दुनिया
गडमडगड हो गई
कुवारे कच्चे सपनों का काँच तड़क गया
चुभ गई किरिचें मन-पंखुड़ियों पर
पिता ! क्यों छोड़ दिया तुमने अपना संबल

इतनी जल्दी
अभी तो उतरी ही थीं आँखों में कल्पनाएँ
कैनवस बाँधा ही था
इकट्ठे क्र रहा था रंग
तूलिका कहाँ उठा पाया था बिखर गया सब.

उतर आया पहाड़-सा बोझ कंधों पर
आ खड़ी हुई
जीवन की पगडंडियों में एवरेसटी चुनौतियाँ
छिलते गए पाँव
होते गए खुरदरे करतल
धंसते गए गाल
स्याह होते गए आँखों के नीचे धब्बे.

गमले में अंकुरित हो
पौधे के आकाश की ओर बढ़ने की प्रक्रिया
आरंभ ही हुई थी
कहाँ संजो सका सपने पौधा
आकाश को छूने के.

किशोरावस्था ओर वृद्धावस्था के मध्य
रहता है लंबा अंतराल
जीवन का स्वर्ण-काल
फिसल गया
मेरी हथेलियों में आते-आते.

तुम छोड़ गए मेरे कंधों पर
अपने कंधों का बोझ
इसलिए नहीं चढ़ पाया
यौवन की दहलीज पर
तुम भी नहीं छू पाए थे मेरी भांति
यौवन की चौखट
तुम भी धकेल दिए गए थे
किशोरावस्था से वृद्धावस्था के आँगन में .

तुम्हारे रहते जानता तो पूछता—
क्यों आ जाता है हमारे हिस्से
पीढ़ी –दर-पीढ़ी इतनी जल्दी
यह बुढापा ,
क्यों रख दिया जाता है
बछड़े के कंधों पर
बैल के कंधों का बोझ .

पिता ! तुमने बता दिया होता
तो नहीं उगाता किशोर मन में
यौवन की फसलों के
लहलहाते खेत.

Saturday, 8 June 2013

ज्ञान की पहली सीढ़ी

मनुष्य के जीवन में ज्ञान के द्वार स्कूलों के माध्यम से खुलते हैं.
--अशोक लव

Tuesday, 4 June 2013

अशोक लव की कविता ' साम्प्रदायिकता ' का असमी अनुवाद

साम्प्रदायिकता...সাম্প্ৰদায়িকতা..

मेरे कानों में फुसफुसाया था
मेरा धर्म
मैंने उसका कहना माना
भर लिया कमरा
लाठियों, पत्थरों, चाकुओं से
दोस्त !
क्या तुम्हारा धर्म भी आया था
तुम्हारे पास?
-----अशोक लव
মোৰ কাণত ফুচফুচাইছিল
মোৰ ধৰ্মই
মই তাৰ কথা মানিলো
ভৰাই ল'লো কোঠালি
লাঠি, শিলগুটি ,ছুৰী-কটাৰীৰে
বন্ধু !
তোমাৰ ধৰ্মও আহিছিল নেকি
তোমাৰ কাষলে'?
----অনু: ডঃ মাখন লাল দাস
अनुवाद  --माखन लाल दास

Sunday, 2 June 2013

' नव्या ' में सम्मान समाचार


डॉ अशोक लव को 'आचार्य विजयेंद्र स्नातक स्मृति सम्मान'

14 April 2013
ASHOK LAV

हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक लव को चार अप्रैल 2013 को साहित्य और समाज सेवा के लिए 'आचार्य विजयेंद्र स्नातक स्मृति सम्मान ' प्रदान किया गया. डॉ हरीश नवल ने उन्हें शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया.डॉ रवि शर्मा ने दोनों सम्मानित महानुभावों को प्रदान किए गए प्रशस्ति-पत्रों का वाचन किया.. डॉ सुधा नवल (सुपुत्री डॉ विजयेंद्र स्नातक ) ने उन्हें ग्यारह हज़ार रुपए भेंट किए. सम्मान-समारोह की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ कमल किशोर गोयनका ने की. सुप्रसिद्ध गायक और संगीतकार श्री सतीश बब्बर मुख्य -अतिथि थे.

' शब्द-सेतु' संस्था की ओर से यह पुरस्कार स्वर्गीय डॉ विजयेंद्र स्नातक की स्मृति में प्रति वर्ष दिया जाता है. सन 2012-2013 के लिए यह सम्मान डॉ अशोक लव और सुप्रसिद्ध कबीर गायक पद्मश्री जी सी भारती को उनकी साहित्य ,संगीत और कला के क्षेत्र में की गई सेवाओं के लिए प्रदान किया गया.

डॉ अशोक लव को समाज-सेवा के लिए ' मोहयाल श्री ' उपाधि भी प्रदान की गई. इस अवसर पर अशोक लव ने अपनी कविताएँ सुनाईं .अशोक लव की साहित्यिक और शैक्षिक लगभग सौ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. उनकी चर्चित पुस्तकें हैं--शिखरों से आगे,सलाम दिल्ली, लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान,पत्थरों से बंधें पंख,अनुभूतियों की आहटें, हिंदी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार आदि.

पद्मश्री जी सी भारती ने अपने गायन से श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध कर दिया.सुप्रसिद्ध व्यंगकार डॉ हरीश नवल ने कार्यक्रम का आयोजन और संचालन किया.

सम्मान समारोह का आयोजन ' रोटरी क्लब दिल्ली अपटाउन मंडल ' द्वारा सुंदर लाल जैन सभागार,अशोक विहार ,नई दिल्ली में किया गया.इस अवसर पर पत्रकार, दिल्ली विश्वविद्यालय के अनेक प्राचार्य,शिक्षाविद, साहित्यकार और कलाकार उपस्थित थे.

एस.पी. सिंह की रिपोर्ट
http://www.nawya.in/vishay-suchi/gadhya-sahitya/aajkal/item/%E0%A4%A1%E0%A5%89-

Senior Citizens Elevated Poetic Path / Prem Bihari Mishra

Sukh Dukh Ke Sathee”, a socio-cultural association of senior citizens, conducted a “Kavya Sandhya” on 19 May in Sector-4,Dwarka, New Delhi. on the behest of Lions Club.The programme was organized and conducted by Hindi poet Prem Bihari Mishra. “Kavya Sandhya” was presided by Dr. Ashok Lav, a legendary author of more than 100 books and recipient of about sixty honours and awards.
Narrating background of the programme, Shri Mishra informed that “Sukh Dukh Ke Sathee” have taken up a new mission of its own kind. There is lot of poetic talent in the society which goes unnoticed and unexposed in absence of a suitable platform..“Sukh Dukh Ke Sathee” have decided to explore, organize and support such talent by holding fortnightly kaya goshthees. The inaugural kavya sandhya  was organized in the in Dwarka Sector-22 on 28th April presided by Dr Ashok Lav.The chief guest was renowned litterateur and international educationist Dr. Harish Naval. 
Shri Mishra  informed that Dr. Ashok Lav has rendered his full support in this venture. We are fortunate that many literary icons have joined us. He expressed hope that more and more people and social organizations will join hands to strengthen this noble service of Hindi literature. 
The “Kavya Sandhyas” were set off with a melodious ‘Saraswati Vandana’ of Shri Prem Bihari Mishra.
 Dr. Ashok Lav presented very emotional poems from his published collection “Ladkiyan Chhuna Chahti Hain Asman”. Tears could be seen in many eyes when he recited ‘Prawasee putr-putrian’. Magical effect of the melodious creations of  Ghazal writer Ashok Verma “tere shareer ke lafzon men kuchh ghumao sa hai”, “resha resha tutati hai maan subah se sham tak” etc, “sach se na karnaa gurez”, “achanak kalam haath se gir gayaa” of Dr. Shabana Nazir and “pahle kuchh apnon se ladna padta hai” of Dheeraj Chauhan, could be clearly seen. 
The poems of Prem Bihari Mishra ‘kalpit se sparsh matr ne’, and ‘Maan tujhe pranam’ were admired by the audience with continuous loud clapping. 
Poems “tere shahar ke bazar mere gaon ne sajae hain” of Sudha Sinha,
 “yadi mujhmen itnee aag na hotee” of Anil Upadhyay and panjabee poem “maan naal vadaa rishtaa nahin vekhyaa” of Virender Mansotra were vastly applauded by the audience.

 Sarcastic and humorous poems of Satyadev Harivanwi, Vinod Bansal ,Kulwinder Singh Kang and Dhruv Kumar filled the house with laughter. Poems of  Dr. Prasannanshu,Dr Prabodh Kumar and  Col PC Chowdhary were also admirable.Dr Sneh Sudha Naval's poems were appreciated by all.
Everybody present in the programme felt delighted with heart touching illustration of the Chief Guest Dr. Harish Naval about affection and selfless sacrifice of parents so also his poem ‘ek hote the babuj aur ek hua karti thi amma’. He also presented an impressive review of the poems presented by all the poets.
Dr. Ashok Lav, who presided the programme, said in his concluding address that Shri Prem Bihari Mishra has given start to a praise worthy endeavour and we are with him in his noble mission. President of “Sukh Dukh Ke Sathee”
Shri Vijay Shanker Singh said in the end that we will continue with such programmes and conveyed thanks to Dr Ashok Lav , Dr Harish Naval ,poets , audience and especially Shri Prem Bihari Mishra for his initiative.


Saturday, 1 June 2013

'प्रवासी दुनिया' में अशोक लव की कविता ' जी भाई साहब'

 

अशोक लव की कविता – जी भाई साहब


ashok lav
“बस अब कविता- कहानी सब छूट गया है
घुटनों का दर्द बढ़ गया है
तुम्हारी भाभी ने आम का जो पेड़ लगाया था
वह तेज़ आँधी से उखड़ गया है।
वह तो चली गई
कई बरस हो गए
आम का पेड़ देखकर
फल खाकर
अच्छा लगता था
अब
और सन्नाटा पसर गया है।
इधर पानी एक बूँद नहीं पड़ा है
एकदम सूखा पड़ गया है
लोग भूखे प्यासे मर रहे हैं
नक्सली और मार रहे हैं
नेता लोग सब क्या करेंगे?
यहाँ तो एक-एक मिनिस्टर भ्रष्ट है
सी बी आई के छापे पड़े हैं
कई मिनिस्टर छिप-छिपा रहे हैं
खिला-विला देंगे
सब केस बंद हो जाएँगे।
दिखना कम हो गया है
अब पढ़ना – पढ़ाना छूटता जा रहा है।
तुम्हारी कविता वाली पुस्तक मिल गई है
समीक्षा भी लिख देंगे
एक लड़की आती है
पी एच डी कर रही है
बोल-बोलकर उससे लिखवा देंगे।
बाकी सब क्या कहें
कविता लिखना अलग बात है
ज़िंदगी जीना अलग बात है। ”