Tuesday, 23 December 2014

अशोक लव की कविता ' आगे बढ़ '



आगे बढ़
---अशोक लव
आगे बढ़ आगे बढ़ आगे बढ़,
सिर उठा सीना तान आगे बढ़.

मुश्किलों के सीने पर पाँव रख,
लक्ष्यों पर टिका निगाह आगे बढ़.

क़दमों में बिजली-सी गतियाँ भर ,
लहरों को दे धकेल आगे बढ़.

राह नहीं आसान सब कह रहे ,
प्रगति-पथ पुकारता आगे बढ़.

अंधकार की कालिमा चीर कर ,
रोशनी से जगमगा आगे बढ़ .

दिशा–दिशा आज तुमसे कह रही
ध्वज उठा आगे बढ़ आगे बढ़.
*सूर्य अपार्टमेंट,सेक्टर-6
द्वारका ,नई दिल्ली -110075 (M)+91-9971010063

अशोक लव की कविता ' अधिकार '


Sunday, 21 December 2014

Ashok Lav motivated students: Pahal's Cancer Awareness



Pahal Social Organization (Regd) in association with Cancer Control Mission, Mumbai, held a Cancer Awareness Programme in SAM International School, Sector 12, Dwarka on 08 December 2014. Ms Ritu Khati, the School Principal took the initiative to spread awareness regarding the malicious disease among school children, for the first time in Dwarka. The Chief Guest for the day was Alok Saklani- Director of Apeejay School of Management. He addressed the young students and told them various measures which can be adopted for preventing cancer. Encouraging them to include plenty of fruits and green leafy vegetables in their diet, he also stressed about the importance of regular exercise.
The renowned Hindi poet Ashok Lav also graced the occasion and motivated the students to sacrifice momentary pleasures for greater achievements, by controlling their tongue, thought process and environment. A wonderful Power Point Presentation by Mithilesh Singh, the resource person from Cancer Control Mission, was highly informative for one and all. Through the presentation he spread awareness regarding the role played by toxins in producing cancer and how it can be tackled by in taking antioxidant rich diet and following a fitness regime. He also apprised the audience about the help rendered to poor cancer patients by the Cancer Control Mission. The students were also goaded for voluntary donations for the great cause. Malay K chakroborty- President PAHAL advised students to restrain from indulging in junk food and play outdoor games regularly to remain fit and fine so as to become productive members of the society. The programme was concluded by the Vote of Thanks proposed by the SAM School Principal.

Tuesday, 2 December 2014

Ashok Lav : Kavya Sandhya


Dogra S.S : Happy Birthday / Ashok Lav

वरिष्ठ पत्रकार और समाजसेवी श्री एस.एस.डोगरा को उनके जन्म-दिवस एक दिसंबर पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएँ !
-अशोक लव

Tuesday, 25 November 2014

Learning Hindi through Activities 'Kadam-Kadam' by Ashok Lav

अशोक लव की पुस्तक-श्रृंखला ' कदम-कदम' , रचनात्मक गतिविधियों से हिंदी सीखने की श्रेष्ठ पुस्तक-श्रृंखला है. इसके छह भाग हैं. 
पुस्तक प्राप्त करने के लिए संपर्क करें-
+91-9971010063

Ashok Lav's Book ' Hindi Ke Pratinidhi Sahityakaron Se Sakshatkar '

' हिंदी के प्रतिनिधि साहित्यकारों से साक्षात्कार ' पुस्तक में अशोक लव द्वारा वरिष्ठ साहित्यकारों से किए साक्षात्कार हैं. ये साहित्यकार हैं-मन्मथनाथ गुप्त, प्रभाकर माचवे, डॉ विजयेंद्र स्नातक, केदारनाथ अग्रवाल, पद्मश्री यशपाल जैन, पद्मश्री क्षेमचंद्र सुमन, डॉ रामेश्वर शुक्ल अंचल और पद्मश्री चिरंजीत.
इस पुस्तक का लोकार्पण उपराष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने किया था.

Tuesday, 11 November 2014

साहित्यिक समारोह में मित्रों के साथ अशोक लव

बाएं से-सुषमा भंडारी, अशोक वर्मा, अशोक लव, लक्ष्मी शंकर बाजपई, अलका सिन्हा

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अशोक लव , लक्ष्मी शंकर बाजपई और अलका सिन्हा
नरेंद्र लाहड़ के उपन्यास मूर्धन्य शिरोमणि महाकवि कालिदास के लोकार्पण के अवसर पर ' गाँधी शांति प्रतिष्ठान ' नई दिल्ली  में साहित्यकार.

Ashok Lav : अशोक लव की बाल-गीतों की पुस्तकें



Thursday, 30 October 2014

Tuesday, 14 October 2014

Saturday, 11 October 2014

पत्थर / अशोक लव


पद्मश्री क्षेमचंद्र सुमन और पद्म भूषण जैनेंद्र कुमार के साथ साहित्यकार अशोक लव

1984-अविस्मरणीय क्षण : आचार्य क्षेमचंद्र सुमन जी को पद्मश्री सम्मान मिलने पर उनके सम्मान में कांस्टीच्युशनल क्लब में सम्मान समारोह में उनके साथ. साथ में पद्मभूषण जैनेंद्र कुमार जी और सोमेश पुरी.

Wednesday, 1 October 2014

'बोलता आईना' :संवेदनशील लघुकथाकार की श्रेष्ठ लघुकथाएँ / अशोक लव

बहुमुखी प्रतिभासंपन्न साहित्यकार रघुविन्द्र यादव हिंदी साहित्य में गद्य और पद्य में सक्रिय लेखनरत हैं। कविता के क्षेत्र में वे दोहाकार के रूप में विशेष रूप से चर्चित हैं। छंदबद्ध कविताओं में परंपरागत छंदों के श्रेष्ठ कवि हैं। संपादक हैं। उनकी अनेक रचनाओं को पढ़ा है। वे सामाजिक सरोकार के कवि हैं।
उनकी चिंतन—प्रक्रिया का प्रभाव उनकी लघुकथाओं पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। लघुकथा लेखन के लिए अतिरिक्त प्रतिभा का होना आवश्यक होता है, ठीक उसी प्रकार जैसे दोहा लिखना। कम से कम शब्दों में अपना जीवन—दर्शन, अपनी सोच, परिवेश से संबद्धता, समाज के प्रति दृष्टिकोण आदि को साहित्य की किसी विधा में अभिव्यक्त करना सरल नहीं होता। लघुकथा विधा की विशेषता यही है कि इसमें कथा और व्यंग्य को समाहित करके अपने अभीष्ट को अभिव्यक्त किया जाता है। लघुकथा व्यापकता को संक्षिप्तता में क्षमतापूर्वक अभिव्यक्ति की विधा है। लघुकथाकार सदा सतर्क रहने वाला, समाज का सूक्ष्मता से विवेचना करने वाला और इन सबका मंथन करके एक विशिष्ट विधा में, जिसे लघुकथा कहते हैं, सृजनकर्ता होता है। जिस प्रकार दोहाकार चार चरणों और दो पंक्तियों में नीति, दर्शन, अध्यात्म, सामाजिक विसंगतियों आदि की अभिव्यक्ति करता है, उसी प्रकार लघुकथाकार भी कम से कम शब्दों में इन सबकी अभिव्यक्ति करता है।
रघुविन्द्र यादव लघुकथाकार भी हैं और दोहाकार भी हैं। मैंने उनके दोहे न पढ़े होते तो उनकी लघुकथाओं की विवेचना भिन्न रूप से करता। उनकी पैनी दृष्टि को मैंने उनके दोहों में देखा है। जीवन में घटित होने वाली घटनाओं के वे सूक्ष्म पर्यवेक्षक हैं। इस कारण से उनकी लघुकथाओं में शिक्षा, पारिवारिक—सामाजिक संबंध, राजनीति, प्रशासन, चिंतन, मूल्यों का अवमूल्यन आदि का यथार्थ चित्रण हुआ है।
रघुविन्द्र यादव ज़मीन से जुड़े साहित्यकार हैं। उनकी सभी लघुकथाए इसकी प्रमाण हैं। इन लघुकथाओं को पढ़ते समय लेखक के अनेक रूप सामने आते हैं। इनमेें उनका जीवन—दर्शन अभिव्यक्त हुआ है, इसलिए वे दार्शनिक के रूप में सामने आते हैं। 'अपनी—अपनी सोच’ में रोटी और तवे में संवाद हो अथवा 'असली दोषी’ में गेहू—चक्की संवाद हो या 'बलिदान’ में कुल्हड़ का पक्ष हो इनमें इन पात्रों के माध्यम से लेखक के जीवन—दर्शन की ही झलक मिलती है।
लेखक का दूसरा रूप उभरता है एक शिक्षाविद् के रूप में। रघुविन्द्र यादव ने शिक्षा संबंधी अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। इनमें शिक्षकों, शिक्षा—संस्थाओं,विद्यार्थियों, शिक्षा अधिकारियों, शिक्षा—सबंधी पुरस्कारों आदि का चित्रण हुआ है। सरकारी पुरस्कारों को किस प्रकार दिया जाता है या किस प्रकार प्राप्त किया जाता है, इसका पता सबको है। अधिकांश पुरस्कार सिफ़ारिश पर अयोग्य पात्रों को दिए जाते हैं। शिक्षा जगत में भी
ऐसा ही होता है। योग्य शिक्षक पुरस्कृत नहीं होते, अयोग्य विभिन्न तिकड़मों द्वारा पुरस्कार प्राप्त कर लेते हैं। 'शिक्षक—पुरस्कार’ में लेखक ने इसका प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया है। चिराग शर्मा जोड़—तोड़ करके इस पुरस्कार को प्राप्त करता है। ऐसे असंख्य पुरस्कृत शिक्षक सर्वत्र मिल जाते हैं। संवादात्मक श्ौली में लेखक ने इसे सशक्त रूप से अभिव्यक्ति प्रदान की है।
ऐसा नहीं है कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्ति सरकारी पुरस्कार प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहते हैं। 'पुरस्कार’ लघुकथा के माध्यम से लेखक ने इसके दूसरे पक्ष को भी सामने रखा है। 'डॉ.साहब’ लेखक हैं। उसे वर्षों से लेखनरत रहने पर भी कोई सरकारी पुरस्कार या सम्मान नहीं मिला। उसे इन पुरस्कारों की चिंता नहीं है। अपने मित्र को उत्तर देते हुए डॉ.साहब का कथन है—"सुमन जी, आप जैसे विद्वानों का प्यार ही हमारे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है। हम पुरस्कारों और सम्मानों के लिए लिखते ही नहीं। ...जहाँ तक पुरस्कार लाने की बात है, बहन बेचकर बहू कोई भी ला सकता है।’’
पुरस्कार रघुविन्द्र यादव की छोटी—सी लघुकथा है। लेखक ने इसमें समाज के विभिन्न क्षे़त्रों में निःस्वार्थ भाव से कार्यरत व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व 'डॉ.साहब’ के रूप में किया है। साहित्य ही नहीं समाज के विभिन्न क्षेत्रों में ऐसे हज़ारों व्यक्ति मिल जाएँगे जो अपनी साधना में तन्मय हैं।
रघुविन्द्र यादव का एक और रूप है, वह है सामाजिक सरोकारों के लघुकथाकार का रूप। लेखक का यह रूप अत्यंत प्रभावशाली है। घर—परिवार से लेकर राजनीति तक लेखक ने सब पर खूब लिखा है।
मूल्यों के अवमूल्यन पर लेखक ने अनेक लघुकथाएँ लिखी हैं। 'रावण दहन’ में इसे प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया जा सकता है। एक समय था जब सामाजिक उत्सवों और समारोहों में समाज के प्रतिष्ठित और चरित्रवान व्यक्तियों को मुख्य या विशिष्ट—अतिथि बनाया जाता था। इससे समारोहों की गरिमा तो बढ़ती ही थी समाज को संदेश भी मिलता था। आज स्थिति भिन्न हो चुकी है। भ्रष्ट धनी व्यक्ति, बाहुबली, अपराधी, चरित्रहीन व्यक्तियों को आयोजक स्वार्थवश उत्सवों—समारोहों में मुख्य—अतिथि के रूप में आमंत्रित करते हैं। मिठन लाल ऐसा ही पात्र है जो सेक्स—कांड में लिप्त था और सीडी के उजागर होने के कारण कुचर्चित था। रामलीला का प्रधान—आयोजक उसे मुख्य—अतिथि बनाने के लिए तर्क देता है—"मित्रो, व्यवहारिक बनें, केवल आदर्शवाद से काम नहीं चलता। हमें रामलीला करने और रावण—दहन के लिए धन चाहिए। वह चाहे राम का अवतार दे या रावण का। क्या फ़र्क पड़ता है?’’
प्रधान आयोजक का कथन आज के समाज के पतन को रेखांकित करता है। राम की लीला का प्रदर्शन समाज में राम के आदर्शों को स्थापित करने की भावना से किया जाता है। आयोजकों की भावना धनार्जन तक सीमित रह गई है। लेखक ने प्रधान—आयोजक पात्र द्वारा इस प्रकार की मानसिकता वालों पर तीखा प्रहार किया है।
'साजिश’ और स्थानांतरण उद्योग’ के माध्यम से लेखक ने राजनेताओं पर व्यंग्य किया है। राजनेता ऐसा विषय है जिस पर हज़ारों लघुकथाएँ लिखी गई हैैं और लिखी जाएँगी। राजनेता सदाबहार पात्र हैं। इन पर फ़िल्में बनी हैं, कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे गए हैं। वस्तुतः यह छल—कपट, झूठ—प्रपंच आदि समस्त बुराइयों और अवगुणों से परिपूर्ण पात्र हैं। राजनेताओं की यह स्थिति उनके दुराचरण और भ्रष्टता के कारण हुई है। रघुविन्द्र यादव ने भी इन पर तीखा व्यंग्य किया है।
रघुविन्द्र यादव ने इन लघुकथाओं में नारी के विभिन्न रूपों का चित्रण किया है। 'फिर सड़क पर’ के माध्यम से लेखक ने उन महिलाओं पर व्यंग्य किया है जो स्वार्थ पूर्ति हेतु सब कुछ करने को तैयार हो जाती हैं। सफलता प्राप्ति के समक्ष चरित्र उनके लिए महत्त्वहीन होता है। 'रमा’ ऐसी ही महिला है। वह पति को छोड़कर विज्ञापन—कंपनी में काम दिलाने वाले 'सागर’ से विवाह कर लेती है। सफलता की पहली सीढ़ी पर चढ़ने के लिए वह उस व्यक्ति को छोड़ देती है, जिसके साथ उसने अग्नि के समक्ष सात फेरे लिए थे। सफलता की अगली सीढ़ी पर चढ़ते ही वह 'सागर’ को त्यागकर नई कंपनी के मालिक मोहित के साथ रहने लगती है। सफलता की तीसरी सीढ़ी चढ़ने पर वह 'मोहित’ को त्यागकर नए बॉस 'विजय’ के साथ रहने के लिए जाती है। इस प्रकार की महिलाओं की मानसिकता को लेखक ने 'रमा’ द्वारा इस प्रकार उजागर किया है—'मैं यहाँ से जा रही हूँ अपने नए बॉस विजय के साथ। अगर गरीबी में ही रहना होता तो अपने पति के साथ ही न रह लेती।’’
भरतीय संस्कृति में महिलाओं की विशिष्ट सम्मानजनक स्थिति रही है। आज समाज 'लिव—इन’ की स्थिति तक पहुँच गया है। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने तेज़ी से परिवर्तित हो रही सामाजिक स्थितियों और कुछ महिलाओं की सोच का सशक्त चित्रण किया है।
'उत्तरदायित्व’ लघुकथा में अलग—अलग मानसिकता की महिलाओं का चित्रण हुआ है। यह पारिवारिक संदर्भ में आदर्शोन्मुखी लघुकथा है। एक ताला खराब हो जाता है। एक बहू उसके स्थान पर नया ताला खरीदना चाहती है। दूसरी उसे फेंक देना चाहती है। सबसे छोटी बहू खराब ताले को केरोसिन तेल से साफ़ करके ठीक कर देती है। ससुर घर की चाबी छोटी बहू को सौंपकर कहता है—"बेटी बुज़ुर्ग भी घर के ताले होते हैं। मुझे यकीन हो गया, इन तालों की सेवा—संंभाल तुम्हीं कर सकती हो।’’
लेखक ने रमा और छोटी बहू पात्रों के माध्यम से दो महिलाओं का चित्रण किया है। एक सुख—सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए पति पर पति बदल लेती है और दूसरी पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने वाली है। मरते मानव मूल्यों के मध्य भी छोटी बहू जैसी महिलाएँ हैं जो पतनोन्मुख समाज में आशा की उजली किरणें हैंै।
'झूठ’ और पितृभक्त’ लघुकथाओं में लेखक ने दोहरे चरित्र वालों पर व्यंग्य किया है। 'प्रार्थना’ लघुकथा में पुष्पा के माध्यम से लेखक ने उन बहुओं पर कटाक्ष किया है जो सास की मृत्यु की प्रार्थना करने के लिए मंदिर जाती हैं। इसी प्रकार की अनेक लघुकथाओं मेें आए दिन घटने वाली घटनाओं का चित्रण किया है।
'मृत्यु भोज’ द्वारा लेखक ने उन पुत्रों पर व्यंग्य किया है जो जीवित माता—पिता की देखभाल नहीं करते। उनकी मृत्यु पर गाँव भर को भोज पर आमंत्रित करके अपनी प्रतिष्ठा बनाना चाहते हैं। श्याम सिंह के पिता का निधन हो जाता है। वह गाँव को भोज देना चाहता है। इसके लिए पंचायत बुलाई जाती है। इस पर पंचों में बहस होती है। एक पंच 'नंदू’ कहता है—"मेरा विचार है कि हम श्याम सिंह जैसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करें, जो माँ—बाप की जीते जी तो सेवा नहीं करते, मरने पर गाँव को भोज देने और धमार्थ कार्य करने का ढोंग करते हैं।’’
हमारे चारों ओर, विशेषतया नगरों—महानगरों में, ऐसी अनेक घटनाएँ घट रही हैं जिनमें पुत्र वृद्ध माता—पिता को घर से निकाल देते हैं। वे सड़कों पर रहने को विवश हो जाते हैं। न्यायालयों मेेंं जाकर पुत्रों पर मुकद्दमा करके अपना अधिकार पाते हैं। वृद्ध माता—पिता के प्रति उपेक्षा और उन्हें भूखे मारना, ऐसा वर्षों से होता आया है। प्रेमचंद ने जुम्मन शेख द्वारा खालाज़ान की संपत्ति हड़प लेने और खाना न देने का उल्लेख 'पंच परमेश्वर’ में किया गया है। 'बूढ़ी काकी’ में भी भतीजे द्वारा वृद्धा काकी को दाने—दाने के लिए तरसाने की व्यथा है। लेखक रघुविन्द्र यादव ने इस लघुकथा द्वारा एक ओर श्याम सिंह जैसे पुत्रों का चरित्र उजागर किया है तो दूसरी ओर नंदू के माध्यम से संदेश भी दिया है।
रघुविन्द्र यादव संवेदनशील लघुकथाकार हैं। उनकी यह संवेदनशीलता अनेक लघुकथाओं के माध्यम से अभिव्यक्त हुई है। 'मृत्यु—भोज’ में वे माता—पिता की उपेक्षा करने वालों को उजागर करते हैंं। 'मेरी माँ’ लघुकथा द्वारा उनकी संवेदनशीलता तीसरे पुत्र के माध्यम से प्रकट होती है। इसके साथ—साथ पुत्रों के माता—पिता के प्रति उपेक्षा भाव का भी पता चलता है। माँ की मृत्यु पर तीसरा पुत्र माँ के शव सेे लिपट कर रोता है। दो पुत्र शांत रहते हैं। वास्तव में दोनों पुत्र माँ को गाँव में पंद्रह वर्ष पूर्व ही छोड़कर शहर में बस गए थे। माँ की देखभाल सेवा—सुश्रुषा तीसरे पुत्र ने की थी। उसके लिए माँ का निधन दुखदायी था।
'चोरी’ लघुकथा के माध्यम से लेखक ने स्पष्ट करना चाहा है कि न तो सभी मालिक क्रूर और संवेदनहीन होते हैं और न नौकर—नौकरानियाँ चोर होते हैं। मालिक के यहाँ लाखों की चोरी हो जाने का समाचार जानकर नौकरानी छुटकी घबरा जाती है। वह सोचती है कि उस पर चोरी का आरोप लगाया जा सकता है। वह ज़ल्दी से मालिक के घर पहुँचती है जहाँ पुलिस वाले पूछताछ करते हैं। वे मालिक से नौकरों के विषय में पूछते हैं। मालिक कहते हैं कि उन्हें अपने नौकरों पर शक नहीं है। वे उनका बचाव करते हैं। छुटकी की जान में जान आती है। इस प्रकार की अनेक लघुकथाएँ हैं जिनमें लेखक ने सकारात्मक सोच के पात्रों का सृजन किया है।
रघुविन्द्र यादव ने इन लघुकथाओं के माध्यम से समाज के विभिन्न रूपों को चित्रित किया है। इसके लिए उन्होंने जीवंत और प्रभावशाली पात्रों का सृजन किया है। पात्रों के परिवेश को स्थानीय भाषा के प्रयोग द्वारा सशक्त किया है। इन लघुकथाओं की भाषा आम बोलचाल की भाषा है। यथास्थान मुहावरों और सूक्तियों का भी प्रयोग किया है। कथोपकथन श्ौली लेखक की प्रिय श्ौली है। कुछ लघुकथाएँ बोधकथाओं—सी बन गई हैं। 'शेर और खरगोश’ की प्रचलित कथा को नए रूप में प्रस्तुत किया गया है। ऐसे कई प्रयोग किए गए हैं। इन लघुकथाओं की विशेषता है इनका सीधे, सहजता से पाठकों तक अपना अभीष्ट अभिव्यक्त कर देना।
मैं रघुविन्द्र यादव को बधाई देता हूँ। वे निरंतर लेखनरत रहें। लघुकथा विधा को समृद्ध करने के लिए समर्पित रहें। उनकी ये लघुकथाएँ पाठकों को खूब पसंद आएँगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

Saturday, 8 March 2014

रेडियो द्वारका पर कवि-गोष्ठी में 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ' कविता

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला-दिवस के अवसर पर रेडियो द्वारका पर आयोजित कवि-गोष्ठी में मैंने 'लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ' कविता  का पाठ किया. इस गोष्ठी का आयोजन-संचालन मैंने किया था. मेरे साथ विनीता छाबड़ा और डॉ प्रबोध सागर ने भी कविता -पाठ किया.
इसे इस लिंक पर क्लिक करके सुना जा सकता है.
http://radiodwarka.com/entertainment/kavi-goshti-on-international-womens-day/2080

माँ की स्मृतियाँ / अशोक लव

व्यक्ति के जीवन में नारी की विभिन्न रूपों में अहम भूमिका होती है. इनमें सर्वाधिक महत्त्व माँ का होता है. आज अंतर्राष्ट्रीय महिला-दिवस के अवसर पर माँ की स्मृतियों में डूबना स्वाभाविक था. सहसा अनेक चित्र सामने उभरते रहे.
जब माँ नहीं रहती तब माँ की अनुपस्थिति का अहसास होता है.
बहन-पुत्री-पत्नी के रूप में जीवन में नारी की उपस्थिति इस यात्रा को सुखद बनाती है.

Saturday, 8 February 2014

Saturday, 1 February 2014

गणतंत्र-दिवस की पूर्व संध्या पर कवि-सम्मलेन

दिल्ली अपार्टमेंट ,सेक्टर-बाईस,द्वारका,नई दिल्ली में गणतंत्र-दिवस की पूर्व संध्या पर पच्चीस जनवरी को कवि-सम्मलेन का आयोजन किया गया.इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि डॉ अशोक लव ने की ओर संचालन प्रेम बिहारी मिश्र  ने किया. पूरी रिपोर्ट रेडियो द्वारका पर --इस लिंक को पर जाकर सुनें.
http://radiodwarka.com/page-3/kavi-samelan-organized-by-sukh-dukh-ke-s/1945