Saturday 11 April, 2009
श्री विष्णु प्रभाकर जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
श्री विष्णु प्रभाकर जी नहीं रहे। वे लंबे समय से बीमार थे।दिल्ली का कोई भी ऐसा साहित्यकार नहीं होगा जो उनके संपर्क में न आया हो। हमारा उनसे अनेक बार संपर्क हुआ। अन्तिम भेंट डॉ हरीश नवल की बिटिया के विवाह- समारोह में हुई थी । अस्वस्थ थे फिर भी विवाह में आए थे । डॉ हरीश नवल डॉ विजयेन्द्र स्नातक जी के दामाद हैं। स्नातक जी और विष्णु प्रभाकर जी घनिष्ठ मित्र थे। उपस्थित समस्त साहित्यकार उनका आशीर्वाद ले रहे थे। उन्हें कम दिखाई दे रहा था। पहचानने में कठिनाई हो रही थी। सुनने की भी समस्या थी। फिर भी पहचान गए थे। पूछा था - और तुम्हारी लघुकथाओं का क्या हाल है ? खूब लिख रहे हो।
विष्णु जी अजमेरी गेट से पैदल आकर कनाट प्लेस के मोहन सिंह पैलेस के काफ़ी हाउस में पहुँचते थे । वहाँ वे साहित्यकारों से घिरे रहते थे । वे क्या नए क्या पुराने , क्या वामपंथी क्या अन्य , सब साहित्यकारों के प्रिय थे। वे साहित्यिक-राजनीति से दूर थे । इसलिए सबके थे। उनके साथ अनेक लघुकथा - संग्रहों में प्रकाशित होने के अवसर मिले हैं । वे दिल खोलकर प्रशंसा करते थे। विष्णु जी ने हमेशा नए साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया था । कौन क्या और कैसा लिख रहा है उन्हें इसकी जानकारी रहती थी ।
वे पीतमपुरा के अपने निवास में आ गए तो कनाट प्लेस की गोष्ठियां बंद हो गईं।
प्रातः उनके निधन का समाचार टी वी पर सुनकर मन उदास हो गया।
अनेक स्मृतियाँ साकार हो गईं ।
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