अशोक लव
Thursday, 30 July 2009
न रास्ता न मंजिल / अशोक लव
रात
ने
अंधेरे
की
चादर
बुनकर
टांग
दी
है
।
न
रास्ता
दिखता
है
न
मंज़िल
का
नामोनिशां
।
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