Friday, 11 June 2010

कविता सूरज है

जिन्हें कविता से डर लगता है
वे कविता की बात नहीं करते
वे राजनीति के किस्सों की चासनी में
उंगलियाँ डुबोकर उन्हें चाटते हैं।

वे उनकी बातें करते हैं
जिनका न धर्म है , न ईमान
जो कुर्सियों को खाते हैं
कुर्सियों को पीते हैं
कुर्सियों में मर जाते हैं
कुर्सियों में दफ़न हो जाते हैं।

कविता न चासनी है , न कुर्सी
कविता सीधी - सच्ची बात कहती है
वह दिन को दिन
और रात को रात कहती
वह भूख को भूख
और मदिरा को मदिरा कहती है ।

उन्हें कष्ट है
कि कविता सच को सच
क्यों कहती है ,
उनकी कोशिश है कि
कोई भी कविता की बात न करे।

कुछ सिरफिरे हैं कि
फिर भी कविता लिखते हैं,
कविता जीते हैं।

सूरज के आगे
अंधेरों की कितनी ही चादरें तान लें ,
कर देता है सूरज उन्हें तार-तार
अपनी रोशनी से ,
उन्हें शिकायत है कि
कविता सूरज क्यों है।
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प्रकाशित -- वोमेन ऑन टॉप ( हिन्दी मासिक पत्रिका ), A-96, SECTOR-65, NOIDA
जून2010 अंक

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