अशोक लव
Thursday, 20 October 2011
कविता -'गर्म मोम '/ अशोक लव
ठंडी जमी मोम
सब सह जाती है
छोटी-सी
पतली-सी
सुई
उतर जाती है
आर-पार .
तपती है जब मोम
आग बन जाती है
चिपककर झुलसा देती है.
समय के अनुसार
जीवन को मोम बनना पड़ता है.
@अशोक लव
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