विविध विधोन्मुखी रचनाकार श्री अशोक लव का नवीनतम काव्य- संग्रह ' लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान' हस्तगत है। उत्कृष्ट! अपूर्व! अद्भुत! हृदयस्थ अनुभूतियों को वैचारिक अभिव्यक्ति में विवर्तित करने का सद्प्रयास !लेकिन कवि का प्रयोजन भावों की अभिव्यंजना से भी आगे जाकर मानवीय चेतना को झकझोरने का प्रयास करना है। वे केवल आशाओं के जुगनू ही नहीं चमकाते , उस रोशनी से चेतना के सूरज उगाते हैं।
संग्रह का मुख्य स्वर समाजोन्मुखता का है। प्रथम तीन खंडों - नारी , संघर्ष और चिंतन में यथार्थ के प्रति सावधान रहने का आग्रह और भविष्य को संवारने की ललक स्पष्ट दिखाई देती है।
'नारी' खंड में ' माँ और कविता ', 'आशीर्वादों की कामधेनु ',नारी के मातृरूप की वंदना है तो 'बालिकाएँ जन्म लेती रहेंगी ' और करतारो सुर्खियाँ बनाती रहेंगी ' इक्कीसवीं सदी की नारी - दुर्दशा की वास्तविक कारुणिक कथा हैं जो गहन व्चारना को उत्पन्न करती हैं। परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक विरोध दर्ज़ कराती इस खंड की अन्य कविताएँ ,विशेषत: शीर्षक कविता तथा 'द्रौपदी' अशोक लव की जागरुक काव्य-दृष्टि की परिचायक हैं।
'संघर्ष ' खंड की कवितायेँ समक्ष उपस्थित सामाजिक और राजनीतिक परिवेशगत कथ्यों के संसार को सहृदयों के सामने प्रस्तुत करती हैं। इस खंड की सभी कविताएँ ऐसी ही हैं लेकिन 'मारा गया एक और' तथा 'मारा गया एक खास ' लाजवाब हैं,बेमिसाल हैं।
'चिंतन' खंड में जीवन के बहुपक्षीय चिंतन हैं। 'हम दोनों फिर मिले ' का सहज सौंदर्य ध्यातव्य है ।
'प्रेम' खंड की कविताओं में छायावादी सौन्दर्य -अनुभूति के दर्शन होते हैं । 'देह-दीपोत्सव' इस खंड की श्रेष्ठतम कविता कही जा सकती है। यह ऐंद्रिकता से परे प्रार्थना के संसार में ले जाती है। 'दिनकर' का 'काम- अध्यात्म' इस कविता से पुनः स्मृत हो जाता है।
अभिव्यक्ति-पक्ष की बात है, इसमें रचनाकार काम विशेष आग्रह दिखायी नहीं पड़ता। स्वाभाविकता के प्रवाह में अनायास ही शैली ,बिम्ब,अलंकार आदि जो शिल्प -मुक्त-माणिक्य बहते चले आए हैं ,कवि ने उन्हें संजो लिया है । इसी प्रकार उद्देश्य एवं संप्रेषणयीता में सहायक शब्दावली में भाषिक साग्रहता नहीं है। आम बोलचाल,पंजाबी,अंग्रेजी के प्रचलित शब्दों के साथ ही परिष्कृत संस्कृतगर्भित भाषा भी प्रयुक्त हुई है। ' परम्पराओं के पत्थर ' , ' पसीने की स्याही ' काम रूपक हो या 'संजीवनी का स्पर्श ' में उपमा अलंकार , सब अनायास आए हैं।
' लड़कियाँ छूना चाहती हैं ' की सबसे बड़ी विशेषता इसकी बिम्बात्मकता है। चित्रात्मकता का यह गुण सर्वत्र उपलब्ध है । ' आशीर्वादों की कामधेनु ' में पौराणिक बिम्ब क्या नहीं कह जाता ! 'पसीने की स्याही ' का सामाजिक बिम्ब या फिर ' परम्पराओं के पत्थर ' का सांस्कृतिक बिम्ब दर्शाते हैं कि किस प्रकार अशोक लव ने वातावरण-निर्माण के लिए सर्जनात्मक काल्पनिकता के सार्थक प्रयोग किए हैं ।
इसी क्रम में यदि अप्रस्तुत - विधान की बात की जाए तो सादृश्य - आधृत अप्रस्तुत-विधान के चारों रूप - मूर्त के साथ मूर्त का संयोजन ,मूर्त के साथ अमूर्त का संयोजन , अमूर्त के साथ मूर्त का संयोजन और अमूर्त के साथ अमूर्त का संयोजन , संग्रह में दिखाई देते हैं ।
' लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान ' पठनीय एवं संग्रहणीय कृति है । परिपक्व कृतिकार अशोक लव का यह काव्यात्मक प्रयास सार्थक एवं प्रशंस्य है । यह कविता के दायित्वों को स्पष्ट रेखांकित करने में समर्थ है -
" सूरज के आगे अंधेरों की
कितनी ही चादरें तान लें
कर देता है सूरज उन्हें तार-तार
अपनी रोशनी से;
उन्हें शिकायत है कि
कविता सूरज क्यों है ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*समीक्षक :डॉ कंचन छिब्बर ( आगरा )
कवि- अशोक लव ,फ्लैट-३६३,सूर्य अपार्टमेंट ,सेक्टर-६,द्वारका , नई दिल्ली-११००७५ पृष्ठ -११२, मूल्य-१००/रु ,
प्रकाशन-वर्ष : २००८
No comments:
Post a Comment