Saturday, 23 May 2009

चाणक्य ने ठीक कहा है

धर्म तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेवंचकता गुरौ विनयतास चितेअपी गंभीरता
आचारे शुचिता गुणे
रसिकता शास्त्रेषु विज्ञानता
रूपे सुन्दरता शिवे भजनता सत्हत्रेव संदृश्यते
चाणक्य ने सज्जन व्यक्ति के गुणों के सम्बन्ध में कहा है कि वह धार्मिक कार्यों में संलग्न रहता है। वह मधुर बोलता है । वह उत्साहपूर्वक दान देता है। वह मित्रों के प्रति छल-कपट का भाव नहीं रखता । वह गंभीर होता है। उसका आचरण शुद्ध होता है। वह साहित्य का आनंद लेने वाले गुणों से युक्त होता है.वह शास्त्रों का ज्ञाता होता है। उसका रूप सुंदर होता है। वह भगवान शिव का स्मरण करने वाला होता है। वह सत्य का साक्षात् रूप होता है.

*पुस्तक- चाणक्य नीति , संपादक- अशोक लव

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