कोई नहीं है आसपास
फिर भी हवाओं में है
किसी की सुगंध
महका रही है भीतर तक
कर रही है उल्लसित।
वृक्षों के पत्तों में प्रकम्पित
चूड़ियों की खनखनाहट
आकाश में टंगा सूर्य
माथे की बिंदी - सा
चमक रहा है।
जनवरी की कोसी-कोसी धूप
किसी की निकटता -सी
लग रही है सुखद ।
दूरियों की दीवार के पार
है कोई
और यहाँ हैं -
नदी से नहाकर निकली
हवाओं का गीलापन लिए
निकटता के क्षणों के अहसास।
किसी के संग न होने पर भी
आ रही है
हवा के प्रत्येक झोंके के साथ
सुपरिचित महक ।
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* पुस्तक _ लड़कियां छूना चाहती है आसमान ( प्रेम खंड )
प्रतिक्रियाएँ
Vikram Dutt bahut khub sir ji.....
Abha Khetarpal
बेहद खूबसूरत
Sudhir Mehta
Wah Ashok ji ...
Kshama Bali beautiful...........enjoyed
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