Monday, 9 August 2010

प्यासे जीवनों के पनघट ! / अशोक लव

कतारों की कतारें
अभावों से बोझिल क़दमों के संग
सूखे होठों की पपड़ियों को
सूखी  जीभ से गीलेपन का अहसास दिलाते
प्यासी आँखों में पानी के सपने लिए
कुएँ को घेरे
प्रतीक्षारत !
कुएँ में झाँकती
प्यासी आशाएँ
कुएँ  की दीवारों से टकराते
झनझनाते खाली बर्तन.
बिखरती आशाओं 
प्यासे जीवनों के पनघट !
असहाय ताकते
जनसमूह
शायद..शायद ..होठों को तर करके
हलक से नीचे तक उतर जाए
पानी !!
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@अशोक लव , 9 अगस्त  2010

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