शहर में शोर है शहर में हंगामा है शहर में भीड़ है शहर में जुलूस निकलते हैं जिंदाबाद ! जिंदाबाद ! मुर्दाबाद-मुर्दाबाद के नारे गूँजते हैं शहर की हवा में . बड़ी चहल-पहल रहती है शहर में पर हत्यारे हैं कि इन सबके बीच से चाकू घुमाते गोलियां दनदनाते निकाल जाते हैं . लाश किसकी गिरी है बलात्कार किसका हुआ है शहर की भीड़ को इसका पता नहीं चलता वह लाशों को कुचल कर आगे बढ़ जाती है वह बलात्कार की त्रासदी भोगती नग्न देहों को कुचलती आगे बढ़ जाती है . लोग सब कुछ देखते हैं पर ऑंखें बंद कर लेते हैं लोग सब कुछ सुनते हैं पर कान बंद कर लेते हैं शहर के न हाथ रहे हैं न पाँव हत्यारों-बलात्कारियों को न रोक पाता है न पकड़ पाता है शहर . बहुत तेज़ भाग रहा है शहर मर चुकी संवेदनाओं के साथ जी रहा है शहर . |
Thursday, 1 March 2012
अंधा बहरा शहर / अशोक लव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment