Wednesday, 9 September 2009

मन में मनमोहन / अशोक लव




मन में मनमोहन को बसा लें तो यह संसार कृष्णमय हो जाता है. आनंद ही आनंद ! मन को मोह लेने वाले मनमोहन की बाँसुरी की गूँज हृदय के प्रत्येक कोने को मंत्रमुग्ध कर अलौकिक आनंद में डुबा लेती है. न चिंता , न मोहमाया , न ईर्ष्या , न द्वेष ! बस कृष्ण ही कृष्ण ! मनमोहन ही मनमोहन !
मन जब कृष्णमय हो जाएगा फिर संसार के प्रति दृष्टिकोण ही बदल जाएगा. संसार की सारहीनता सामने आ जाएगी . मन न भटकेगा , न कहीं अटकेगा , सब आनंदमय लगेगा , कुछ नहीं खटकेगा. मीरा के समान- " मैं श्याम की मेरे श्याम ! इस संसार से अब क्या काम ! " न धन एकत्र करने की चाह , न यश की चाह ! न अपेक्षाएँ , न उपेक्षाओं की पीड़ाएं ! बस प्रेम ही प्रेम ! मन को गोपी बना लें और श्री कृष्ण की रट लगा लें . मन कृष्ण की रासलीला का अंग बना नहीं कि सब कुछ बदल जाएगा. सांसारिक वासनामय लीलाओं से मुक्ति मिल जाएगी . सांसारिक आकर्षणों से मुक्त हुए नहीं कि मनमोहन में मन आसक्त हो जाएगा. उस मनमोहन की शरण में पहुँच गए तो फिर काहे की भटकन.
पहले मन को नियंत्रित करना पड़ेगा. संसार की सारहीनता को समझना पड़ेगा. मन को वृन्दावन बनाना पड़ेगा. कृष्ण तभी तो मन-वृन्दावन में अवतरित होंगे.
चल रे मन अब कृष्ण की शरण ! बसा ले मन में मनमोहन !

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