Wednesday, 24 December 2008
हम दोनों फिर मिले / * अशोक लव
आज मेरा दोस्त मुझसे लिपटकर
खूब हँसा।
हमने महीनों बाद खाए
रामेश्वर के गोलगप्पे
हमने महीनों बाद खाई
आतिफ़ की दुकान से
देसी घी की गर्म-गर्म जलेबियाँ।
आज न ईद थी
आज न होली थी
फिर भी लगा आज कोई त्योहार था।
आज उसने मस्जिद की बातें नहीं कीं
आज मैंने मन्दिर की बातें नहीं कीं।
उसने महीनों बाद
मेरी पत्नी के हाथों बनी
मक्की की रोटी खाने फरमाइश की
मैंने सबीना भाभी के परांठों का ज़िक्र किया।
हम दोनों ने महीनों बाद
बच्चों के बारे में बातें कीं
हम दोनों ने आज जी भरकर
सियासतदानों को गलियां दीं।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पुस्तक-लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
@सर्वाधिकार सुरक्षित
Tuesday, 23 December 2008
गर्म मोम / * अशोक लव
Monday, 22 December 2008
Thursday, 18 December 2008
Saturday, 6 December 2008
मारा गया एक खास / * अशोक लव
वह जानता था
वह मारा जाएगा
इसलिए चिंतित था ।
उसने दरवाज़ों- खिड़कियों को बुलेट-प्रूफ़ कराया
उसने घर के कोने- कोने को बुलेट- प्रूफ़ कराया
उसने गृह - मंत्री को पत्र लिखे
उसने प्रधानमंत्री को पत्र लिखे ,
उसे सरकार ने सुरक्षा - कवच पहनाया।
उसे कमांडो मिले
उसे पुलिसकर्मी मिले
उसे बुलेट-प्रूफ़ गाड़ियां मिलीं ,
क्योंकि वह वी आई पी था
खासमखास था-
आम नहीं ,
फिर भी
वह दहशत में था।
वह घर में होता तो-
कमांडो आसपास मंडराते
वह बहार निकलता तो-
कमांडो आसपास मंडराते
वह जहाँ-जहाँ जाता
उसकी गाड़ी के आगे-पीछे गाडियां चलतीं।
वह जन- प्रतिनिधि था
पर जन से बचता फिरता था ,
वह समाजसेवी था
पर समाज से अलग रहता था,
वह राजनेता था
इसलिए लोगों को खूब बरगलाता था।
वह भाषण देता था तो-
उसकी टाँगें कांपती थीं
क्योंकि वह जनता था
किसी भी कोने से गोलियों की बौछार हो जाएगी
किसी भी कोने से बम फेंकें जाएँगें
वह जानता था
वह निशाने पर था।
वह चिंतित था क्योंकि उसे
व्यवस्था के खोखलेपन का पता था
वह व्यवस्था का अंग था
इसलिए सत्य जानता था
वह दूसरों को भ्रमित कर सकता था
स्वयं को नहीं।
एक दिन वही हुआ
वह मारा गया
कमांडो मरे गए
पुलिसकर्मी मारे गए
बुलेटप्रूफ गाडियां उड़ गईं
कोई भी उसे बचा न सका।
झंडे झुक गए
सरकारी स्कूलों में छुट्टी हो गई
विद्यार्थी खुश हुए
अध्यापक- अध्यापिकाएँ खुश हो गए
श्रधांजलि सभाओं में प्रशंसाओं के पुल बाँधे गए
टी वी चैनलों पर दिन भर
चटकारे ले- लेकर खबरें प्रसारित होती रहीं ।
मारनेवाले मारना जानते हैं
वे जिसे चाहते हैं
मार डालते हैं
क्योंकि वे व्यवस्था की कमज़ोरियाँ जानते हैं ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~पुस्तक-लडकियां छूना चाहती हैं आसमान
*सर्वाधिकार सुरक्षित
Friday, 5 December 2008
मारा गया एक और / * अशोक लव
वह जानता था , वह मारा जाएगा
फिर भी निश्चिंत था।
उसने न दरवाज़े बंद किए
न खिड़कियों पर चिटकनियाँ लगाईं
न अख़बारों में बयान छपवाया
न पुलिस - स्टेशन जाकर सुरक्षा माँगी
न सरकार के पास गया
न राष्ट्रपति को पत्र लिखा
न प्रधानमंत्री को।
वह रोजाना की तरह उठा
काम पर गया
हत्यारों ने उसे
बीच चौराहे गोलियों से भून दिया।
वह जानता था जब गोलियाँ चलेगीं
लोग अपने घरों में घुस जाएँगे
वह एक - एक दरवाज़े तक जाएगा
लोग उसके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर देंगे
हत्यारे उसे घसीटकर चौराहे तक ले जाएँगे
और गोलियों से छलनी- छलनी कर देंगे।
वही हुआ
और उसी-उसी तरह हुआ
जैसा-जैसा उसने सोचा था
और वह मारा गया
क्योंकि वह जान गया था
पुलिस , फौज, सरकार , लोग
कोई उसे नहीं बचा सकते
उनके लिए आम आदमी का जीना - मरना
निरर्थक होता है।
न झंडे झुके
न शोक सभाएँ हुईं
बस इतनी - सी ख़बर छपी
एक और मारा गया।
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@ सर्वाधिकार सुरक्षित
पुस्तक-लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान
फिर भी निश्चिंत था।
उसने न दरवाज़े बंद किए
न खिड़कियों पर चिटकनियाँ लगाईं
न अख़बारों में बयान छपवाया
न पुलिस - स्टेशन जाकर सुरक्षा माँगी
न सरकार के पास गया
न राष्ट्रपति को पत्र लिखा
न प्रधानमंत्री को।
वह रोजाना की तरह उठा
काम पर गया
हत्यारों ने उसे
बीच चौराहे गोलियों से भून दिया।
वह जानता था जब गोलियाँ चलेगीं
लोग अपने घरों में घुस जाएँगे
वह एक - एक दरवाज़े तक जाएगा
लोग उसके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर देंगे
हत्यारे उसे घसीटकर चौराहे तक ले जाएँगे
और गोलियों से छलनी- छलनी कर देंगे।
वही हुआ
और उसी-उसी तरह हुआ
जैसा-जैसा उसने सोचा था
और वह मारा गया
क्योंकि वह जान गया था
पुलिस , फौज, सरकार , लोग
कोई उसे नहीं बचा सकते
उनके लिए आम आदमी का जीना - मरना
निरर्थक होता है।
न झंडे झुके
न शोक सभाएँ हुईं
बस इतनी - सी ख़बर छपी
एक और मारा गया।
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@ सर्वाधिकार सुरक्षित
पुस्तक-लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान
Thursday, 4 December 2008
बन्दूक थामे हाथ / * अशोक लव
Tuesday, 2 December 2008
कंधे पर मानवता / * अशोक लव
घायल भारत
उसका कुछ नहीं लगता था
बस इतना रिश्ता था -
जब गोलियां चलीं तब
वह बच गया
और भारत के माथे को चीरती गोली
खून बहाती निकल गई ,
उसने उठा लिया
बस इतना रिश्ता था -
जब गोलियां चलीं तब
वह बच गया
और भारत के माथे को चीरती गोली
खून बहाती निकल गई ,
उसने उठा लिया
कंधे पर
भारत कोऔर दौड़ पड़ा अस्पताल की ओर।
दनदनाती गोलियों की
बौछारों की परवाह किए बिना
वह दौड़ता चला गया
उसे नहीं याद आई पत्नी
उसे नहीं याद आए बच्चे
उसने नहीं पूछा भारत से उसके प्रान्त का नाम
उसने नहीं पूछा भारत का मज़हब
उसने अल्लाह से यही दुआ की
बस बच जाए उसके कंधे का देशवासी।
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*२६.११.२००८ ( मुंबई में आतंक )
@सर्वाधिकार सुरक्षित
Monday, 1 December 2008
अपाहिज शब्द / * अशोक लव
कई बार
शब्द कुछ नहीं कह पाते ,
वेदना जब असहनीय हो जाती है
भावनाएँ जब गोलियों से छलनी-छलनी हो जाती हैं
चारों ओर बस खून ही खून बहता दिखता है
तब स्तब्ध मन
भावनाहीन
सुन्न -सा ताकता रह जाता है
शब्द कुछ नहीं कह पाते
देखते हुए भी नहीं देखती
कुछ भी आँखें
बस एक शून्य तैरता है आँखों में
अपाहिज हो जाते हैं शब्द
कुछ नहीं कह पाते हैं शब्द।
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* २६.११.२००८ (मुंबई में आतंक )
*सर्वाधिकार सुरक्षित
शब्द कुछ नहीं कह पाते ,
वेदना जब असहनीय हो जाती है
भावनाएँ जब गोलियों से छलनी-छलनी हो जाती हैं
चारों ओर बस खून ही खून बहता दिखता है
तब स्तब्ध मन
भावनाहीन
सुन्न -सा ताकता रह जाता है
शब्द कुछ नहीं कह पाते
देखते हुए भी नहीं देखती
कुछ भी आँखें
बस एक शून्य तैरता है आँखों में
अपाहिज हो जाते हैं शब्द
कुछ नहीं कह पाते हैं शब्द।
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* २६.११.२००८ (मुंबई में आतंक )
*सर्वाधिकार सुरक्षित
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