कई बार
शब्द कुछ नहीं कह पाते ,
वेदना जब असहनीय हो जाती है
भावनाएँ जब गोलियों से छलनी-छलनी हो जाती हैं
चारों ओर बस खून ही खून बहता दिखता है
तब स्तब्ध मन
भावनाहीन
सुन्न -सा ताकता रह जाता है
शब्द कुछ नहीं कह पाते
देखते हुए भी नहीं देखती
कुछ भी आँखें
बस एक शून्य तैरता है आँखों में
अपाहिज हो जाते हैं शब्द
कुछ नहीं कह पाते हैं शब्द।
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* २६.११.२००८ (मुंबई में आतंक )
*सर्वाधिकार सुरक्षित
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