Friday 5 December, 2008

मारा गया एक और / * अशोक लव

वह जानता था , वह मारा जाएगा
फिर भी निश्चिंत था।
उसने न दरवाज़े बंद किए
न खिड़कियों पर चिटकनियाँ लगाईं
न अख़बारों में बयान छपवाया
न पुलिस - स्टेशन जाकर सुरक्षा माँगी
न सरकार के पास गया
न राष्ट्रपति को पत्र लिखा
न प्रधानमंत्री को।
वह रोजाना की तरह उठा
काम पर गया
हत्यारों ने उसे
बीच चौराहे गोलियों से भून दिया।
वह जानता था जब गोलियाँ चलेगीं
लोग अपने घरों में घुस जाएँगे
वह एक - एक दरवाज़े तक जाएगा
लोग उसके मुँह पर दरवाज़ा बंद कर देंगे
हत्यारे उसे घसीटकर चौराहे तक ले जाएँगे
और गोलियों से छलनी- छलनी कर देंगे।
वही हुआ
और उसी-उसी तरह हुआ
जैसा-जैसा उसने सोचा था
और वह मारा गया
क्योंकि वह जान गया था
पुलिस , फौज, सरकार , लोग
कोई उसे नहीं बचा सकते
उनके लिए आम आदमी का जीना - मरना
निरर्थक होता है।

न झंडे झुके
न शोक सभाएँ हुईं
बस इतनी - सी ख़बर छपी
एक और मारा गया।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
@ सर्वाधिकार सुरक्षित
पुस्तक-लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान

No comments: