Wednesday 24 December, 2008

हम दोनों फिर मिले / * अशोक लव


आज मेरा दोस्त मुझसे लिपटकर
खूब हँसा।

हमने महीनों बाद खाए
रामेश्वर के गोलगप्पे
हमने महीनों बाद खाई
आतिफ़ की दुकान से
देसी घी की गर्म-गर्म जलेबियाँ।

आज न ईद थी
आज न होली थी
फिर भी लगा आज कोई त्योहार था।

आज उसने मस्जिद की बातें नहीं कीं
आज मैंने मन्दिर की बातें नहीं कीं।

उसने महीनों बाद
मेरी पत्नी के हाथों बनी
मक्की की रोटी खाने फरमाइश की
मैंने सबीना भाभी के परांठों का ज़िक्र किया।

हम दोनों ने महीनों बाद
बच्चों के बारे में बातें कीं
हम दोनों ने आज जी भरकर
सियासतदानों को गलियां दीं।

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पुस्तक-लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान
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