Saturday, 6 December 2008

मारा गया एक खास / * अशोक लव


वह जानता था
वह मारा जाएगा
इसलिए चिंतित था ।
उसने दरवाज़ों- खिड़कियों को बुलेट-प्रूफ़ कराया
उसने घर के कोने- कोने को बुलेट- प्रूफ़ कराया
उसने गृह - मंत्री को पत्र लिखे
उसने प्रधानमंत्री को पत्र लिखे ,
उसे सरकार ने सुरक्षा - कवच पहनाया।
उसे कमांडो मिले
उसे पुलिसकर्मी मिले
उसे बुलेट-प्रूफ़ गाड़ियां मिलीं ,
क्योंकि वह वी आई पी था
खासमखास था-
आम नहीं ,
फिर भी
वह दहशत में था।
वह घर में होता तो-
कमांडो आसपास मंडराते
वह बहार निकलता तो-
कमांडो आसपास मंडराते
वह जहाँ-जहाँ जाता
उसकी गाड़ी के आगे-पीछे गाडियां चलतीं।
वह जन- प्रतिनिधि था
पर जन से बचता फिरता था ,
वह समाजसेवी था
पर समाज से अलग रहता था,
वह राजनेता था
इसलिए लोगों को खूब बरगलाता था।
वह भाषण देता था तो-
उसकी टाँगें कांपती थीं
क्योंकि वह जनता था
किसी भी कोने से गोलियों की बौछार हो जाएगी
किसी भी कोने से बम फेंकें जाएँगें
वह जानता था
वह निशाने पर था।
वह चिंतित था क्योंकि उसे
व्यवस्था के खोखलेपन का पता था
वह व्यवस्था का अंग था
इसलिए सत्य जानता था
वह दूसरों को भ्रमित कर सकता था
स्वयं को नहीं।
एक दिन वही हुआ
वह मारा गया
कमांडो मरे गए
पुलिसकर्मी मारे गए
बुलेटप्रूफ गाडियां उड़ गईं
कोई भी उसे बचा न सका।
झंडे झुक गए
सरकारी स्कूलों में छुट्टी हो गई
विद्यार्थी खुश हुए
अध्यापक- अध्यापिकाएँ खुश हो गए
श्रधांजलि सभाओं में प्रशंसाओं के पुल बाँधे गए
टी वी चैनलों पर दिन भर
चटकारे ले- लेकर खबरें प्रसारित होती रहीं ।
मारनेवाले मारना जानते हैं
वे जिसे चाहते हैं
मार डालते हैं
क्योंकि वे व्यवस्था की कमज़ोरियाँ जानते हैं ।
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पुस्तक-लडकियां छूना चाहती हैं आसमान
*सर्वाधिकार सुरक्षित

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