Friday 28 November, 2008

देह - दीपोत्सव / * अशोक लव

कंपकंपाती देह के स्पंदनों ने
भर दिए अधरों में प्रकम्पन
झिलमिला उठा आकाश
महक उठी धरती।
बादलों में चमक गई
विद्युती तरंगें
चुंधिया गई धरती
चुंधिया गया आकाश।
उतर आया प्रकाश - पुंज
जगमगा गया मन - आँगन
देह ने मनाया दीपोत्सव।
पाकर स्पर्श
उमंगित लहरों का
खिल उठे कोने- कोने में
गुलाब।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*सर्वाधिकार सुरक्षित (पुस्तक - लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान )

No comments: