Friday 7 November, 2008

शब्द - सामर्थ्य / * अशोक लव




मेरे पास शब्द हैं
लिखते हैं शब्द
नंगे पर्वतों पर
बर्फ़ के गीत ।
शब्द तैरते हैं
सागर के अंतर्मन के स्पंदनों के संग
शब्द पढ़ आते हैं
नयनों में तैरते प्रेम , स्वप्न ।
यही शब्द जाते हैं डूब जब
तेजाब में
तड़क जाती हैं चट्टानी व्यवस्थाएं ।
मत छीनो मुझसे
आकाश, धरती,पवन
गाने दो मुझे
शब्दों से रचे
मिट्टी के गीत।
_______________________
मेरा कविता संग्रह - अनुभूतियों की आहटें

No comments: