तुम्हारा जादुई आवरण / * अशोक लव
मेरी स्मृति पर निरंतर दस्तक देते तुम बाँध लेते हो मेरी अस्मिता को। जुड़ जाती हूँ तुमसे जैसे नदी सागर से एक साथ -जादुई आवरण हो जैसे अभिलाषाओं का अंतहीन अनदेखा अछूता। एक स्पर्श छू जाए कुआरी साध कोसुहाग चुनरी की झिलमिलाती आभा से । एक मन उद्वेलित तुमसे चिर पिपासित चातकहेरे नूतन घन ।एक उन्माद जैसे व्याकुल हो नदी अपने कूल तोड़ने को , नई पहचान बनने को ।भीषण गर्मी में तारकोल पिघलाती सड़क को कर दे परिवर्तित क्षण भर में कोमल मखमली दूर्वा में तुम्हारे अस्तित्व की महक ,और सजा दे उन स्वप्नों को जो हैं केवल मेरे अपने। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~* पुस्तक - लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान ( प्रेम खंड )
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