
मेरी स्मृति पर
निरंतर दस्तक देते तुम
बाँध लेते हो मेरी अस्मिता को।
जुड़ जाती हूँ तुमसे
जैसे नदी सागर से
एक साथ -
जादुई आवरण हो जैसे अभिलाषाओं का
अंतहीन
अनदेखा
अछूता।
एक स्पर्श
छू जाए कुआरी साध को
सुहाग चुनरी की
झिलमिलाती आभा से ।
एक मन
उद्वेलित तुमसे
चिर पिपासित चातक
हेरे नूतन घन ।
एक उन्माद
जैसे व्याकुल हो नदी
अपने कूल तोड़ने को ,
नई पहचान बनने को ।
भीषण गर्मी में
तारकोल पिघलाती सड़क को
कर दे परिवर्तित
क्षण भर में
कोमल मखमली दूर्वा में
तुम्हारे अस्तित्व की महक ,
और सजा दे उन स्वप्नों को
जो हैं केवल मेरे अपने।
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* पुस्तक - लड़कियां छूना चाहती हैं आसमान ( प्रेम खंड )
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