कोई नहीं है आसपास फिर भी हवाओं में है
किसी की सुगंध
महका रही है भीतर तक
कर रही है उल्लसित।
वृक्षों के पत्तों में प्रकम्पित चूड़ियों की खनखनाहट आकाश में टंगा सूर्य माथे की बिंदी - सा चमक रहा है। जनवरी की कोसी-कोसी धूपकिसी की निकटता -सी लग रही है सुखद । दूरियों की दीवार के पारहै कोई और यहाँ हैं -नदी से नहाकर निकली हवाओं का गीलापन लिए निकटता के क्षणों के अहसास।किसी के संग न होने पर भी आ रही है हवा के प्रत्येक झोंके के साथ सुपरिचित महक । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
* पुस्तक _ लड़कियां छूना चाहती है आसमान ( प्रेम खंड )
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