Friday, 7 November 2008

" लड़की " कविता पर आशावरी दास

सर नमस्कार
..यह कविता बचपन की याद दिलाती है।
आपको याद नही होगा पर यह कविता आप स्कूल में मुझे , और नेहा नंदा को कभी- कभी सुनाते थे
बहुत अच्छी है ।
....हमेशा मन करता है की अगर प्रांशु यहाँ नही आया तो जब में दिल्ली मैं रहूंगी तो हफ्ते में कमसे कम एक दिन आप मेरे घर पे खाने पे आयेंगे और आपको बिना लहसुन और प्याज़ का खाना खिलाऊँगी । --आशावरी दास
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*आशावरी दास मेरी उन छात्राओं में से है जो बेटिओं की तरह आज भी हालचाल पूछती है ।सुख-दुःख बांटती है। फ्लोरिडा (यू एस ) के विश्वविद्यालय में पढ़ाती है।
वर्षों पूर्व जिन्हें पढ़ाया था , आज भी उनसे संपर्क दर्शाता है कि सामाजिक मूल्य आज भी जीवित हैं। मेरा व्यक्तिगत अनुभव यही है कि मूल्यों का चाहे कितना ह्रास हो जाए , फिर भी मूल्यों को जिंदा रखनेवाले लोग हमेशा बने रहते हैं।
-7.11.2008

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