चल बिटिया चल / * अशोक लव
नन्हीं बिटिया उंगली छुड़ाकाली नंगी सड़क पर टेढ़े-सीधे पग रखती भाग खड़ी हुई पकड़ पाता उसे वह तब तक गिर गई थी छिल गए थे उसके घुटने। उसे उठाया घुटने सहलाये ले चला फिर घुमाने उंगली पकड़ । छुड़ा ली उसने उंगली छिले घुटनों की पीड़ा भूल दौड़ गई वह । इस बार नहीं दौड़ा उसके पीछे उसे जाने दिया बिना उंगली पकड़े चलने का अपना ही सुख होता है। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~पुस्तक - अनुभूतियों की आहटें (१९९७)
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