Monday 10 November, 2008

चल बिटिया चल / * अशोक लव



नन्हीं बिटिया
उंगली छुड़ा
काली नंगी सड़क पर
टेढ़े-सीधे पग रखती
भाग खड़ी हुई
पकड़ पाता उसे
वह तब तक गिर गई थी
छिल गए थे उसके घुटने।
उसे उठाया
घुटने सहलाये
ले चला फिर घुमाने
उंगली पकड़ ।
छुड़ा ली उसने
उंगली
छिले घुटनों की पीड़ा भूल
दौड़ गई वह ।
इस बार नहीं दौड़ा
उसके पीछे
उसे जाने दिया
बिना उंगली पकड़े चलने का
अपना ही सुख होता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
पुस्तक - अनुभूतियों की आहटें (१९९७)

No comments: