नदी की लहरों ने
अपने स्पर्शों से
किनारे खड़े वृक्ष में भर दिए
प्राण ,
पुनर्जीवित हो उठा वृक्ष
हरे हो गए पत्ते
चहकने लगीं टहनियां।
लहरों की प्रतीक्षा में अपलक निहारता है दूर-दूर तक मौन तपस्वी - सा ,संबल बनी नदीबदल न ले मार्ग अपना सोच-सोच कांप - कांप जाता है वृक्ष। उछलती कूदती आती हैं नदी की लहरें छूकर भाग जाती हैं नदी की लहरें वृक्ष भी चल पातातो , चलता दूर तक नदी के संग विवश वृक्ष केवल सुनता रहता है लौटती नदी की पदचापें ।~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
*सर्वाधिकार सुरक्षित (पुस्तक-लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान )
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