देवालय की घंटियाँ / * अशोक लव
नील नभ छा गए श्यामल मेघ नर्तकी के घुंघरुओं - सी लगी बूँदें बजने हुआ आरंभ जल-नृत्य। स्मृतियों के आकाश पर लगे घुँघरू बजने हुआ था यूँ ही जल-नृत्य कौंधी थी चपला तुम्हारा रूप बन प्रकाशमय हो गया था जीवन हुआ शंखनाद जैसे बज उठी घंटियाँ देवालय की हुई थी पूरी साध अतृप्त मन की ।चल पड़ा करने उद्यापन मन हुए थे फलीभूत व्रत प्रश्नों के गाँव छुट गए थे पीछे बिछ गई थी दंडवत देह देह सम्मुख अंजुरी में गिर गया था आशीष पुष्प हृदय में भर गई थी गंध हुई चिर साध पूरी जल - नृत्य किया था मन ने उस दिन। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~* " लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान " पुस्तक ( प्रेम खंड )
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